एशिया के सबसे रईस मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कैपिटल बिकने जा रही है. नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली है और RCap के कर्जदाताओं द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. कंपनी भारी-भरकम कर्ज में डूबी हुई है और इसे खरीदने की दौड़ में सबसे ज्यादा बोली लगाते हुए Torrent Group आगे है.
टोरेंट ग्रुप ने लगाई है सबसे बड़ी बोली
अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग प्रोसेस से गुजर रही है. साल 2022 में पहले दौर की बिडिंग में इस कंपनी के लिए कई बड़े कॉरपोरेट ग्रुप्स ने बोली लगाई है और इस रेस में सबसे आगे अहमदाबाद बेस्ड टोरेंट समूह है. Torrent Group की बोली 8,640 करोड़ रुपये की है. एलसीएलटी के पास दूसरे दौर की बिडिंग के लिए अनुरोध के लिए याचिका डाली गई थी. इस पर मंगलवार 21 फरवरी को सुनवाई पूरी हो चुकी है.
दिसंबर 2022 में लगाई गई थी बोलियां
Torrent Investments ने बीते 9 जनवरी 2023 को एक याचिका दायर कर ट्रिब्यूनल से RCap के अधिग्रहण के लिए फिर से नीलामी आयोजित करने की कर्जदाताओं की योजना को रद्द करने का अनुरोध किया था. इसके बादहिंदुजा समूह की फर्म ने भी NCLT के आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी. बता दें राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण के एक आदेश के अनुसार कर्जदाताओं को 31 जनवरी, 2023 तक रिलायंस कैपिटल की समाधान प्रक्रिया पूरी करने का समय दिया गया था. इसके चलते 21 दिसंबर 2022 को रिज्यूलशन प्रोसेस (Resolution Process) के तहत नीलामी प्रक्रिया शुरू की गई थी.
कंपनी पर 40 हजार करोड़ का कर्ज
रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल पर करीब 40,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. इस गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) के रूप में काम करने वाली कंपनी के बोर्ड को 29 नवंबर 2021 को बर्खास्त कर दिया गया था. इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने Bank Of Maharashtra के पूर्व कार्यकारी निदेशक नागेश्वर राव को प्रशासक नियुक्त कर दिया था. इसके अगले ही दिन केंद्रीय बैंक ने राव की मदद के लिए एक तीन सदस्यीय पैनल भी गठित कर दिया था. अब इसे बेचे जाने की पूरी तैयारियां की जा चुकी हैं.
टॉरेंट ग्रुप की ओरो से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दलीलें पूरी करते हुए कहा कि दिवाला एवं इंसॉल्वेसी और बैंकरप्सी कोड(IBC) के तहत अधिकतम मूल्य हासिल करने का इरादा रहता है, लेकिन साथ ही संपत्ति के पुनरुद्धार पर फोकस किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आईबीसी एक ऋण वसूली मंच नहीं है और ऋणदाताओं की समिति (COC) को उनकी व्यक्तिगत वसूली से अलग देखना चाहिए.
aajtak.in