पांच साल में छ‍ह गुना बढ़ा दालों का आयात, क‍िसानों पर कम दाम का वज्रपात...ज‍िम्मेदार कौन?

ज‍िस देश में दालों की भारी कमी है उस देश के दलहन उत्पादक क‍िसानों की ऐसी दुर्गत‍ि आख‍िर क्यों हो रही है. क्या इसके पीछे सरकार की आयात नीत‍ि ज‍िम्मेदार है या फ‍िर क‍िसानों ने दलहन की खेती करके कोई बड़ी गलती कर दी है...

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दाल के आयात में आई बढ़त दाल के आयात में आई बढ़त

ओम प्रकाश

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST

भारत व‍िश्व का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक देश है फ‍िर भी इसका दाल आयात प‍िछले पांच साल में ही छह गुना बढ़ गया है. एक तरफ हम दूसरे देशों से दालें खरीद रहे हैं तो दूसरी ओर अपने क‍िसानों को सही दाम नहीं द‍िला पा रहे हैं. इस वक्त अरहर, चना, उड़द, मसूर और मूंग जैसी मुख्य दालों के थोक भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे चले गए हैं. ज‍िस देश में दालों की भारी कमी है उस देश के दलहन उत्पादक क‍िसानों की ऐसी दुर्गत‍ि आख‍िर क्यों हो रही है. क्या इसके पीछे सरकार की आयात नीत‍ि ज‍िम्मेदार है या फ‍िर क‍िसानों ने दलहन की खेती करके कोई बड़ी गलती कर दी है, ज‍िसकी वजह से बाजार और सरकार म‍िलकर उन्हें कम दाम देने की सजा दे रहे हैं? बहरहाल, कम दाम म‍िलने से क‍िसान न‍िराश हैं. दाम के इस दुखड़े की वजह से ही उन्होंने प‍िछले तीन साल में दलहन फसलों के एर‍िया में र‍िकॉर्ड 31 लाख हेक्टेयर की कमी कर दी है. 
 
भारत में दलहन फसलों का एर‍िया क्यों कम हो रहा है और इसका दूरगामी असर क्या होगा? इस सवाल का जवाब हमें ‘द ग्रेन, राइस एंड ऑयलसीड्स मर्चेंट्स एसोसिएशन’ (GROMA) के अध्यक्ष भीमजी एस. भानुशाली ने द‍िया. उनका कहना है क‍ि अगर क‍िसानों को सही कीमत नहीं म‍िलेगी तब वो खेती कम करते जाएंगे, ज‍िससे आयात पर न‍िर्भरता बढ़ेगी. यही हाल रहा तो देश दलहन के मामले में आत्मन‍िर्भर होने की बजाय पूरी तरह आयात पर निर्भर हो जाएगा. दालों के आयात पर भारत ने 2018-19 के दौरान 8035 करोड़ रुपये खर्च क‍िया था, जो 2024-25 में बढ़कर 46,428 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.  

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समस्या को आंकड़ों से समझ‍िए

खाने-पीने की चीजों की मांग और आपूर्त‍ि को लेकर नीति आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की है. इस र‍िपोर्ट के मुताब‍िक 2021-22 में दालों की मांग 267.2 लाख मीट्र‍िक टन और आपूर्त‍ि 243.5 लाख मीट्र‍िक टन थी. यानी तब ड‍िमांड और सप्लाई में 23.7 लाख टन की कमी थी. 

नीत‍ि आयोग के अनुसार 2028-29 तक भारत में दलहन की मांग 318.3 लाख मीट्र‍िक टन होगी और आपूर्त‍ि 297.9 लाख टन की ही रहेगी. यानी मांग और आपूर्त‍ि में 20.4 लाख मीट्र‍िक टन का अंतर होगा.

इस ह‍िसाब से 2021-22 से लेकर 2028-29 तक दलहन की मांग सालाना 7.3 लाख टन के ह‍िसाब से बढ़ेगी. इस तरह से 2025 में दलहन की मांग लगभग 290 लाख टन है, जबक‍ि उत्पादन 252.38 लाख टन है. यानी र‍िकॉर्ड 37.62 लाख टन दलहन की कमी है. 

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क्या इसल‍िए ग‍िरा भाव? 

भारत में दालों की सालाना मांग, उत्पादन और आयात के आंकड़े साफ दिखाते हैं कि क‍िसानों को दालों के दाम क्यों इतने कम म‍िल रहे हैं. सवाल यह है क‍ि जब इस समय दालों की मांग और आपूर्त‍ि में 37.62 लाख मीट्र‍िक टन की कमी है तो 72.6 लाख मीट्रिक टन दाल का आयात क्यों किया गया? ऐसे में या तो आयोग की रिपोर्ट में गलत है या फिर उपभोक्ताओं को खुश करने के नाम पर किसानों के ह‍ितों की अनदेखी कर दी गई है. घरेलू उत्पादन और आयात को मिलाकर बाजार में कुल 325 लाख मीट्रिक टन दाल उपलब्ध है जबकि मांग 290 लाख टन है. क्या इसी वजह से दालों के दामों में गिरावट आ रही है? इससे जुड़ी खबरों को व‍िस्तार से पढ़ने के ल‍िए आप www.kisantak.in को क्ल‍िक कर सकते हैं. 

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