बिजली कनेक्शन, विवाद और विधायक की दबंगई... बाड़ी के दलित इंजीनियर पर जानलेवा हमले की पूरी कहानी

असल में राजस्थान के बाड़ी क्षेत्र के तत्कालीन विधायक गिर्राज मलिंगा पर 29 मार्च 2022 को एक दलित सहायक अभियंता हर्षाधिपति वाल्मिकी पर जानलेवा हमला करने का गंभीर आरोप है. इस हमले के दौरान AE वाल्मिकी के शरीर की 22 हड्डियां टूट गई थीं.

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AE पर जानलेवा हमले के आरोपी पूर्व MLA को सरेंडर करना होगा AE पर जानलेवा हमले के आरोपी पूर्व MLA को सरेंडर करना होगा

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

Dalit Engineer Murderous Attack 2022: राजस्थान के बाड़ी में दलित इंजीनियर पर जानलेवा हमले का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पूर्व विधायक गिरर्राज मलिंगा को राहत देने से इनकार कर दिया और मलिंगा को दो सप्ताह के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया है. इसके बाद दलित सहायक अभियंता हर्षाधिपति वाल्मिकी पर जानलेवा हमले का यह मामला एक बार फिर चर्चाओं में आ गया.

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असल में राजस्थान के बाड़ी क्षेत्र के तत्कालीन विधायक गिर्राज मलिंगा पर 29 मार्च 2022 को एक दलित सहायक अभियंता हर्षाधिपति वाल्मिकी पर जानलेवा हमला करने का गंभीर आरोप है. घटना के अनुसार, उस समय विधायक मलिंगा और उनके समर्थकों ने अभियंता वाल्मिकी पर सरकारी कार्यों में रुकावट और अन्य व्यक्तिगत रंजिश के कारण हमला किया था. इस हिंसक घटना से राज्य में भारी विवाद हुआ और दलित उत्पीड़न से जुड़े कई सवाल उठ खड़े हुए.

ये था पूरा घटनाक्रम
घटना वाले दिन, यानी 29 मार्च 2022 को बाड़ी के विधायक गिर्राज मलिंगा ने वाल्मिकी पर हमला करवाया था. बकौल हर्षाधिपति वाल्मिकी, उस दिन वो अपने कुछ सीनियर अफसरों के साथ बैठक कर रहे थे, तभी विधायक कुछ दूसरे लोगों के साथ उनके केबिन में घुस आए. किसी ने कुछ नहीं कहा और विधायक ने वहां पड़ी एक कुर्सी उठाकर सीधे उनके मुंह पर दे मारी. साथ में भी गिर्राज मलिंगा ने कहा कि तेरी इतनी हिम्मत की तू ठाकुरों के गांव के कनेक्शन काटेगा? इसके साथ ही विधायक के लोगों ने लाठी, बल्ले, रॉड और जो कुछ भी उन्हें मिला, उससे सहायक अभियंता को पीटना शुरू कर दिया. 

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बिजली विभाग के AE वाल्मिकी के मुताबिक, हमलावरों ने उनके जिस्म की एक-एक हड्डी तोड़ डाली और उन्हें इतना मारा जितना कोई किसी को मार सकता था. और फिर वे उन्हें मरने के लिए छोड़ कर वहां से फरार हो गए. जो लोग उस वक्त एई के कमरे में मौजूद थे, वे सभी अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गए थे. ये बयान हर्षाधिपति ने उस वक्त दिया था, जब वे जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में इलाज के लिए 580 दिन बिता चुके थे. 

वाल्मिकी ने शिकायत में कहा कि उन्होंने सरकारी कामकाज में किसी तरह की रुकावट नहीं डाली थी, लेकिन विधायक और उनके समर्थक पहले से ही उनके प्रति नाराज थे और इसी गुस्से में उन पर हमला किया गया. इस हमले में वाल्मिकी को गंभीर चोटें आईं. घटना के बाद उनके बयान और शिकायत के आधार पर पुलिस ने विधायक मलिंगा और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ केस दर्ज किया.

जांच और चार्जशीट 
घटना के बाद इस मामले को जांच के लिए सीआईडी-सीबी को सौंपा गया, लेकिन जांच धीमी गति से आगे बढ़ती रही. कई महीनों तक इस मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं की गई, जिससे वाल्मिकी और उनके परिवार ने न्याय पाने में देरी का आरोप लगाया. हालांकि, पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है, लेकिन विधायक मलिंगा के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई थी. बाद में सीआईडी-सीबी ने मलिंगा के खिलाफ भी चार्जशीट तैयार करने का संकेत दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट का दखल
मामला उच्चतम न्यायालय तक जा पहुंचा, जहां अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि मामले में देरी और विधायक की ताकतवर स्थिति के कारण पीड़ित और उनके परिवार को न्याय नहीं मिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए मलिंगा को झटका दिया और उन्हें सरेंडर करने का आदेश दिया. कोर्ट का यह निर्णय राज्य में कानून-व्यवस्था और दलित उत्पीड़न से जुड़े मामलों में शक्ति-संपन्न व्यक्तियों के खिलाफ न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण है.

अब तक का घटनाक्रम और परिणाम

- 29 मार्च 2022: विधायक गिर्राज मलिंगा और समर्थकों पर अभियंता हर्षाधिपति वाल्मिकी पर हमला करने का आरोप.
- पुलिस केस: 28 मार्च 2022 को वाल्मिकी की शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज किया.
- जांच: मामला सीआईडी-सीबी को सौंपा गया, लेकिन विधायक मलिंगा के खिलाफ चार्जशीट में देरी हुई.
- चार्जशीट: पांच अन्य अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट फाइल हुई, लेकिन मलिंगा के खिलाफ चार्जशीट लंबित रही.
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश: विधायक मलिंगा को सुप्रीम कोर्ट ने सरेंडर करने का निर्देश दिया.

मामले का स्टेट्स
इस आदेश के बाद, पूर्व विधायक मलिंगा को कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए सरेंडर करना होगा. इस घटना ने एक बार फिर प्रशासनिक व्यवस्था और दलित उत्पीड़न से जुड़े मामलों में न्याय की आवश्यकताओं पर ध्यान आकर्षित किया है. इस केस में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप दिखाता है कि न्यायपालिका कानून के समक्ष सभी को समान मानती है, चाहे वे कितने भी ताकतवर क्यों न हों.

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