हर साल धान कटाई के बाद दिवाली के वक्त प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. दरअसल, इस दौरान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान बड़े स्तर पर पराली जलाते हुए नजर आते हैं. इसकी वजह से प्रदूषण की स्थिति खराब हो जाती है. ऐसे में राज्य सरकार द्वारा कई कदम उठाए जाते हैं ताकि प्रदूषण को कंट्रोल में रखा जा सके. इन्हीं कदमों का फायदा हुआ है कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले कम हुए हैं.
पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी तक की कमी
दोनों राज्यों में पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी तक की कमी दर्ज की गई है. पंजाब में इस साल (15 सितंबर से 24 अक्टूबर के बीच) पराली जलाने के 2,704 मामले दर्ज हुए हैं जबकि पिछले साल इसी समय 5798 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, 2020 और 21 में क्रमशः 14,805 और 6058 मामले दर्ज हुए थे. हरियाणा की बात करें तो 15 सितंबर से 24 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के कुल 813 मामले दर्ज हुए जबकि पिछले साल इस दौरान 1360 मामले सामने आए थे. वहीं, 2020 और 2021 में क्रमशः 1617 और 1764 मामले दर्ज किए गए थे. यहां हम आपको पराली जलाने की घटनाओं में किस वजह से कमी आई होगी, उस बारे में बताने जा रहे हैं.
जागरूकता अभियान के चलते पराली जलाने के मामले में आई कमी
पराली न जलाने को लेकर किसानों को पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों की सरकारों के द्वारा किसानों को जागरूक किया जा रहा है. फ्लैक्स बोर्ड के सहारे पराली जलाने से किस तरह वातावरण में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ता है इस बारे में बताया जा रहा है. गांव-गांव किसानों को बीच पराली के उचित प्रबंधन को लेकर अभियान भी चलाया जा रहा है.
बायो डिकंपोजर कैप्सूल के चलते
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने साल 2020 में बायो डिकंपोजर कैप्सूल तैयार किया है.. ये कैप्सूल 5 जीवाणुओं को मिलाकर बनाया गया है जो खाद बनाने की रफ्तार को तेज करता है. चार कैप्सूल से छिड़काव के लिए 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है. यह एक हफ्ते में आपकी पराली को खाद में तब्दील कर देगा.
इथेनॉल में पराली के उपयोग के चलते
लिग्नोसेल्यूलोसिक फीडस्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन में दुनिया और हमारे देश में अधिक रुचि दिखाई जा रही है क्योंकि इसके लिए धान की पराली, गेहूं का भूसा, गन्ने की खोई, कई फसलों के अवशेष और लकड़ी के अपशिष्ट, बांस, कृषि-वानिकी अवशेषों का उपयोग किया जाता है.खेत में पड़े गेहूं और धान के भूसे का उपयोग जब इथेनॉल के लिए किया जाएगा तो इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी और इस तरह के प्लांट से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. वहीं दूसरी ओर, यह पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण को भी रोकेगा और ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने में योगदान देगा. साथ ही किसानों को मुनाफा भी होगा.
फसल अवशेष प्रबंधन के लिए खेती की मशीनों के चलते
हरियाणा सरकार फसल अवशेष प्रबंधन स्कीम के तहत कृषि यंत्रों पर सब्सिडी देती है. इसके तहत किसानों को 50 प्रतिशत तो कस्टम हायरिग सेंटर स्थापित करने पर 80 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है. इन मशीनों को उपयोग कर किसान पराली प्रबंधंन का काम पूरा कर सकते हैं. साथ ही पराली जलाने की घटनाओं में कमी ला सकते हैं.
भारी जुर्माना भी एक वजह
पंजाब और हरियाणा सरकार दोनों ही पराली जलाने वाले किसानों पर बेहद सख्त है. अगर कोई किसान पराली जलाते हुए पाया जा रहा है तो उनपर कार्रवाई की जा रही है. इसके अलावा इन किसानों से 2500 से 15000 रुपये से ज्यादा का जुर्माना वसूला जा रहा है. वहीं, इन किसानों को सरकारी योजनाओं से वंचित रखने का फैसला लिया गया है.
आर्थिक मदद के चलते किसानों ने पराली जलाने से किया परहेज
किसान पराली न जलाए इसके लिए पंजाब और हरियाणा सरकार किसानों की आर्थिक मदद भी कर रही है. पराली न जलाने पर किसानों को प्रति एकड़ हजार रुपये तक दिए जा रहे हैं. इसके लिए किसान अपने राज्य के कृषि विभाग के अधिकारिक पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं.
ईंट-भट्टों ं में पराली के उपयोग को बढ़ावा
पंजाब में ईंट-भट्टों को 20% कोयले को धान के भूसे के छर्रों से बदलने का निर्देश देना और ईंधन के रूप में धान के भूसे का उपयोग करने वाले पहले 50 बॉयलरों को 25 करोड़ वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश करना शामिल है. ग्रामीण विकास विभाग द्वारा धान की पराली का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध उद्योगों को 33 वर्षों के लिए पट्टे के आधार पर भूमि प्रदान की जा रही है. सरकार बड़े बेलर खरीदने के लिए पीपीपी मॉडल को भी सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है, जिसमें धान के भूसे की आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के लिए 1 करोड़ रुपये तक की 65% सब्सिडी की पेशकश की जा रही है. पंजाब के अलावा हरियाणा में भी इसी तरह के फैसले लिए गए हैं.
आजतक एग्रीकल्चर डेस्क