Saima Saleem: पाक की वो दिव्यांग डिप्लोमेट जिसने हक के लिए कायदे-कानून बदलवाए, भाई-बहन भी मिसाल

Pakistan diplomat Saima Saleem: हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा का 76वां सत्र आयोजित हुआ. इस सत्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी संबोधन हुआ, जबकि भारत की तरफ से स्नेहा दुबे ने पाकिस्तान के बयान का जवाब दिया. पाकिस्तान का पक्ष महिला डिप्लोमेट सायमा सलीम ने रखा.

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UN में पाकिस्तान की काउंसलर सायमा सलीम (@PakistanPR_UN) UN में पाकिस्तान की काउंसलर सायमा सलीम (@PakistanPR_UN)

जावेद अख़्तर

  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:37 PM IST
  • सायमा सलीम की आंखों की रोशनी नहीं है
  • एक भाई और बहन भी सायमा के जैसे ही दिव्यांग
  • PAK में 2007 का सिविल सेवा एग्जाम किया था पास

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भारत की तरफ से दिये गये स्नेहा दुबे के बयान की जमकर सराहना की गई. भारत की इस यंग IFS ऑफिसर ने दुनिया के सामने पाकिस्तान के आतंक कनेक्शन को रखा. वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तान की तरफ से भी सायमा सलीम (Saima Saleem UNGA Speech) नाम की एक महिला डिप्लोमेट ने अपने मुल्क का पक्ष रखा. 

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आतंकवाद के मुद्दे पर किरकिरी झेलने के बावजूद पाकिस्तान के सियासी हल्कों में सायमा सलीम द्वारा रखे गए पक्ष को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का प्रयास किया गया. बहरहाल, ये पाकिस्तान की आदत है और मजबूरी भी. लेकिन राजनीति से इतर, अगर सायमा सलीम के निजी जीवन को देखा जाए तो वो एक नजीर है. सिर्फ सायमा ही नहीं, उनका पूरा परिवार ही हौसले की मिसाल है. 

कौन हैं सायमा सलीम?

सायमा सलीम फिलहाल संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी मिशन की काउंसलर हैं. उनकी आंखों की रोशनी नहीं है. हाल ही में यूएन असेंबली में भाषण देकर वो ऐसा करने वाली दुनिया की पहली ब्लाइंड डिप्लोमेट बन गई हैं.

I congratulate Saima Saleem, my team member, for successfully putting forward Pakistan's position by exercising right of reply.
She spoke using Braille for the first time from UNGA hall.#SaimaSaleem #UNGA 🇵🇰🇺🇳 pic.twitter.com/iy7K8h1HZI

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— Pakistan Permanent Representative to UN (@PakistanPR_UN) September 25, 2021

 
जियो टीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सायमा एक राइटर और मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर भी पहचान रखती हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और इससे जुड़े कानून में वो माहिर हैं, साथ ही इकोनॉमिक डिप्लोमेसी, ट्रेड-इंवेस्ट और इंटरनेशनल सिक्योरिटी की भी अच्छी जानकार मानी जाती हैं.

बचपन में ही गंवा दी आंखों की रोशनी

10 अगस्त 1984 को पैदा हुईं सायमा को बचपन से ही आंखों से जुड़ी एक बीमारी थी, जिसका इलाज नहीं हो सका और धीरे-धीरे उनकी रोशनी चली गई. 13 साल की उम्र में सायमा ने पूरी तरह से अपनी आंखों की रोशनी गंवा दी. लेकिन सायमा ने हौसला नहीं हारा.

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सायमा ने लाहौर  के अजीज जहां बेगम ट्रस्ट स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की, जहां दिव्यांगजनों को पढ़ाया जाता है. इसके बाद उन्होंने लाहौर की किनार्ड महिला यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में पढ़ाई की और एम. फिल किया.
 
सिविल सेवा में कैसे आईं सायमा सलीम?

दिव्यांग होने के चलते सायमा के सामने भले ही अंधकार रहा हो लेकिन उनका विजन पूरी दुनिया को देखने का था. नजरिया स्पष्ट था और मकसद भी एकदम क्लियर. यही वजह थी कि पाकिस्तान में सिविल सेवा के जिस CCS एग्जाम में ब्लाइंड लोगों को बैठने की इजाजत तक नहीं थी, उसमें जब सायमा को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने रिकॉर्ड बना दिया. 

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सायमा ने 2007 के CCS एग्जाम में ओवरऑल 6वीं रैंक के साथ परीक्षा पास की, जबकि महिलाओं में वो नंबर वन पर रहीं. 

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शायर महशर बदायुनी का ऊपर लिखा ये शेर हौसले और हिम्मत को बयां करता है. जब परिस्थितयां विपरीत हों तो वही डटकर खड़े रह पाते हैं जिनके इरादे बुलंद होते हैं. सायमा सलीम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

सायमा के लिए बदल गए कायदे-कानून

सायमा को CCS एग्जाम देने में काफी संघर्ष करना पड़ा. दरअसल, पाकिस्तान फेडरल पब्लिक सर्विस कमिशन ( FPSC) के नियम के तहत परीक्षा पेपर पर होती थी, लेकिन सायमा ने कंप्यूटर बेस्ड एग्जाम की मांग की. आयोग ने सायमा की बात नहीं मानी तो सायमा ने अपनी लड़ाई को मुल्क के राष्ट्रपति तक पहुंचा दिया और अंतत: राष्ट्रपति से इजाजत मिलने पर कंप्यूटर बेस्ड एग्जाम कराया गया. 

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सीसीएस पास करने के बाद भी सायमा के सामने एक चुनौती आई. सायमा को विदेश सेवा में जाना था, और नियम था कि ऐसा नहीं हो सकता है. ब्लाइंड कैंडिडेट्स को विदेश सेवा में मौका नहीं मिलता था, इस नियम के खिलाफ सायमा की गुहार पाकिस्तान के पीएम तक पहुंची और उन्हें इजाजत मिल गई. 

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इस तरह सायमा ने पाकिस्तान फॉरेस सर्विस ज्वाइन की. पाक मीडिया के मुताबिक, सायमा एक ऐसी शख्स हैं, जिनके लिए पाकिस्तान में रिक्रूटमेंट से लेकर विदेश सेवा तक के लिए नियम बदले गए. 

UNGA में भाषण के लिए भी सायमा ने कुछ ऐसा ही किया. उन्होंने ब्रेल सिस्टम (Braille System) से अपना भाषण पढ़ा, जिसके लिए उन्होंने बाकायदा परमिशन मांगी थी. बता दें कि Braille System में  Dots के जरिए पढ़ा जाता  है. ब्लाइंड लोग अंगुलियों से इन डॉट्स को छूकर पढ़ते हैं. Braille कोई भाषा नहीं है, ये अलग-अलग भाषाओं का कोड होता है.

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सायमा इससे पहले 2013 से 2017 तक भी यूएन में पाकिस्तान की तरफ से अलग-अलग जिम्मेदारियां संभाल चुकी हैं. 2012 में सायमा ने अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से फुलब्राइट स्कॉलरशिप पर इंटरनेशनल अफेयर्स में एडवांस स्टडी भी की. इसके अलावा वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय में डिप्टी सेक्रेटरी भी रहीं. 2019 में स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा से इंटरनेशनल लॉ में सायमा ने LLM किया. उन्हें किनार्ड यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल भी मिला है, साथ ही कई अन्य अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. 

ब्लाइंड भाई-बहन ने भी रचा इतिहास

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सायमा सलीम ने तो पाकिस्तान से निकलकर पूरी दुनिया में नाम कमाया ही है, साथ ही उनके भाई यूसुफ सलीम और बहन आयशा भी लोगों के लिए उदाहरण हैं. 2018 में सायमा के भाई यूसुफ सलीम पाकिस्तान के पहले ब्लाइंड जज बने. पंजाब प्रांत में उनकी नियुक्त सिविल जज के रूप में की गई. हालांकि, टॉपर होने के बावजूद यूसुफ सलीम ने इस पद को लेने से इनकार कर दिया था, लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन चीफ जस्टिस के दखल से उनकी नियुक्ति कराई गई.

वहीं, सायमा की बहन आयशा सलीम की भी आंखों की रोशनी नहीं है. आयशा ने भी पढ़ाई को अपना पैशन बनाया और आज वो लाहौर की एक यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं. 


 

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