अभी हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने विश्वकप खिताब जीतकर दुनियाभर में अपनी जीत का न सिर्फ परचम लहराया है, बल्कि इन खिलाड़ियों ने क्रिकेट के खेल को जेंडर न्यूट्रल बना दिया है. यह उपलब्धि एक दिन में हासिल नहीं हुई है. इसके पीछे सदियों की तपस्या, युगों की प्रतीक्षा और एक लंबे कालखंड तक लगातार होता आया संघर्ष शामिल है. इसी संघर्ष को समय-समय पर अभिव्यक्ति मिली है, जिसका एक जरिया कूची और कैनवस भी बने हैं.
दीवार पर टंकीं स्त्री संघर्ष की आकृतियां
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में संघर्ष और इसकी ऐसी अभिव्यक्ति दीवारों पर टांकी गई हैं. आदमकद कैनवास पर बिखरे उम्मीदों के तमाम रंग एक अलग ही कहानी बयां करते हैं और जब आप इन्हें देखते हैं तो ये सिर्फ नजर नहीं आते, इनसे आती है एक आवाज भी, जिसे आप कान लगाकार सुनते हैं तो सुनाई देंगे स्त्रियों द्वारा उनके सपने की बुनावट के स्वर, जिसे वे आजादी के खांचे पर संघर्ष का ताना-बाना बुन कर कस रही हैं.
IIC में कला प्रदर्शनी
IIC के कमला देवी कॉम्प्लेक्स की दीवारें शताब्दियों के इसी संघर्षों के शब्द चित्रों से सजी धजी हुई हैं और अगले 09 नवंबर तक ये दीवार यूं ही संघर्ष की इस कहानी को कहती रहेगी. तब तक आपके पास भी अच्छा मौका है, अगर आप कैनवस की भाषा में दिलचस्पी रखते हैं तो ‘विविंग वॉटर: फेमिनिन काउंटरकल्चर्स इन पेंट एंड प्रिंट’ (Weaving Water: Feminine Countercultures in Paint and Print), आपके लिए ही है.
भारतीय कला जगत में नया नजरिया
यह प्रदर्शनी पारंपरिक चित्रकला प्रदर्शनियों से अलग आपके लिए अलग ही अनुभव रखती है और समाज में स्त्रियों द्वारा झेली जाने वाली चुनौतियों को कला के माध्यम से उजागर करती है. इसका क्यूरेशन सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ ज्योति ए. कठपालिया ने किया है. यह प्रदर्शनी पद्मश्री अजीत कौर की आत्मकथा ‘विविंग वॉटर’ से प्रेरित है. इस आत्मकथा में व्यक्त पीड़ाओं, अनुभवों और नारी मन की जटिल भावनाओं को पंद्रह प्रसिद्ध महिला कलाकारों ने अपने चित्रों, मूर्तियों और प्रिंट कला में तब्दील किया है. इन सभी कलाकृतियों में साहित्य, चित्रकला और स्त्री-अनुभव का ऐसा अद्भुत संगम देखने को मिलेगा जो भारतीय कला-जगत में एक नई दृष्टि स्थापित करता है.
इस प्रदर्शनी की मूल संकल्पना दो प्रतीकों ‘जल’ और ‘बुनाई’ पर आधारित है. ‘जल’ प्रवाह, स्मृति और पहचान का प्रतीक है, जबकि ‘बुनाई’ जीवन में मौजूद पैटर्न, दुहराव और लगातार होने वाले निर्माण का. इन दोनों प्रतीकों के जरिये कलाकारों ने स्त्री जीवन की निरंतरता और संवेदनशीलता को देखने लायक मीडियम में बदल दिया है.
लेखिका अजीत कौर की आत्मकथा के सुरों को दिया आकार
कलाकारों ने अजीत कौर की आत्मकथा से नारी-स्वर, स्वीकारोक्ति और प्रतिरोध के उन अंशों को उठाया है जो निजी पीड़ा को सामूहिक कथा में बदल देते हैं. इन कृतियों में घरेलू इतिहासों की जीवंत लिखावट है, निजी अनुभवों को सार्वजनिक संवाद में बदलने की कला है और यही इस प्रदर्शनी का सार है जो व्यक्तिगत अनुभव को सामाजिक ढांचे में बदल देता है.
15 प्रसिद्ध महिला चित्रकारों के उत्कृष्ट कार्यों का प्रदर्शन
इस प्रदर्शनी में 15 प्रसिद्ध भारतीय महिला कलाकारों के कार्य शामिल हैं, जिनमें अनुपम सूद, गोगी सरोज पाल, जयश्री बर्मन और अर्पणा कौर जैसे नाम खासतौर पर लिए जा सकते हैं. अर्पणा कौर न केवल एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार हैं, बल्कि अजीत कौर की पुत्री भी हैं. उनके चित्रों में मां के जीवन और संघर्ष की गहरी झलक मिलती है. क्यूरेटर ज्योति ए. कठपालिया ने इस प्रदर्शनी को इतने करीने और व्यापक स्तर पर बुना है कि पुराने और नए कलाकारों की कृतियां एक-दूसरे से बात करती सी लगती हैं. इसके साथ ही आपको यहां एक साथ ऑयल, एक्रेलिक, चारकोल, सिल्कस्क्रीन, इचिंग, मिक्स्ड मीडिया इंस्टॉलेशन और मूर्तिकला तक का समावेश एक साथ मिलता है जो इस प्रदर्शनी को समृद्ध बना देता है.
‘विविंग वॉटर’ भारतीय कला-जगत में एक साहसिक प्रयास है, जो साहित्य और दृश्य कला, इन दो सशक्त मीडियम को एक मंच पर लाता है. यह प्रदर्शनी उस परंपरा को तोड़ती है, जिसमें स्त्री-कला को केवल ‘महिलाओं की प्रदर्शनी’ तक सीमित कर दिया जाता है. इसके विपरीत, यह प्रदर्शनी स्त्री-अनुभव को समाज और राजनीति की मुख्यधारा में लाती है.
चित्र... जो बन जाते हैं इंतजार की परिभाषा
अजीत कौर की आत्मकथा, जो अब तक सीमित भाषाई क्षेत्रों में जानी जाती थी, इस प्रदर्शनी के माध्यम से एक व्यापक सांस्कृतिक विमर्श का हिस्सा बन रही है. यह न केवल उनके साहित्यिक योगदान का विस्तार है, बल्कि एक नई पीढ़ी के सामने स्त्री-संघर्ष की ऐतिहासिक गाथा को प्रस्तुत करने का अवसर भी. ‘विविंग वॉटर’ एक तर्क यह भी सामने रखती है कि असली बदलाव सबसे पहले तब असरकारी बनता है, जब आप चुप्पी तोड़ते हैं, न सिर्फ कानून के भरोसे, क्योंकि कानून भी तब मददगार हो सकेगा जब आप मुंह खोलकर मदद मांगेंगे. चित्रों की यह अद्भुत शृंखला अपनी शुरुआत से जब आखिरी छोर तक पहुंचती है तो यह अव्यक्त से व्यक्त की ओ ले जाती है और मोक्ष की ओर इशारा करती है. मोक्ष... जो असल में वास्तविक और नैसर्गिक मुक्ति है. वह मुक्ति जो बदलावों से भरी है और जिसका इंतजार अभी भी जारी है.
विकास पोरवाल