चुनाव से पहले बिजली मुफ्त करने का ऐलान, बिहार की आर्थिक सेहत पर नए सवाल खड़े करता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव से पहले हर महीने 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने का ऐलान किया है. पहले से ही बिजली पर दी जा रही सब्सिडी राज्य के विकास बजट का आधा हिस्सा निगल रही है. 2024–25 में 'मुख्यमंत्री विद्युत उपभोक्ता सहायता योजना’ के तहत राज्य सरकार ने 15,343 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है.
बिहार के लिए क्यों मायने रखता है फ्री बिजली का मुद्दा?
बिहार जैसे सीमित संसाधनों वाले राज्य के लिए ऐसी लोक-कल्याणकारी योजनाएं वित्तीय असंतुलन पैदा कर सकती हैं. राज्य का पूंजीगत व्यय अब ऋण चुकाने में जाने की आशंका है.
17 जुलाई को नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि बिहार में हर महीने 125 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी. इसके साथ ही अगले तीन वर्षों में घर-घर रूफटॉप सोलर पैनल भी लगाने की योजना का जिक्र किया. यह कदम चुनाव से ठीक पहले उठाया गया है और यह भारतीय राजनीति में वोट पाने के लिए मुफ्त सुविधाओं के वादे की बढ़ती प्रवृत्ति को दिखाता है.
फ्रीबीज नया नहीं है. लेकिन अब इसका दायरा बढ़ रहा है.
दिल्ली: 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली
कर्नाटक: महिलाओं को हर महीने 2,000 रुपये
राजस्थान: स्मार्टफोन वितरण
तमिलनाडु: लैपटॉप बांटे गए
राज्य सरकारों पर फ्रीबीज का बोझ कितना आता है?
राज्य सरकारों पर इसका भारी बोझ पड़ता है. 2023-24 में अनुमानित मुफ्त योजनाओं और सब्सिडीज की लागत:
महाराष्ट्र: 96,000 करोड़ रुपये (GSDP का 2.2%)
कर्नाटक: 53,700 करोड़ रुपये (1.9%)
बिहार: 20,000 करोड़ रुपये के आसपास (2.1%)
पहले से संकट में हैं कई राज्य
पंजाब, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्य पहले ही राजकोषीय संकट झेल रहे हैं. NITI आयोग ने राजकोषीय स्वास्थ्य के मामले में पंजाब को सबसे निचले पायदान पर रखा है, वजह है अत्यधिक उधारी.
क्या बिहार यह खर्च उठा सकता है?
यह सिर्फ नीति की बात नहीं है, सक्षमता की भी है. बिहार की टैक्स वसूली बहुत कमजोर है और उधारी की क्षमता भी सीमित है. जब खर्चे लगातार बढ़ रहे हों और आमदनी घट रही हो, तो क्या एक और गारंटी झेली जा सकती है?
देश की केवल 2–3 फीसदी आबादी (अधिकतर शहरी मध्यम वर्ग) ही इनकम टैक्स देती है- और अब यह वर्ग इन सब्सिडीज के बोझ से नाराज होता जा रहा है.
नीतीश कुमार ने क्या कहा?
नीतीश ने कहा, 'हम सुनिश्चित करेंगे कि 125 यूनिट बिजली मुफ्त मिले.' वहीं भारतीय रिजर्व बैंक ने 2024-25 के बजट पर आधारित अपनी रिपोर्ट 'State Finances: A Study of Budgets' में चेताया है कि 'इस तरह का खर्च राज्य की बाकी जरूरी सामाजिक और बुनियादी ढांचे की योजनाओं के लिए संसाधनों को सीमित कर सकता है.'
शुभम सिंह / सम्राट शर्मा / दीपू राय