रूस-यूक्रेन युद्ध को एक साल से ज्यादा हो चुका है. खत्म होगा, ऐसा नहीं लगता, लेकिन इसके विस्फोटक होने के हर संकेत मिल रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण ये है कि रूस पर कहने को अमेरिका के कई प्रतिबंध लगे हुए हैं, लेकिन फिर भी उसी सुपर पॉवर से उसे कई ऐसी टेक्नोलॉजी मिल रही हैं जिस वजह से जमीन पर इस युद्ध के समीकरण भी बदल रहे हैं. अब एक रिपोर्ट में इसी सीक्रेट टेक्नोलॉजी को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. पता चला है कि लंबे समय से रूस को अमेरिकी कंपनियों से सीक्रेट चिप मिल रही हैं. अमेरिका की सरकार को इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन फर्जी कंपनियों के जरिए इस टेक्नोलॉजी का रूस के लिए निर्यात हो रहा था.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिक की कई कंपनियां इस नेटवर्क में शामिल हैं. इन कंपनियों ने रूस की कंपनियों को सीक्रेट चिप सप्लाई की हैं, कुछ तो ऐसी कंपनियों को भी चिप दी गई हैं जो सीधे तौर पर रूसी सेना के साथ जुड़ी हुई हैं. इसी वजह से इस बात का अंदेशा जताया जा रहा है कि अमेरिकी टेक्नोलॉजी के जरिए पुतिन युद्ध के दौरान यूक्रेन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यूक्रेन तो लंबे समय से ये दावा कर रहा है कि उसके कई इंफ्रास्ट्रक्चर को जिन ड्रोन से नष्ट किया गया है, उसमें अमेरिका की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की गई है.
अमेरिकी कंपनियां, पुतिन की सबसे बड़ी मददगार?
अब इस नेटवर्क का खुलासा जरूर हुआ है, लेकिन पैसों की ट्रेल को पकड़ना उतना ही मुश्किल है. बताया जा रहा है कि अमेरिका की जिन भी कंपनियों से इस सीक्रेट टेक्नोलॉजी को बेचा गया, उसे दूसरे देशों में बैठे बिचौलियों ने खरीदा, ऐसे में पैसों की ट्रेल नहीं पकड़ी गई. यूक्रेन ने तो सीधे-सीधे Intel, Qualcomm और Broadcom जैसी कंपनियों का नाम लिया है. दावा हुआ है कि ये कंपनियां रूस को सीक्रेट चिप दे रही हैं. इन कंपनियों से यूक्रेन ने अपील की है कि ऐसी चिप ना बनाई जाएं जो रूस की Glonass satellite navigation system को सपोर्ट करती हों. अब यूक्रेन के आरोप जरूर हैं, लेकिन ये कंपनियां इसे स्वीकार नहीं कर रही हैं. वहीं क्योंकि अमेरिका के नियमों में ये कंपनियां सही तरीके से काम कर रही हैं, ऐसे में इन पर कोई एक्शन भी नहीं हुआ है.
चीन कर रहा सीक्रेट खेल, दूसरे देश भी शामिल
वैसे रूस के लिए इस सीक्रेट डील में कई दूसरे देशों ने भी अपना योगदान दिया है. वहां की सरकार तो इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन फर्जी कंपनियों के जरिए डील को इस तरीके से पूरा किया जा रहा है जिससे ये पता ना चले कि टेक्नोलॉजी रूस के हाथ में जा रही है. रिपोर्ट बताती है कि तुर्की, बेलारूस, कजाकिस्तान, चीन और यूएई ने इस सीक्रेट डील में बड़ी भूमिका निभाई है. कई चीनी कंपनियां तो इस डील को सफल बनाने के लिए खुद बिचौलिया बन गईं जिससे कभी ये पता ना चले कि टेक्नोलॉजी असल में किसे दी जानी है. वैसे इस पूरे विवाद में अमेरिका ने भी अपनी तरफ से जांच की है. उसने रूस के ही एक नागरिक को इस सीक्रेट डील का कर्ताधर्ता माना है. बताया जा रहा है कि Artem Uss नाम के शख्स ने अमेरिका की टेक्नोलॉजी को पुतिन को दिलवाया है जिसका सीधा इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध के दौरान किया गया है. अमेरिका ने उस शख्स पर आरोप लगाया है कि उसी ने प्रतिबंधों के नियमों को तोड़ते हुए संवेदनशील टेक्नोलॉजी रूस को दिलवाई है. इसमें उसने उन देशों के बिचौलियों का इस्तेमाल किया है, जिन पर कोई प्रतिबंध नहीं थे.
अब जांच के दौरान अमेरिका की कंपनी इंटेल को लेकर भी जरूरी जानकारी सामने आई है. पता चला है कि रूस को बड़ी संख्या में टेक्नोलॉजी भेजी गई है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल एक अप्रैल से लेकर 31 अक्टूबर के बीच ही 457 मिलियन डॉलर का कारोबार इंटेल का रूस के साथ हुआ है. इसी तरह सेमिकंडक्टर की आपूर्ति रूस ने यूएई और तु्र्की से पूरी की है. वैसे इस सीक्रेट डील में यूएई की कंपनी Global Parts FZE, तुर्की की Azu International ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. असल में हुआ ये है कि अमेरिका से तुर्की और चीन की कंपनियों ने ये सीक्रेट टेक्नोलॉजी खरीदी, फिर उस टेक्नोलॉजी को यूएई वाली कंपनियों को भेज दी. फिर वहां से वो चिप रूस तक पहुंची. ऐसे में तय रणनीति के तहत इस पूरी डील दो-तीन देशों के जरिए पूरा किया गया.
बाइडेन प्रशासन चिंतित, कदम क्या उठाएगा?
जांच में ये भी पता चला है कि आरोपी Artem Uss ने ही यूरोप, मिडल ईस्ट और एशिया में फर्जी कंपनियां बनवाई थीं. फिर चिप बनाने वाली न्यू यॉर्क और कैलिफोर्निया की कंपनियों को मनाया गया कि वो अपनी टेक्नोलॉजी वहां भेजे जहां अमेरिका का कोई प्रतिबंध नहीं है. इस तरह से रूस तक युद्ध के दौरान सारी टेक्नोलॉजी पहुंचती रही. इसमें पूरी डील में फर्जी सर्टिफिकेट का लगातार इस्तेमाल हुआ. अभी के लिए बाइडेन प्रशासन ने इस सीक्रेट डील पर चिंता जाहिर की है. जोर देकर कहा गया है कि आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखे जाएंगे जिससे रूस को जरूरी टेक्नोलॉजी ना मिले.
देवव्रत पांडेय