भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक बार फिर तनाव बढ़ता दिख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारत पर ऊंचे आयात शुल्क (Import Duty) लगाने का आरोप लगाते हुए इसे 'टैरिफ किंग' तक कह डाला था. लेकिन दूसरी तरफ, भारतीय थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव यानी GTRI ने साफ कहा है कि भारत के आयात शुल्क पूरी तरह से वैश्विक व्यापार नियमों के मुताबिक हैं.
'ट्रंप के आरोपों में दम नहीं'
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अपनी बात अमेरिकी सरकार के सामने मजबूती से रखनी चाहिए क्योंकि भारत के टैरिफ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन यानी WTO के नियमों के तहत हैं. 1995 में डब्ल्यूटीओ समझौते को अमेरिका समेत सभी देशों ने मंजूरी दी थी. 1995 में जब डब्ल्यूटीओ बना, तब विकसित देशों ने विकासशील देशों को ऊंचे टैरिफ की छूट दी थी.
इसके बदले में भारत जैसे देशों ने बौद्धिक संपदा अधिकारों और कृषि नियमों पर समझौते किए थे. इसके बावजूद ट्रंप ने भारत को टैरिफ अब्यूजर कहा है. जीटीआरआई ने कहा कि इन नियमों से ज्यादातर फायदा अमीर देशों को ही हुआ है और ट्रंप इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं.
अब मौजूदा हालात में अमेरिका भारत से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी FTA की मांग कर सकता है. इसके तहत सरकारी खरीद, डेटा नियम और कृषि सब्सिडी में बदलाव की शर्तें हो सकती हैं. भारत ने दशकों से इन मांगों का विरोध किया है.
असल में अमेरिका क्या चाहता है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के साथ एफटीए की बातचीत आसान नहीं होगी. अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी सरकारी खरीद अमेरिकी कंपनियों के लिए खोले. कृषि सब्सिडी घटाए और डेटा नियमों में ढील दे.
लेकिन भारत अभी इसके लिए तैयार नहीं है. इसके अलावा, भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली चीजों में लोकल वैल्यू एडिशन कम है, क्योंकि आईफोन, सोलर पैनल, हीरे और पेट्रोकेमिकल्स में कम स्थानीय योगदान है, और अमेरिका भारत पर ऊंचे टैरिफ का जवाब दे सकता है.
जीटीआरआई का सुझाव है कि भारत के पास दो रास्ते हैं.
पहला- ज्यादातर औद्योगिक सामानों पर अमेरिका के लिए शून्य टैरिफ की पेशकश करना.
दूसरा- अमेरिका के नए टैरिफ को बिना जवाबी कार्रवाई के स्वीकार करना.
लेकिन एफटीए पर बातचीत को सबसे खराब विकल्प बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, बातचीत में समय लगेगा और तब तक ट्रंप शुल्क बढ़ा सकते हैं, जिससे समझौता बेकार हो जाएगा. ऐसे में भारत को अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी. अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो व्यापार संतुलन पर असर पड़ सकता है.
टैरिफ को लेकर टकराव
हालांकि कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariffs) का भारत पर कम असर होगा क्योंकि वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी काफी कम है. फिलहाल अमेरिका भारत पर जितना टैरिफ लगाता है उससे भारत का अमेरिका पर लगाया जाने वाला टैरिफ 6.5% ज़्यादा है. खासकर खाने-पीने की चीज़ों, जूतों, कपड़ों, गाड़ियों और रोज़मर्रा के सामानों पर ये अंतर बड़ा है. ICICI सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट कहती है कि ऊंचे टैरिफ से अमेरिकी ग्राहकों को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा क्योंकि अमेरिका 3.3 ट्रिलियन डॉलर का सामान आयात करता है. अगर टैरिफ 5% बढ़ता है तो भारत के निर्यात पर 6-7 अरब डॉलर का असर पड़ सकता है. लेकिन अगर अमेरिका दूसरे देशों पर भारत से ज़्यादा टैरिफ लगाएगा तो भारत को फायदा भी हो सकता है.
भारत का ऑटो उद्योग चिंतित
भारत में हर साल करीब 40 लाख पैसेंजर व्हीकल्स की बिक्री होती है. टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसी कंपनियां टैरिफ हटाने के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि इससे स्थानीय उत्पादन को नुकसान होगा और सस्ती विदेशी इलेक्ट्रिक गाड़ियां बाज़ार में छा जाएंगी. सरकार ने पिछले महीने ऑटोमेकर्स से बात करके टैरिफ को धीरे-धीरे कम करने पर सहमति दिखाई है लेकिन इसे एकदम हटाने से इनकार किया है.
भारत-अमेरिका व्यापार लक्ष्य
दोनों देश 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं. पिछले महीने ट्रंप और मोदी की मुलाकात के बाद टैरिफ विवाद सुलझाने का फैसला हुआ था. फिलहाल भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका में बातचीत कर रहे हैं. इसमें इस साल दोनों देशों के बीच किए जाने वाला व्यापार समझौते पर भी बातचीत जारी है. इस बीच टेस्ला ने भारत में पहला शोरूम साइन कर लिया है और देश के अलग अलग शहरों में हायरिंग भी शुरु कर दी है. सरकार ने भी कुछ लग्ज़री गाड़ियों पर टैरिफ कम किया है. लेकिन बड़े बदलावों को होने में वक्त लगने का अनुमान है.
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