दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के स्वास्थ्य समुदाय (कम से कम 45 मिलियन डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों का प्रतिनिधित्व करने वाले 300 संगठनों) ने राष्ट्रीय नेताओं और COP26 देश के प्रतिनिधिमंडलों को एक ओपन लेटर लिखा है, जिसमें जलवायु संकट को दूर करने के लिए वास्तविक कार्रवाई का आह्वान किया गया.
सभी देशों से पेरिस समझौते के तहत अपनी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को अपडेट करने का आह्वान किया गया है. ताकि वे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अपने उचित हिस्से के लिए प्रतिबद्ध हों. साथ ही उन योजनाओं में स्वास्थ्य पर ध्यान देने को भी शामिल करने की बात कही गई है. इसके अलावा सभी देशों से जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने की मांग की गई है जिसकी शुरुआत सभी संबंधित परमिटों, सब्सिडी और जीवाश्म ईंधन के लिए वित्त पोषण में तत्काल कटौती के साथ की जा सकती है. कहा गया है कि वर्तमान वित्त पोषण को स्वच्छ ऊर्जा के विकास में लगाए जाने की जरूरत है.
साथ ही उच्च आय वाले देशों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्य के अनुरूप ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ी कटौती करने की मांग की गई है. इसके अलावा कम आय वाले देशों की मदद करने की भी मांग हुई है. साथ ही दुनियाभर के देशों की सरकारों से टिकाऊ स्वास्थ्य सिस्टम स्थापित करने की मांग की गई है. इसके अलावा सरकारों से यह भी सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है कि महामारी से उबरने वाले निवेश जलवायु कार्रवाई का समर्थन करें और सामाजिक व स्वास्थ्य असमानताओं को कम करें.
WHO ने भी जारी की रिपोर्ट
WHO ने भी कमोबेश अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही कहा है. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ टेड्रोस एडनम घेब्रेसियस ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने मनुष्यों, जानवरों और हमारे पर्यावरण के बीच घनिष्ठ और नाजुक संबंधों पर प्रकाश डाला है. उन्होंने कहा कि जो खराब व नुकसानदेह विकल्प, हमारे ग्रह को तबाह कर रहे हैं, वही इंसानों के वजूद के लिये भी खतरा बन रहे हैं.
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ऊर्जा, परिवहन, प्रकृति, खाद्य प्रणाली और वित्त सहित हर क्षेत्र में परिवर्तनकारी कार्रवाई की आवश्यकता है और यह स्पष्ट रूप से बताता है कि महत्वाकांक्षी जलवायु कार्यों को लागू करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ को काफी मदद मिलेगी.
डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य की निदेशक डॉ मारिया नीरा ने कहा, यह कभी भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि जलवायु संकट सबसे जरूरी स्वास्थ्य आपात स्थितियों में से एक है जिसका हम सभी सामना करते हैं. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल हम सबको मौत के मुंह में धकेल रहा है. पूरी इंसानियत के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम, जलवायु परिवर्तन है.
स्नेहा मोरदानी