'पापा मुझे बिजनेस करना है... 10 लाख दे दो', पिता को कितना देना चाहिए? फैसले लेने के ये तरीके

अगर बेटा कर रहा है कि पिताजी मुझे बिजनेस शुरू करने के लिए आपसे पैसे चाहिए. फिर ऐसी स्थिति में पिता को किस तरह से बेटे की मदद करनी चाहिए?

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अमित कुमार दुबे

  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 6:43 AM IST

'मैंने तय कर लिया है, मुझे बिजनेस करना है... ' अधिकतर माता-पिता को अपने बच्चों के इस फैसले का सामना करना पड़ता है. माता-पिता भी चाहते हैं कि उनके बच्चे कुछ बड़ा करें, जिससे समाज में उनका मान-सम्मान बढ़े. बच्चे भी चाहते हैं कि वो लाइफ में कुछ ऐसा करें कि माता-पिता को उनपर गर्व हो. अधिकतर पैरेंट्स अपने बच्चों को पेट काटकर अच्छी तालिम देते हैं. बड़े से बड़े स्कूल में पढ़ाते हैं ताकि वो काबिल बनें. 

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सच है कि कोई अभिभावक अपने बच्चों को असफल होते नहीं देखना चाहते. चाहे वो पढ़ाई हो, नौकरी हो, या फिर रोजगार में. अगर बच्चे कुछ बड़ा करने के लिए खासकर कारोबार के क्षेत्र में सपना देखता है, तो माता-पिता उसे हरसंभव मदद करते हैं, इसे वो अपना फर्ज मानते हैं.

अपने बच्चों को कैसे करें मदद?

दरअसल, अधिकतर माता-पिता अपनी पूरी कमाई और सेविंग (Saving) अपने बच्चों के पीछे झोंक देते हैं. अगर इतने से भी पूरे नहीं होते तो वो घर-जमीन पर कर्ज तक उठा लेते हैं. क्योंकि वो अपने बच्चों को निराश होते नहीं देखना चाहते. लेकिन वित्तीय तौर किसी भी माता-पिता को अपनी सारी कमाई अपने बच्चों के पीछे नहीं झोंक देना चाहिए. 

अब सवाल उठता है कि फिर अगर बेटा कर रहा है कि पिताजी मुझे बिजनेस शुरू करने के लिए आपसे पैसे चाहिए. फिर ऐसी स्थिति में पिता को किस तरह से बेटे की मदद करनी चाहिए? वित्तीय मामलों के जानकारों कहते हैं कि कभी भी वित्तीय फैसले इमोशनल होकर नहीं लेना चाहिए. उसके वर्तमान और भविष्य के परिणाम को ध्यान में रखकर माता-पिता को फैसला करना चाहिए. अगर माता-पिता को अपने बेटे के प्लान के बारे में पूरी जानकारी नहीं है तो वित्तीय जानकार से मदद ली जा सकती है.

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एक उदाहरण से समझते हैं...
अब आइए एक उदाहरण से जानते हैं कि पढ़ाई खत्म करने के बाद एक बेटा अपने पिता से कहता है कि मुझे आप 10 लाख रुपये दे दीजिए, मैं एक कारोबार शुरू कर रहा हूं, जिसमें अच्छी-खासी कमाई है. नौकरी से बेहतर मेरे लिए ये विकल्प है. इस फील्ड में अपना नाम रोशन कर सकता हूं. ऐसी स्थिति में अब पिता क्या करें? एक्सपर्ट्स के मुताबिक सबसे पहले पिता को अपने बेटे से उसके बिजनेस के बारे में विस्तार चर्चा करनी चाहिए. जो बिजनेस करना चाह रहा है, उसमें सालाना कितनी कमाई हो सकती है, बिजनेस का फ्यूचर ग्रोथ कैसा रहेगा? इस बिजनेस में कौन प्रतिद्वंदी है, और कैसे कमाई संभव है?

बेटे के जवाब से संतुष्ट होने के बाद फिर खुद विचार करें, आप उसकी 10 लाख रुपये में कितनी मदद कर सकते हैं. ताकि आपकी पूरी जमापूंजी दांव पर न लग जाए. क्योंकि जब बेटे इस तरह से फैसले लेने की उम्र में होते हैं तो उस समय पिता की उम्र 50 से ऊपर हो चुकी होती है. अगर उनके पास पैसे जमा हैं, तो उसमें बच्चों की शादी, घर, रिटायरमेंट, हेल्थ से जुड़े खर्चे भी उसी पर निर्भर होते हैं. इसलिए आंख मूंदकर अपनी जमापूंजी बच्चों न थमा दें. क्योंकि अगर किसी कारण से बच्चे कारोबार में असफल हो जाते हैं तो आप आर्थिक तौर पर बेसहारा हो जाएंगे.

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पैसे जुटाने के ये तरीके
इसलिए अगर बच्चे 10 लाख रुपये बिजनेस के नाम पर मांग रहे हैं, तो उसे कम से कम निवेश में बिजनेस को शुरू करने की सलाह दें. अगर 10 लाख ही चाहिए तो फिर आप 2 लाख रुपये खुद से दें और बाकी पैसे बैंक से लोन और अपने रिश्तेदार से दिलाने की कोशिश करें. अगर रिश्तेदारों से पैसे लेकर बिजनेस शुरू करेगा, तो लौटाने का दबाव बना रहेगा. साथ ही अगर बैंक से लोन मिलता है तो फिर समय-समय पर बैंक लोन की राशि लौटाने के लिए आगाह करता रहेगा. पिता के पैसे को लेकर अधिकतक बच्चे गंभीर नहीं होते हैं. उन्हें लगता है कि अगर बिजनेस नहीं चला कोई बात नहीं, पिताजी को पैसा लौटाकर नहीं देना पड़ेगा, यही असफलता का एक कारण बन जाता है. 

वित्तीय जानकारों का कहना है कि जब बच्चे बिजनेस के नाम पर पैसे मांगे तो अपनी वित्तीय हालात को देखकर अभिभावकों को फैसला लेना चाहिए. सबकुछ दांव पर नहीं लगा देना चाहिए. असफलता की स्थिति में ऐसे अभिभावक आर्थिक तौर पर टूट जाते हैं. इसलिए जब बेटे की मांग पूरी करने की स्थिति में न हों तो उन्हें समझाएं कि अगर बिजनेस नहीं चला तो फिर परिवार की राह आगे आर्थिक तौर पर मुश्किल हो जाएगी. 

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इस फॉर्मूले से सफल होने के चांस
गणित के मुताबिक 10 लाख रुपये में से बच्चे को केवल 2 लाख रुपये दें, बाकी 5 लाख रुपये लोन लेकर दें, ताकि चुकाने का जिम्मा बच्चों के ऊपर ही हो और बाकी पैसे रिश्तेदारों से ले सकते हैं. ये भी एक तरह से लोन ही होता है, इस पर केवल ब्याज नहीं लगता है. लेकिन लौटाने के लिए वक्त निर्धारित रहता है. साथ ही सामाजिक तौर पर बच्चों पर रिश्तेदारों के पैसे लौटाने का दबाव होता है. ऐसे में जब पूरी जिम्मेदारी के साथ बच्चे अपना बिजनेस को शुरू करेंगे, तो सफल होने का चांस ज्यादा होता है. और बच्चे कर्ज को ध्यान में रखकर मेहनत करते हैं.

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