रंग, कूची और कैनवस... इन तीनों का साथ जब मिलता है तो विचारों के बन रहे खाके में को जो उपमा मिलती है उसे सुंदरता कहते हैं. यह सुंदरता सिर्फ आकार, आकृति या संरचना की नहीं होती है, इस सुंदरता के पीछे छिपे होते हैं अनगिनत, अनकहे संदेश. जो संकेत किसी बड़ी-बड़ी व्याख्या से नहीं समझाया जा सकता है, संकेतों के वे संदेश एक चित्र के जरिए आसानी से लोगों के मन तक की यात्रा आसानी से कर ले जाते हैं. जब ऐसा हो जाता है तो चित्र और चितेरे दोनों की साधना असली रंग ले आती है.
इंदौर के निवासी हैं अनमोल
इंदौर और मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात ये है कि ऐसा ही एक प्रयास वैश्विक स्तर पर गर्व का अनुभव करा रहा है. तमाम पुरस्कारों, प्रशस्ति पत्रों और रिकॉर्ड पर जिस शख्सियत का नाम दर्ज है, उन्हें अनमोल माथुर के नाम से पहचाना जाता है और इस नाम के साथ जो उपलब्धि जु़ड़ी है, उसे कहते हैं फ्लूइड पेंटिंग. हालांकि वह सीधे तौर पर न रंग का इस्तेमाल करते हैं, न कूची और न ही कैनवस... फिर कैसे बनती हैं ये पेंटिंग?
क्या है फ्लूइड पेंटिंग?
आधुनिक चित्रकला के विभिन्न आयाम में 'फ्लूइड पेंटिंग' उस शय का नाम है, जिसे "फ्लूइड डिजिटल आर्ट" कहा जाता है. यह तरल बनावट वाली कला शैली 38 वर्षीय अनमोल माथुर की पेंटिंग्स को अनूठा और आकर्षक बनाती है. अनमोल, दुनिया के पहले फ्लूइड डिजिटल कलाकार हैं और अपनी कला के जरिये प्राचीन भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाओं और विज्ञान को बखूबी दर्शा रहे हैं. उनकी कला न केवल सौंदर्य को बढ़ाती है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों और पृथ्वी को बचाने के संदेश को भी समर्पित है. खास बात है कि अनमोल 100 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय टैगोर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
कई पुरस्कारों से हैं सम्मानित
यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक नीतियां और सार्थक विकास सम्मेलन 2025 जो स्पेन सरकार द्वारा पेरिस (फ्रांस) में आयोजित किया जाएगा, अनमोल माथुर इस कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. उनकी कलाकृतियां थीम आधारित संस्कृति और शिक्षा को प्रस्तुत करेंगी. इसके अलावा, उनका नाम महात्मा गांधी पुरस्कार के लिए भी नामांकित भी हुआ है. उनकी कला को यूनाइटेड नेशन एशिया पैसिफिक में भी सराहना मिली है.
अनमोल ने इसी साल महाकुंभ के दौरान भी डिजिटल पेंटिंग बनाई थी और यह काफी चर्चा में भी रही थी. वह कहते हैं, "महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है. इस आयोजन में शामिल होने वाले साधु-संतों को अलग तरीके से पेश करने के लिए इस आर्ट का इस्तेमाल किया था."
कैसे बनाते हैं पेटिंग?
डिजिटल पेंटिंग, कंप्यूटर या ग्राफिक टेबल पर डिजिटल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके बनाई जाने वाली पेंटिंग होती है. इसमें डिजिटल ब्रश का इस्तेमाल किया जाता है. डिजिटल पेंटिंग बनाने में पिक्सेल सिमुलेशन के जरिए डिजिटल ब्रश को तेल, ऐक्रेलिक, पेस्ट, चारकोल और एयरब्रश की तरह इस्तेमाल किया जाता है. आमतौर पर इसका इस्तेमाल फिल्मों और विज्ञापनों में किया जाता है.
क्या है फ्लूइड कहने की वजह?
इसे फ्लूइड इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि नदी की कोई धारा आहिस्ता-आहिस्ता बह रही हो. आर्ट का ये फॉर्म कुछ-कुछ पौराणिकता का अहसास भी समेटे हुए है. पुराणों में व्यक्त और अव्यक्त के बीच की जो बारीक रेखा है, वह किसी बहाव की ही तरह है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि ज्योति स्वरूप ज्ञान जब तत्व रूप में बदलता है तो इसके बीच की कड़ी बहाव ही है. इसी बहाव का नाम आकाश गंगा है. धरती के कोर के भीतर बहता हुआ विद्युत चुंबकीय पदार्थ भी इसी बहाव का रूप है. ज्वालामुखी के बहते लावा में भी यही बहाव है और मानव मस्तिष्क के भीतर दिमाग की जो जैली जैसी संरचना है, वह भी इसी बहाव का चेहरा है.
बहाव जो साकार और निराकार का भेद मिटा देता है
इसे और करीने से समझना हो तो अनमोल कहते हैं 'उस कहानी पर ध्यान दीजिए, जहां भगवान कृष्ण अपने साकार रूप से पिघल कर निराकार होने लगे थे. उनके हाथ-पैर तरल हो गए. चेहरा लंबा और फैल गया साथ ही आंखें बड़ी-बड़ी गोल हो गईं. ईश्वर की इसी बहाव स्वरूप को हम युगों पुराने जगन्नाथ धाम में देख पाते हैं. मेरी पेंटिंग उसी व्यक्त और अव्यक्त की परिभाषा से प्रभावित है. यही वजह है कि पौराणिक किरदार मेरी डिजिटल फ्लूइड पेंटिंग में सबसे अहम किरदार के तौर पर सामने आते हैं.'
महाकाल की पेंटिंग में अबूझ बारीकियां
अनमोल की इस बात को उनकी पेंटिंग कई मायनों में सही साबित करती हैं. उनकी एक पेंटिंग 'महाकाल' ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरूप को दर्शाती है. पंच हस्त शिव अपने कंठहार नाग के साथ बिखरी हुई जटाओं के साथ दिख रहे हैं. एक मानव आकृति नीचे लेटी हुई अवस्था में है. इस आकृति और महाकाल के बीच का संयोजन स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक रंग का बहाव इन दोनों को ऐसे जोड़ता है जिससे ये साफ हो जाता है कि शिव ही इस आकृति और प्रकृति के प्राण हैं. उनके पीछे घूम रहा कालचक्र यह बताता है कि वह समय हैं, आदि हैं, मध्य हैं और अंत भी.
नैसर्गिक आनंद की प्रतीक है श्रीकृष्ण की पेटिंग
इसी तरह उनकी एक और पेंटिंग अपनी ओर ध्यान खींचती है. ये पेंटिंग श्रीकृष्ण की है. वह बांसुरी बजा रहे हैं, कैनवस के बैकग्राउंड में मोरपंखी छटा बिखरी हुई है और इस पेंटिंग में जो बहाव है, वह नैसर्गिक आनंद की अनुभूति कराता है. मनु्ष्य जिसका जीवन धरती और स्वर्ग की काल्पनिक यात्रा है, कृष्ण अपनी इस भाव-स्थिति से बता रहे हैं कि स्वर्ग का सुख हर मनुष्य के भीतर है, जरूरत है तो इसे पहचानने की.
शक्ति का विस्तार विश्व भर में
भारत के हर कोने में मौजूद अलग-अलग संस्कृतियों में शक्ति का स्वरूप एक दिव्य स्त्री का बताया गया है और इसे ही शक्ति स्वरूपा कहा गया है. इसके कई नाम है, दुर्गा, काली, तारा, अष्टभुजा और यह भी बड़ी बात है कि यह सभी नाम एक ही हैं. अनमोल कहते हैं कि शक्ति की पूजा और मान्यता के कैनवस का विस्तार विश्व भर में है. इसलिए उन्होंने एक पेंटिंग बनाई, जिसमें देवी दुर्गा का अष्टभुजा स्वरूप सामने है और एक अफ्रीकी बालक उनके आगे नत भाव से खड़ा है. यह पेंटिंग वेदों से निकले सूत्र वाक्य 'वयम् सोदरा: सर्वे' और वसुधैव कुटुंबकम का उदाहरण बन जाती हैं.
अनमोल ने सिर्फ पौराणिक ही नहीं ऐतिहासिक विषयों पर भी चित्रकारी की है. जलियांवाला बाग हत्याकांड की डिजिटल पेंटिंग में उसकी त्रासदी देखी जा सकती है. इसी तरह युवा वर्ग को नशा मुक्ति का संदेश देने के लिए भी उन्होंने पेंटिंग का सहारा लिया था.
विकास पोरवाल