भारत के नए लेबर कानून दशकों में सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा रहा है. यह प्राइवेट सेक्टर में काम को नया आकार दे सकता है. ये बदलाव मजबूत वेतन सिक्योरिटी, सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट, गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए मान्यता और नियोक्तओं-कर्मचारियों दोनों के लिए एक स्प्ष्ट नियमों का वादा करते हैं.
यह तो रही फायदे की बात, लेकिन इन सुधारों के पीछे कई चुनौतियां भी हैं. इसका सामना कंपनियों, वर्कर्स और मानव संसाध टीमों को नए सिस्टम लागू करने के बाद करना होगा. ग्रासिक सर्च के डायरेक्टर डॉ. राजीव ठाकुर का मानना है कि इन कानूनों का उद्देश्य भविष्य से जुड़ा हुआ है. यह बदलाव सरकार के नजरिए के अनुसार ही है.
उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा कवरेज और गिग व प्लेटफॉर्म कर्मचारियों के लिए यह बदलाव इससे पहले नहीं हो सकता था. मिनिमम सैलरी लिमिट, टाइम पर सैलरी और बेहतर सोशल सिक्योरिटी को डेवलप बनाने के लिए आवश्यक हैं.
हायर पेरोल कॉस्ट
उन्होंने चेतावनी दी कि संगठनों को इस बदलाव के दौरान आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए. बढ़ी हुई वेतन लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है. सामाजिक सुरक्षा में योगदान बढ़ने से टेक-होम सैलरी कम हो सकती है. नौकरी की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है. एक्सपर्ट ने कहा कि किसी भी विकसित देश के लिए बदलाव जरूरी है और उसकी चुनौतियां भी स्वाभाविक हैं.
कंपनियों के लिए सबसे बड़े बदलावों में से एक नया सैलरी स्ट्रक्चर है. अब बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते को मिलाकर कर्मचारी के कुल सैलरी का कम से कम आधा हिस्सा होना चाहिए. इस एक बदलाव से सभी इंडस्ट्रीज के अलाउंस में बदलाव आएगा और कर्मचारियों के लिए टेक होम सैलरी कम हो जाएगी.
हाई बेसिक सैलरी के साथ PF, ग्रेच्युटी, ESI और लीव कैश जैसी चीजें बढ़ जाएंगी. आईटी सेक्टर्स, मैन्युफैक्चरिंग, लॉजिस्टिक्स और रिटैल सेक्टर्स की कंपनियों के लिए यह बदलाव सैलरी बिल्स में बड़ी बढ़ोतरी करेगा.
टेक होम सैलरी
कर्मचारियों को भी इस बदलाव का असर उठाना पड़ सकता है. ये कानून सैलरी सेफ्टी को मज़बूत करेंगी, रोज़गार की सुरक्षा में सुधार करेंगी और अनौपचारिक क्षेत्र के लाखों कर्मचारियों को लाभ पहुंचाएंगी, लेकिन साथ ही ये टेक-होम सैलरी को भी कम कर सकती हैं. ज्यादातर सैलरी को बेसिक सैलरी में शामिल करने से, पीएफ और ग्रेच्युटी कटौतियां बढ़ जाएंगी.
पीएफ सैलरी लिमिट से नीचे के वर्कर्स या जटिल भत्ता संरचना वाले क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के लिए, यह प्रभाव ध्यान देने योग्य हो सकता है. इन चुनौतियों के बावजूद, नए कानून के कई पहलू स्पष्ट रूप से वर्कर्स के लिए लाभकारी हैं. न्यूनतम वेतन यह सुनिश्चित करता है कि लगभग 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को उचित वेतन की कानूनी गारंटी मिले.
बड़ी कंपनियों के लिए छंटनी के नियम सख्त हो गए हैं, जिससे वर्कर्स को बेहतर मुआवजा और पुन: स्किल डेवलपमेंट सहायत मिलेगा. सिक्योरिटी और हेल्थ सिक्योरिटी का विस्तार सभी सेक्टर्स में किया जा रहा है और गिग-प्लेटफॉर्म वर्कर्स को पहली बार औपचारिक मान्यता और सोशल सिक्योरिटी कवरेज दिया जाएगा.
छोटे बिजनेस के लिए संघर्ष
कंपनियों को सैलरी स्ट्रक्चर में संशोधन करना होगा, मानव संसाधन प्रणालियों को उन्नत करना होगा, रोजगार कॉर्न्टैक्स की समीक्षा करनी होगी और नए नियमों को लागू करने के लिए टीमों को फिर से ट्रेनिंग देना होगा. छोटे व्यवसाय, विशेष रूप से कम मार्जिन पर काम करने वाले MSME, इस बदलाव के दौरान सबसे ज्यादा संघर्ष कर सकते हैं. सलाहकारों का अनुमान है कि व्यवस्था के स्थिर होने से पहले साल में भारी पुनर्गठन की आवश्यकता होगी.
आजतक बिजनेस डेस्क