भारत–ओमान बिजनेस समिट में शामिल होने पीएम मोदी मस्कट (ओमान) पहुंचे हैं. यहां उन्होंने कहा- भारत और ओमान जियोग्राफी से नहीं बल्कि जनरेशन से जुड़े हैं. उनका यह कहना भारत और ओमान की उस साझा संस्कृति की ओर इशारा है, जिसे समय के पार देखा जाए तो यह शताब्दियों का सुंदर और संयोजित संबंध है. भारत और ओमान के बीच सदियों पहले व्यापार के जरिए संबंध बने और व्यापार ने सिर्फ मुद्रा का ही आदान-प्रदान नहीं किया, बल्कि संस्कृति से भी परिचित कराया.
शांति, सहिष्णुता और सद्भाव को मिली मजबूती
असल में भारत और ओमान के बीच गहरे और स्थायी सांस्कृतिक संबंध हैं. हाल ही की बात करें तो दिवंगत सुल्तान क़ाबूस बिन सईद को 2021 में गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किया गया. इस सम्मान को व्यापक रूप से शांति, सहिष्णुता और सद्भाव को बढ़ावा देने में सुल्तान क़ाबूस की भूमिका के प्रति भारत की गहरी सराहना के रूप में देखा गया, जिसने द्विपक्षीय संबंधों की गर्मजोशी को और मजबूत किया.
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से व्यापारिक संबंधों का इतिहास!
ओमान में हुए पुरातात्विक उत्खनन के दौरान यह भी सामने आया कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के लगभग (शास्त्रीय युग के दौरान) भारत और ओमान के बीच व्यापारिक संबंध बहुत घनिष्ठ थे. इसका जिक्र प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है जिनके अध्ययन जारी हैं. इतिहास की इसी कड़ी के सहारे और आगे बढ़ें तो पाते हैं कि ओमान के गुजरात और मालाबार तट पर मौजूद भारतीय राज्यों के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे.
मैसूर से ओमान के राजनयिक संबंधों के लिखित ऐतिहासिक दस्तावेज
भारत के मैसूर से ओमान के साथ राजनयिक संबंधों की पुष्टि कई भारतीय और विदेशी इतिहासकारों ने अपने ऐतिहासिक दस्तावेजों में की है. 'Waqai-i Manazil-i Rum' लिखने वाले ख्वाजा अब्दुल कादिर और मोहिबल हसन अपने इस ऐतिहासिक दस्तावेज में हैदर अली और टीपू सुल्तान के विदेशी व्यापारिक संबंधों का जिक्र करते हैं. वह लिखते हैं कि, प्राचीन काल से ही भारत और अरब के व्यापारी भारत के दक्षिण-पश्चिमी बंदरगाहों और फ़ारस की खाड़ी के बीच व्यापार की कुंजी अपने हाथों में रखते थे. भारी मात्रा में माल उन जहाज़ों से भेजा जाता था जो समृद्ध व्यापारी परिवारों के स्वामित्व में होते थे और जिनके संपर्क उपमहाद्वीप से लेकर खाड़ी तक फैले होते थे.
लेकिन अरब सागर के शिपिंग मार्गों पर यूरोपीय वर्चस्व स्थापित होते ही, पहले पुर्तग़ालियों और फिर अंग्रेज़ों के हाथों, इस व्यापार का एकाधिकार उनसे छिन गया. अधिकांश भारतीय नवाब और राजा इस एकाधिकार के खिसक जाने के सामने असहाय थे और यूरोपीय व्यापारी कंपनियों से वसूले जाने वाले भारी करों से संतुष्ट रहे. हालांकि 1765 में मालाबार तट पर हैदर अली के उदय और उनके बाद उनके पुत्र टीपू सुल्तान के शासन में पहली बार मालाबार के साथ यूरोपीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाए गए.
मंगलौर बंदरगाह से होता था चावल का निर्यात
टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने शुरुआत में शिराज़ में एक व्यापारिक बस्ती स्थापित करने का प्रयास किया था, लेकिन फ़ारसियों ने उन्हें बंदर अब्बास की पेशकश की, जिसका किसी कारणवश लाभ नहीं उठाया गया. हालांकि ओमान के इमाम अहमद के साथ स्थापित संबंध कहीं अधिक फलदायी सिद्ध हुए. ओमान की भारतीय चावल पर निर्भरता इतनी अधिक थी कि मंगलौर बंदरगाह से इसके निर्यात पर रोक लगते ही वहां के लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
जुलाई 1775 में इमाम ने मंगलौर यह जानने के लिए एक दूत भेजा कि मस्कट (ओमान का सबसे बड़ा बंदरगाह और राजधानी) को चावल का निर्यात क्यों रोका गया है. यह एक सामान्य आदेश के तहत विदेशी शक्तियों को चावल भेजने पर लगाए गए प्रतिबंध के कारण था. फिर भी दूत का मंगलौर में हैदर के प्रतिनिधि द्वारा स्वागत किया गया और अगले ही वर्ष हैदर ने अपना प्रतिनिधि मस्कट भेजा, जहां इमाम के साथ एक समझौता हुआ और वह स्थायी रूप से मैसूर का दूत बनकर वहां रहने लगा. जिस घर में वह रहता था, उसे ‘बैत-उल-नवाब’ (नवाब का घर) कहा जाता था.
इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से भारत और ओमान के ऐतिहासिक संबंध वैश्विक तौर पर सामने आते हैं.
ओमान में भारतीय समुदाय की अभिलेखीय विरासत
नए दौर की बात करें तो, ओमान में भारतीय प्रवासी समुदाय की ऐतिहासिक गहराई को रेखांकित करते हुए, मस्कट स्थित भारतीय दूतावास ने राष्ट्रीय अभिलेखागार, भारत (NAI) के सहयोग से मई 2024 में एक अग्रणी डिजिटलीकरण और मौखिक इतिहास पहल शुरू की, जिसका शीर्षक था “द ओमान कलेक्शन – ओमान में भारतीय समुदाय की अभिलेखीय विरासत”. इस परियोजना के तहत उन 32 भारतीय प्रवासी परिवारों से जुड़े 7,000 से अधिक ऐतिहासिक अभिलेखों का डिजिटलीकरण किया गया, जो पिछले दो सौ वर्षों से अधिक समय से ओमान में रह रहे हैं. ये दुर्लभ दस्तावेज़ – जिनमें व्यक्तिगत डायरी, व्यापारिक बिल, पासपोर्ट और पत्राचार शामिल हैं – वर्ष 1838 और 20वीं सदी के प्रारंभिक काल से संबंधित हैं और अंग्रेज़ी, अरबी, गुजराती और हिंदी सहित कई भाषाओं में संरक्षित हैं.
इस अभिलेखीय प्रयास को पूरक बनाते हुए, भारतीय दूतावास ने ‘मांडवी से मस्कट’ व्याख्यान श्रृंखला का भी आयोजन किया, जो अक्टूबर 2023 से मई 2024 तक आठ महीनों तक चली एक ऐतिहासिक पहल थी. इस सीरीज का उद्देश्य ओमान में भारतीय समुदाय की ऐतिहासिक यात्रा और योगदान के प्रति जागरूकता को फिर से जीवंत बनाना था. इन व्याख्यानों में ओमान, भारत, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिष्ठित इतिहासकारों, शिक्षाविदों और मानवविज्ञानियों ने भाग लिया और भारत–ओमान संबंधों पर अपने अलग-अलग नजरिये को सामने रखा.
ओमान में 22 भारतीय स्कूल हो रहे हैं संचालित
आधिकारिक ओमानी आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2025 तक ओमान में लगभग 6.76 लाख भारतीय रहते हैं. ओमान में रह रहे अधिकांश भारतीय नागरिक स्वास्थ्य सेवा, इंजीनियरिंग, शिक्षा, वित्त, प्रबंधन और सेवा क्षेत्रों में कार्यरत हैं और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. भारतीय प्रवासी समुदाय के योगदान को ओमानी नेतृत्व द्वारा बार-बार सराहा गया है. इस समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ओमान में 22 भारतीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें 48,000 से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं.
ओमान में भारतीयों का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन मस्कट, सलालाह, सोहार और सुर में स्थित सुव्यवस्थित भारतीय सामाजिक क्लबों के जरिये संगठित होता है. ये क्लब अपनी भाषाई और सांस्कृतिक इकाइयों के साथ मिलकर भारतीय परंपराओं के संरक्षण के साथ-साथ सांस्कृतिक सौहार्द को बढ़ावा देने के महत्वपूर्ण मंच हैं.
ओमान के समावेशी सामाजिक ताने-बाने को दर्शाते हुए, भारतीय समुदाय के धार्मिक संस्थान – जिनमें हिंदू मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे शामिल हैं – स्थानीय प्रशासन के सहयोग से संचालित होते हैं. भारतीय दूतावास ओमान की संस्थाओं के साथ मिलकर वहां रह रहे भारतीय नागरिकों के कल्याण और हितों को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर कार्य करता है.
ओमान में भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों के दीर्घकालिक योगदान को भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार के जरिये भी औपचारिक रूप से मान्यता दी गई है, जो वर्षों से समुदाय के प्रतिष्ठित सदस्यों को प्रदान किए जाते रहे हैं. ये सम्मान भारत–ओमान संबंधों को मजबूत करने में भारतीय प्रवासी समुदाय की अहम भूमिका को रेखांकित करते हैं.
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