श्रीराम की नगरी में विदेशी रानी की प्रतिमा... अयोध्या में कोरियन पार्क बनने की वजह क्या

अयोध्या में बीते हफ्ते दक्षिण कोरियाई रानी हेओ ह्वांग-ओक की 10 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया, जो भारत और कोरिया के 2000 साल पुराने सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है. रानी हेओ ह्वांग-ओक कोरियाई इतिहास में अयोध्या की राजकुमारी सुरिरत्ना के रूप में जाना जाता है.

Advertisement
अयोध्या में कोरियन रानी हेओ ह्वांग-ओक की प्रतिमा का अनावरण किया गया है अयोध्या में कोरियन रानी हेओ ह्वांग-ओक की प्रतिमा का अनावरण किया गया है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

रामचरित मानस के उत्तरकांड में एक चौपाई आती है. 'अखिल बिस्व यह मोर उपाया, सब पर मोहि बराबरि दाया.' यानी यह सारा संसार मेरा ही बनाया हुआ है और इसमें सभी मेरी बराबर दया के पात्र हैं.' इसी एक चौपाई के साथ रामकथा का कैनवस इतना व्यापक और फैला हुआ हो जाता है कि संसार भर में रामलीलाओं और रामकहानियों की पहुंच बन जाती है. फिर बाबा तुलसी की यह बात भी सिद्ध हो जाती है कि 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता.' 

Advertisement

रामकहानियां कभी भी किसी सीमा में नहीं बंधी, बल्कि वह जहां-जहां गईं, वहां की संस्कृति के रंग में रंगकर एक नए कलेवर में ही सामने आईं. इन कथाओं और इनके मंचन की मूलभावना बुराई पर अच्छाई की विजय ही रही. भले ही इनके कहने-सुनने के तरीकों में फर्क आया, लेकिन पवित्रता की भावना में कोई तब्दीली नहीं हुई. इसलिए भारत ही नहीं कई दूसरे देश भी ऐसे हैं जो रामायण और रामकथा को अपना आदर्श मानते हैं और आज भी अपने सत्ताधीशों से उसी मर्यादा वाले आचरण की उम्मीद रखते हैं, जैसी श्रीराम ने स्थापित की थी. यह बात दर्ज करते हुए दक्षिण कोरिया का नाम लेना जरूरी हो जाता है, जहां आज भी राम, रामायण और राम की अयोध्या को वैसी ही तवज्जो दी जाती है, जैसी कि एक आम भारतीय के दिल में है.

Advertisement

बीते हफ्ते अयोध्या से दक्षिण कोरिया का ये नाता और मजबूत हो गया, जब 24 दिसंबर को श्रीराम की नगरी में प्राचीन कोरियाई रानी हेओ ह्वांग-ओक की 10 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया. यह प्रतिमा दक्षिण कोरिया से मंगाई गई है. प्रतिमा का अनावरण अयोध्या के मेयर गिरीश पति त्रिपाठी ने किया. यह प्रतिमा भारत–कोरिया के सभ्यतागत संबंधों का प्रतीक मानी जा रही है. उन्होंने कहा- 'यह बहुत शुभ अवसर है. भारत और दक्षिण कोरिया के रिश्तों में यह एक मील का पत्थर है. हम उन पूर्वजों को याद कर रहे हैं जो 2,000 साल पहले दक्षिण कोरिया गए थे.' असल में अयोध्या में एक कोरियन पार्क बनकर तैयार हो रहा है.

1999 में ही योजना में शामिल हुए इस इस मेमोरियल पार्क का विस्तार हो रहा है. इसका उद्देश्य दक्षिण कोरिया की परंपराओं, खान-पान और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करना है.
स्थानीय प्रशासन ने इस प्रतिमा और पार्क को भारत–दक्षिण कोरिया संबंधों में एक नया मील का पत्थर बताया है.

...लेकिन, भारत और दक्षिण कोरिया का क्या है कनेक्शन

इतिहास दलील देता है कि, ईस्वी सन् 48 में अयुत्या (जिसे अयोध्या माना जाता है) में जन्मी भारतीय राजकुमारी सुरिरत्ना समुद्री यात्रा कर कोरिया पहुंचीं. वहां उन्होंने गाया (करक) राज्य के राजा किम सुरो से विवाह किया और कोरिया की रानी 'हेओ ह्वांग-ओक' बनीं. इसी विवाह से करक वंश की नींव पड़ी. यही वजह है कि राम मंदिर बनने से बहुत पहले भी हर साल सैकड़ों दक्षिण कोरियाई अयोध्या आकर रानी 'हेओ ह्वांग-ओक' को श्रद्धांजलि देते रहे हैं. इस तरह भारत और कोरिया के सांस्कृतिक संबंध लगभग 2,000 साल पुराने हैं. अयोध्या में रानी हेओ ह्वांग-ओक की कांस्य प्रतिमा का अनावरण इस संबंध की यादगार है. 

Advertisement

रानी से जुड़ाव के कारण ही 2000 साल पहले रामकथा कोरिया पहुंची और वहां की संस्कृति में ढल गई. वहां के निवासी कई समुदाय के लोग मानते हैं कि उनकी मातृभूमि अयोध्या रही है.
यह विश्वास प्राचीन कोरियाई ग्रंथों और बाद के शोध पर आधारित है, जिनमें ‘अयुता’ नाम के एक ऐसे दूर देश का जिक्र मिलता है जो समुद्र के पार है. विद्वान इस अयुता को प्राचीन अयोध्या से जोड़ते हैं.

किंवदंती के अनुसार, रानी हेओ ह्वांग-ओक दरअसल अयोध्या में जन्मी राजकुमारी सुरिरत्ना थीं. विवाह के समय उनकी उम्र मात्र 16 वर्ष थी और वही राजा सुरो की पहली रानी बनीं. इतिहासकार और वैदिक वास्तुकार उदय डोकरास के एक शोध पत्र में कोरियाई ग्रंथ 'समगुक युसा' का हवाला दिया गया है, जिसमें राजा सुरो की पत्नी को ‘अयुता’ से आई राजकुमारी बताया गया है. कुछ विवरणों में यह भी कहा गया है कि राजकुमारी अपने साथ चाय के बीज लेकर आई थीं.

राजा का स्वप्न और समुद्र पार की यात्रा
बीबीसी की एक रिपोर्ट में, चीनी भाषा के ग्रंथों के हवाले से कहती है अयोध्या के राजा को स्वप्न में यह आदेश मिला कि वह अपनी बेटी को कोरिया भेजें ताकि उसका विवाह राजा किम सुरो से हो सके. इसी कथा में यह भी कहा गया है कि दंपति के 10 पुत्र थे और वे 150 वर्ष से अधिक समय तक जीवित रहे. हालांकि यह ऐसा तथ्य है जो कहानी को इतिहास नहीं बल्कि किवदंती के दायरे में ले जाता है. फिर भी, किंवदंतियां इतनी मजबूत हैं कि उनके प्रति आज भी श्रद्धा से ही सिर झुकता है. 

Advertisement

साल 2020 में भारत में तत्कालीन दक्षिण कोरियाई राजदूत शिन बॉन्ग-किल ने मीडिया बातचीत में कहा था, कोरिया के प्राचीन इतिहास ग्रंथों में इस विवाह का उल्लेख है. उन्होंने यह भी कहा कि राजा किम सुरो की समाधि से मिले कुछ पुरातात्विक अवशेषों को भी अयोध्या से जुड़ा माना जाता है. करक वंश से जुड़े करीब 60 लाख लोग अयोध्या को अपना मातृकुल मानते हैं. इस साझी संस्कृति और विरासत को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने 2019 में रानी हेओ ह्वांग-ओक के सम्मान में 25 और 5 रुपये के स्मारक डाक टिकट भी जारी किए थे.

रानी हेओ ह्वांग-ओक की अयोध्या में उपस्थिति केवल प्रतीकात्मक नहीं है. सरयू नदी के तट पर उनका एक स्मारक पहली बार 2001 में बनाया गया था. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दक्षिण कोरिया यात्रा के दौरान, तत्कालीन राष्ट्रपति मून जे-इन के साथ इस स्मारक के विस्तार और सौंदर्यीकरण के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए.

विस्तारित 'क्वीन हेओ मेमोरियल पार्क' का उद्घाटन 2022 में हुआ. करीब 21 करोड़ रुपये की लागत से बने इस पार्क में अयोध्या से कोरिया तक राजकुमारी की यात्रा को दर्शाया गया है. यहां पत्थर पर खुदे शिलालेख, रानी हेओ और राजा किम सुरो की प्रतिमाएं, जलाशय और पुल के जरिये समुद्री यात्रा का प्रतीकात्मक दृश्य बनाया गया है. 

Advertisement

सभी इतिहासकार नहीं मानते एक सी बात
हालांकि बहुत से इतिहासकार रानी हेओ ह्वांग-ओक के इतिहास को अयोध्या से जुड़ा नहीं मानते हैं. कुछ उन्हें भारत के ही प्राचीन पांड्य कालीन दौर से जोड़ते हैं. पांड्य वंश दक्षिण भारतीय शासक वंश रहा है. वहीं उन्हें अयुता के बजाय तमिलनाडु के अथियुथु बंदरगाह से रवाना हुआ बताया जाता है. 

इतिहास हो या किंवदंती, या फिर दोनों की मिलावट मिश्रण, रानी हेओ ह्वांग-ओक की कहानी आज भी भौगोलिक दूरी के बावजूद दो देशों को संस्कृति और लोककथा के आधार पर जोड़ती है. अयोध्या में स्थापित यह कांस्य प्रतिमा 2000 साल की इस प्राचीन ऐतिहासिक साक्षी विरासत की जीवंत प्रतिमा बन जाती है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement