जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ से निपटने के लिए केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, राज्यों को भेजा डी-रेडिकलाइजेशन प्लान

भारत सरकार ने जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ को रोकने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सख्त निर्देश दिए हैं. कैदियों की स्क्रीनिंग, निगरानी, पुनर्वास और फॉलोअप सिस्टम पर जोर दिया गया है.

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गृह मंत्रालय ने एक चिठ्ठी लिखकर राज्यों को निर्देशित किया है गृह मंत्रालय ने एक चिठ्ठी लिखकर राज्यों को निर्देशित किया है

जितेंद्र बहादुर सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 14 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 2:08 AM IST

De-Radicalisation in Prisons India: भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने देश की जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ (रेडिकलाइजेशन) को एक गंभीर चुनौती मानते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक अहम पत्र भेजा है. 1 जुलाई 2025 को जारी इस पत्र में कहा गया है कि जेलों में कई बार कैदी सामाजिक अलगाव, निगरानी की कमी और समूह गतिशीलता के चलते कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आ जाते हैं, जो बाद में अपराध और हिंसा का कारण बन सकते हैं.

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कैसे और क्यों बढ़ रहा है कट्टरपंथ जेलों में?
जेलों का माहौल अक्सर बंद और अलग-थलग होता है. ऐसे में कैदी कट्टरपंथी विचारों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जहां कैदियों ने जेल कर्मचारियों, अन्य कैदियों या बाहर के लोगों पर हमला करने की योजना बनाई. यही वजह है कि सरकार अब इस दिशा में समयबद्ध निगरानी और हस्तक्षेप की रणनीति बना रही है.

हर कैदी की होगी गहन जांच
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जेल में आने वाले हर कैदी की स्क्रीनिंग, मानसिक, सामाजिक और स्वास्थ्य मूल्यांकन के साथ की जाएगी. इसके अलावा, समय-समय पर उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे किसी कट्टरपंथी नेटवर्क का हिस्सा न बनें.

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उच्च जोखिम वाले कैदियों पर विशेष नजर
जो कैदी चरमपंथी विचारों के प्रति झुकाव रखते हैं या संदिग्ध गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं, उन्हें सामान्य कैदियों से अलग हाई सिक्योरिटी विंग में रखा जाएगा. इनके ऊपर निगरानी के लिए तकनीकी उपकरणों और इंटेलिजेंस इनपुट का उपयोग किया जाएगा.

कट्टरपंथ रोकने के लिए 6 अहम उपाय-

पहचान और जोखिम आकलन (Identification & Risk Assessment)
प्रत्येक कैदी का वैचारिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक आकलन होगा. यह प्रक्रिया जेल में प्रवेश के समय और नियमित अंतराल पर की जाएगी. कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों का सहयोग भी लिया जाएगा.

पृथक्करण और निगरानी (Segregation & Monitoring)
कट्टरपंथी या उच्च जोखिम वाले कैदियों को विशेष ब्लॉक या हाई सिक्योरिटी जेल में रखा जाएगा, जिससे वे अन्य कैदियों को प्रभावित न कर सकें. लगातार निगरानी की व्यवस्था होगी.

पुनर्वास कार्यक्रम (Rehabilitation Programmes)
इन कैदियों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी, धार्मिक विद्वानों से संवाद, समाजसेवकों से संपर्क और व्यावसायिक प्रशिक्षण से जोड़ा जाएगा. इसका उद्देश्य उनकी सोच में सकारात्मक बदलाव लाना है.

स्टाफ प्रशिक्षण और संवेदनशीलता (Staff Training & Sensitisation)
जेल कर्मचारियों को कट्टरता के प्रारंभिक संकेतों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. इसके लिए कार्यशालाएं और सिमुलेशन अभ्यास आयोजित होंगे. SOPs भी तैयार की जाएंगी.

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परिवार से संपर्क (Family Engagement)
परिवार से संपर्क बनाए रखना, कैदी के मानसिक संतुलन के लिए सहायक हो सकता है. इससे उग्र विचारों की प्रवृत्ति कम होने की संभावना रहती है.

डेटा संग्रह और शोध (Data Collection & Research)
राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे कट्टरपंथी कैदियों का एक सुरक्षित डेटाबेस बनाएं और समय-समय पर ट्रेंड्स का विश्लेषण करें. इससे भविष्य की रणनीतियों में मदद मिलेगी.

जेल से छूटने के बाद भी रहेगी नजर
सरकार का फोकस केवल जेल में ही नहीं बल्कि जेल से बाहर निकलने के बाद भी रहेगा. इसके लिए फॉलोअप निगरानी तंत्र (Post-release Surveillance System) पर काम किया जा रहा है ताकि पूर्व कैदी समाज में शांति से पुनः जुड़ सकें.

केंद्र का साफ संदेश
गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे इन दिशानिर्देशों को अपनी जेल व्यवस्था में तुरंत और प्रभावी ढंग से लागू करें. सरकार का मानना है कि इन उपायों से कैदियों का सफल पुनर्वास संभव होगा और चरमपंथी विचारधाराओं का असर कम किया जा सकेगा.

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