अब शादीशुदा बेटियों को भी मिलेगा पिता की जमीन में हिस्सा, यूपी में योगी सरकार लेने जा रही बड़ा फैसला

यूपी में महिलाओं के अधिकारों में महत्वपूर्ण बदलाव आने वाला है. राज्य सरकार ने शादीशुदा बेटियों को पिता की कृषि भूमि में बराबर हिस्सेदारी देने के लिए प्रस्ताव तैयार किया है, जिससे पिछले भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त किया जाएगा. वर्तमान में शादीशुदा बेटियों को जमीन में हिस्सा नहीं मिलता है.

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महिला अधिकारों पर यूपी की योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है (Photo: Meta AI) महिला अधिकारों पर यूपी की योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है (Photo: Meta AI)

आशीष श्रीवास्तव

  • लखनऊ,
  • 07 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

Daughters inheritance rights in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर बड़ा बदलाव होने जा रहा है. अब तक शादीशुदा बेटियों को पिता की कृषि भूमि में हिस्सा नहीं मिलता था, लेकिन जल्द ही यह स्थिति बदल सकती है. राजस्व परिषद ने इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया है और इसी माह इसे शासन को भेजा जाएगा.

फिलहाल उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता-2006 की धारा 108 (2) के तहत किसी पुरुष भूमिधर के निधन के बाद जमीन का नामांतरण केवल उसकी विधवा, पुत्र और अविवाहित पुत्री के नाम किया जाता है. शादीशुदा बेटियों को इस अधिकार से बाहर रखा गया है. यही कारण है कि लंबे समय से इस प्रावधान को भेदभावपूर्ण मानते हुए संशोधन की मांग उठ रही थी.

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कया बदलेगा नियम

सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित संशोधन में धारा-108 से विवाहित और अविवाहित जैसे शब्द हटा दिए जाएंगे. इसके बाद शादीशुदा बेटियों को भी उतना ही अधिकार मिलेगा जितना बेटों या अविवाहित बेटियों को मिलता है. यानी विरासत दर्ज करते समय विवाह के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा. इतना ही नहीं, मृतक भूमिधर की बहनों के अधिकार में भी यह फर्क खत्म कर दिया जाएगा.

शादीशुदा बेटियों को लेकर राज्यों का विवरण (Photo: Perplexity AI)

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अन्य राज्यों में पहले से लागू

मध्य प्रदेश और राजस्थान में यह व्यवस्था पहले से लागू है. वहां विवाहित बेटियों को पिता की कृषि भूमि में पुत्रों के बराबर अधिकार मिलता है. यूपी सरकार का यह कदम भी उसी दिशा में माना जा रहा है.

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आगे की प्रक्रिया

प्रस्ताव शासन स्तर पर परीक्षण के बाद कैबिनेट में जाएगा. इसके बाद विधानसभा और विधान परिषद की मंजूरी मिलने पर यह कानून का रूप ले लेगा. इसे महिलाओं को बराबरी का हक़ दिलाने और महिला सशक्तीकरण की दिशा में अहम पहल के तौर पर देखा जा रहा है.

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