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विश्व

ट्रंप के दौरे को लेकर चीन ने किया भारत को आगाह

aajtak.in
  • 24 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 5:29 PM IST
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहली बार भारत के दौरे पर आए हैं, ऐसे में देश से लेकर विदेश तक इसकी चर्चा हो रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे को लेकर चीन की मीडिया में भी कवरेज की जा रही है. बता दें कि ट्रंप पूर्वी एशियाई देशों चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में सिंगापुर, फिलीपींस और वियतनाम का दौरा कर चुके हैं लेकिन वह अभी तक भारत नहीं आ पाए थे.

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चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने मोदी सरकार को ट्रंप के दौरे को लेकर आगाह भी किया है. ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय लेख छापा है जिसका शीर्षक है 'ट्रंप की चाल से मोदी को अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बचानी होगी'.

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चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ट्रंप ने भारत का दौरा नहीं किया था जबकि भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका का दो बार दौरा कर चुके हैं. ऐसे में भारत को असंतुलन महसूस होता रहा होगा. चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने मोदी सरकार को ट्रंप के दौरे को लेकर आगाह भी किया है. ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय लेख छापा है जिसका शीर्षक है 'ट्रंप की चाल से मोदी को अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बचानी होगी'.


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अखबार ने लिखा है कि अपने पूर्ववर्तियों से अलग ट्रंप ने बहुत ही कम विदेशी दौरे किए हैं. ट्रंप को उन विचारधारा में कोई दिलचस्पी नहीं है जिससे अमेरिका को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहचान मिली है. इसका मतलब साफ है कि अगर वे किसी देश का दौरा वह अपने किसी फायदे के लिए ही करते हैं. अखबार ने ट्रंप के दौरे के तमाम मकसद गिनाए हैं-

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1- भारत को हथियार बेचना ट्रंप प्रशासन का मुख्य मकसद है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रोजगार की स्थिति सुधारने के लिए ट्रंप प्रशासन के लिए दूसरे देशों को हथियारों बेचना बेहद आवश्यक है. ट्रंप ने 2017 की सऊदी अरब यात्रा में 110 अरब डॉलर की आर्म्स डील की थी.

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पिछले कुछ सालों में, भारत हथियारों का एक अच्छा बाजार बनकर उभरा है और इसमें भविष्य में आयात की भरपूर संभावनाएं हैं. भारत के हथियार बाजार में पहुंच बनाने को लेकर ट्रंप प्रशासन ने भारत के खिलाफ रूस से हथियार खरीदने को लेकर प्रतिबंध भी लगा दिए थे.

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चीनी मीडिया ने भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए लिखा है, नई दिल्ली ने ट्रंप के दौरे से पहले वॉशिंगटन के साथ 3.5 अरब डॉलर की डील फाइनल की है. भारत ने ट्रंप के लिए ये बहुत बड़ा तोहफा तैयार करके रखा है. लेकिन दूरगामी और मोदी के 'मेक इन इंडिया' की रणनीति को देखते हुए भारत अमेरिका के साथ तभी सहयोग करने के लिए तैयार होगा जब अमेरिका भारत को साझा तौर पर हथियार उत्पादन का प्रस्ताव देता है.

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लेख में कहा गया है, ट्रंप के दौरे का दूसरा मुख्य मकसद व्यापार है. जब से ट्रंप सत्ता में आए हैं, उन्होंने तमाम व्यापारिक सहयोगियों के साथ ट्रेड वॉर शुरू कर दिया है और भारत भी इसके निशाने पर है. ट्रंप ने ना केवल भारत को दुनिया का सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश करार दिया बल्कि भारत में आउटसोर्सिंग की वजह से अमेरिकियों की नौकरी जाने की शिकायत भी की.

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2018 के बाद से भारत और अमेरिका के बीच तमाम व्यापारिक विवाद हुए हैं हालांकि, इनका असर सीमित ही रहा. जून 2019 में अमेरिका ने भारत को व्यापार में मिलने वाली विशेष प्राथमिकता खत्म कर दी थी जिसके बाद भारत सरकार ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर 120 फीसदी टैरिफ लगा दिया था.

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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ट्रंप भारत को इंडो-पैसेफिक रणनीति से भी लुभाने की कोशिश करेंगे. अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र को अमेरिका के पश्चिमी समुद्री तट से भारत के पश्चिमी समुद्री तट के क्षेत्र से परिभाषित करता है. अमेरिका के विदेश मंत्री व अन्य मंत्री भारत का दौरा कर चुके हैं लेकिन भारत की रणनीति अमेरिकी की रणनीति से काफी अलग है. भारत अपने हितों और जरूरतों के हिसाब से इंडो-पैसेफिक रणनीति को आकार देगा.

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भारत-अमेरिका के बीच इस व्यापारिक उठापटक से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को भी नुकसान पहुंचा.  इसके बावजूद, अमेरिका भारत से जुड़े आर्थिक हितों को साधना चाहता है. अमेरिका-भारत के रिश्तों के सामान्य होने से अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजार में बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने का मौका मिल जाएगा. भारत को भी उम्मीद है कि अमेरिकी बाजार और निवेश से उसकी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगी. ट्रंप के साथ दौरे में पीएम मोदी के एजेंडे में भारत का अमेरिका के साथ जीएसपी दर्जा (व्यापार में मिलने वाली तरजीह) वापस हासिल कर सके.

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ऐसे वक्त में, जब ट्रंप भारत का दौरा कर रहे हैं तो हमें उम्मीद है कि आत्मविश्वास से युक्त और रणनीतिक तौर पर स्वतंत्र भारत अपना रुख नहीं बदलेगा, खासकर ऐसे वक्त में जब ट्रंप भारत के फायदे की बहुत कम बातें कर रहे हैं.

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अखबार ने लिखा है, ट्रंप और मोदी की इस मुलाकात का एक एजेंडा ईरान भी होगा. अमेरिका और ईरान के बीच बनती युद्ध की स्थिति में ट्रंप को तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने में भारत की जरूरत है. भारत को उम्मीद है कि अमेरिका उसे ईरान से तेल आयात करने की छूट देगा.

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ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, इसके अलावा बीजिंग के तोड़ में भारत को साथ लाने की वॉशिंगटन की कवायद जॉर्ज बुश के प्रशासन से ही जारी है. ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से चीन के उभार को रोकना अमेरिका की विदेश नीति का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है और इसके लिए अमेरिका को भारत की जरूरत है. उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने 5जी के लिए चीनी कंपनी हुवेइ के लिए दरवाजे बंद करने के लिए कई बार भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की.

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अखबार ने सारे तर्क देने के बाद अंत में लिखा है, शीतयुद्ध में अमेरिका आर्थिक, सैन्य और सुरक्षा मदद से सहयोगियों को लुभाता था लेकिन ट्रंप तो भारत को कोई असली फायदा भी नहीं पहुंचा रहे हैं. इसके बजाय, वह भारत पर व्यापार, हथियार बिक्री व अन्य मामलों में दबाव की रणनीति पर काम कर रहे हैं.

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चीन ने अंत में उम्मीद जताई कि भारत अमेरिका के पक्ष में पूरी तरह से नहीं जाने वाला है. चीन ने कहा कि हां इतना जरूर है कि आत्मविश्वास से युक्त और महत्वाकांक्षी भारत के ट्रंप के दौरे से भले ही कुछ मकसद पूरे हो जाएं.

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