भारतीय बिजनेस जगत के लिए बुधवार को देर शाम एक बुरी खबर आई. टाटा संस के पूर्व चेयरमैन और अरबपति उद्योगपति रतन टाटा का निधन (Ratan Tata Death) हो गया, वे 86 साल के थे. 28 दिसंबर 1937 में जन्मे रतन टाटा ने 21 साल तक मुख्य भूमिका में रहते हुए टाटा समूह (Tata Group) का नेतृत्व किया और ग्रुप की कंपनियों को बुलंदियों पर पहुंचाया. उन्होंने ग्रुप के बिजनेस से जुड़े 5 ऐसे फैसले लिए, जिनके जरिए टाटा समूह की नई तकदीर लिखी गई और उसे घर-घर तक पहचान मिली. आइए जानते हैं इनके बारे में...
पहला- जब रतन टाटा ने खरीदी टेटली
जेआरडी टाटा का उत्तराधिकारी बनने के बाद रतन टाटा ने कई ऐसे फैसले किए जिसने टाटा समूह (Tata Group) की आय को 40 गुना बढ़ाया और कंपनी का प्रॉफिट करीब 50 गुना तक बढ़ा. इस कड़ी में सबसे अहम फैसला साल 2000 में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण करना रहा. ब्रिटिश चाय कंपनी Tetley के अधिग्रहण के बाद टाटा समूह को यूरोपीय बाजार में अपनी बढ़त बनाने में मदद मिली. इसके बाद Tata दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी बन गई और इसने Uniliver के ब्रुक बांड को चुनौती देना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं, इससे टाटा समूह का नाम यूरोप के घर-घर पहुंचा.
दूसरा- देश से कहा ‘जागो रे’
Tata Tea से ही जुड़ा एक अहम कैंपेन ‘Jaago Re' रहा. 2007 में जब ये विज्ञापन अभियान लॉन्च हुआ, तब रतन टाटा ही कंपनी क प्रमुख थे. भ्रष्टाचार विरोधी इस विज्ञापन अभियान ने इंडियन मार्केट में दो तरह से टाटा समूह की पहचान मजबूत की. एक टाटा समूह की ‘ईमानदार’ छवि को मजबूत किया, साथ ही लोगों का टाटा में भरोसा बढ़ाया. इसी के साथ Tata के चाय बिजनेस को बढ़ाने में मदद की. उस समय तक भारत के चाय बाजार में Uniliver समूह के Brooke Bond ब्रांड की चाय का दबदबा था, लेकिन Jaago Re अभियान ने उसकी बादशाहत को तोड़ा.
तीसरा- नैनो असफल, लेकिन दी नई कुंजी
रतन टाटा के जीवन का सबसे अहम पल जनवरी 2008 रहा. यही वो महीना था जब उन्होंने देश को 1 लाख रुपये से कम कीमत वाली Tata Nano कार दी. रतन टाटा के इस प्रोडक्ट ने देश के हर घर में टाटा के नाम को जगह दी, वजह उन्होंने आम आदमी के कार खरीदने के सपने को साकार करके दिखाया. इससे जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है कि एक बार रतन टाटा ने एक स्कूटर पर 4 लोगों के परिवार को जाते हुए देखा, तभी उन्होंने निर्णय किया कि वो 1 लाख रुपये तक की कीमत में कार लॉन्च करेंगे. Nano इसी सपने का परिणाम थी. हालांकि Tata Nano का उत्पादन 2019 में बंद हो गया. लेकिन इस फैसले के बाद Tata Motors ने अपनी स्ट्रैटजी बदलने का काम किया और आज कंपनी बुलंदियों पर है.
चौथा- फोर्ड से लिया बदला
टाटा मोटर्स का कार बिजनेस जब ठप पड़ने लगा, तो कई लोगों ने रतन टाटा को इसे बेचने की सलाह दी. फोर्ड इसे खरीदने के लिए राजी हो गई और डील साइन करने के लिए रतन टाटा को अमेरिका में कंपनी के हेडक्वार्टर बुलाया गया. मीटिेंग के दौरान फोर्ड के चेयरमैन ने रतन टाटा से कहा कि वो उनकी कंपनी खरीदकर उन पर एहसान करेंगे. ये बात रतन टाटा को रास नहीं आई. बाद में जब 2008 में फोर्ड लगभग दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई. तब टाटा ने ही फोर्ड से लक्जरी कार कंपनी Jaguar Land Rover को खरीदा. हैचबैक कारों की मांग वाले देश में टाटा के JLR खरीदने के फैसले को बेवकूफाना बताया गया. लेकिन आज इंडियन और ग्लोबल मार्केट में JLR की पोजिशन इस फैसले की सफलता की कहानी है. चीन और यूरोप के बाजार में JLR फिर से घर-घर में पहचानी जाने वाली कार बनती जा रही है.
पांचवां- सुनामी में दी ‘सुजल’
Ratan Tata ने कई मौकों पर ग्रुप की पहचान ऐसी कंपनी के तौर पर कराई जो मुश्किल के वक्त में देश की मदद करने को आगे रहती है. फिर बात सुनामी की हो या फिर कोरोना काल की. Corona के समय जब देश मुसीबत में था तब उन्होंने 1500 करोड़ रुपये का दान किया था. इससे पहले जब साल 2004 में सुनामी आई थी, तब समूह की एक कंपनी ने ‘सस्ता’ वाटर प्यूरीफायर ‘सुजल’ डेवलप किया और हजारों लोगों को मुफ्त में इसे उपलब्ध कराया था. इसी प्रोडक्ट को TCS ने और अच्छे से डेवलप करके ‘Tata Swach' नाम से लॉन्च किया था और इसने लगभग हर आम आदमी की किचन में जगह बना ली.
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