Law and Order: अपराध और अपराधी को काबू करने के लिए भारत में अपना कानून है. जिसकी अहम कड़ी है भारतीय दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) सीआरपीसी. इसी के तहत तमाम तरह के जुर्म परिभाषित किए गए हैं और साथ ही उनकी सजा के प्रावधान भी किए गए हैं. पुलिस आईपीसी और सीआरपीसी के अनुसार ही काम करती है. भारत में होने वाले अपराधों को दो श्रेणियों में बांटा गया है. एक संज्ञेय अपराध और दूसरा असंज्ञेय अपराध. चलिए जानते हैं कि इसका क्या मतलब होता है?
CrPC में संज्ञेय अपराध (Cognisable offence)
दंड प्रक्रिया संहिता ,1973 की धारा 2 (सी) के अनुसार, संज्ञेय अपराध से ऐसा अपराध और संज्ञेय मामला से ऐसा मामला अभिप्रेत है, जिसमे पुलिस अधिकारी प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रव्रत्य किसी अन्य विधि के अनुसार वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकता है. दरअसल, ये अपराध गंभीर और संगीन प्रकार के होते हैं; अत: अभियुक्त कहीं भाग न जाए और अपराध के सुबूतों को नष्ट न कर दे; इसलिए पुलिस ऐसे अपराध की सूचना मिलते ही बिना किसी वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार कर जांच प्रारंभ कर देती है.
ये होते हैं संज्ञेय अपराध (Cognizable Offenses)
- हत्या
- बलात्कार
- देशद्रोह
- घातक हथियारो से लैस होकर अपराध करना
- लोकसेवक द्वारा रिश्वत लेने का मामला
- योजना बनाकर गैर कानूनी कार्य करना
- सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना
- लोकसेवक नहीं होने पर गलत तरीके से खुद को लोकसेवक दर्शाकर विधि विरुद्ध कार्य करना, जनता को ऐसा आभास करना कि संबंधित व्यक्ति लोकसेवक है.
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CrPC में असंज्ञेय अपराध (Non-Cognisable offence)
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2 (एल) के मुताबिक, असंज्ञेय अपराध या असंज्ञेय मामले से ऐसा अभिप्रेत है, जिसमें पुलिस अधिकारी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का प्राधिकार नहीं होता है. ऐसे मामलों में पुलिस बिना वारंट किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती.
ये होती है असंज्ञेय अपराध (Non-Cognisable offence) की प्रक्रिया
किसी को बिना कोई चोट पहुंचाए किए गए जुर्म असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस बिना तहकीकात के मुकदमा दर्ज नहीं करती और शिकायतकर्ता भी इसके लिए पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता. अगर पुलिस ऐसे मामले में मुकदमा दर्ज नहीं करती तो वह ऐसी शिकायत पर कार्रवाई न करने की वजह को अपनी लॉग बुक में दर्ज करती है. इस बात की जानकारी भी सामने वाले व्यक्ति को दी जाती है. इस तरह के मामलों में जांच के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश हासिल करना होता है. कई बार पुलिस ऐसे मामलों में एफआईआर के बजाए एनसीआर (Non Cognizable Report) दर्ज कर लेती है. उसी के आधार पर पुलिस आगे की तहकीकात करती है.
आपको बता दें कि भारत ही नहीं बल्कि और भी देशों में वहां होने वाले अपराध को इसी प्रकार से दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है. ऐसे देशों में भारत के अलावा श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नाम शामिल हैं, जहां अपराध को इसी तरह से दो श्रेणी में विभाजित किया गया है.
परवेज़ सागर