18 साल पहले हुआ था संजीव जीवा की मौत का हल्ला, मुठभेड़ में ऐसे बच निकला था शातिर, पढ़िए पूरी कहानी

18 साल पहले यानी 26 जुलाई 2005 को दो बदमाश मुठभेड़ में ढेर हुए थे. इनमें एक की पहचान विजय बहादुर सिंह के रूप में हुई और दूसरे की शिनाख्त हुई थी संजीव जीवा के रूप में. लेकिन दो दिन बाद ही साफ हो गया कि दूसरा बदमाश संजीव नहीं है.

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संजीव जीवा (फाइल फोटो) संजीव जीवा (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • जौनपुर ,
  • 09 जून 2023,
  • अपडेटेड 8:45 AM IST

मुख्तार अंसारी के भरोसेमंद गुर्गे संजीव जीवा की लखनऊ कोर्ट में तड़ातड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गई. लेकिन हम आपको बताते हैं 18 साल पहले की कहानी, जब संजीव की हत्या का हल्ला हुआ था. वाकया 26 जुलाई 2005 का है. जगह थी जौनपुर. यहां कोतवाली क्षेत्र के पॉलिटेक्निक चौराहे पर चेकिंग चल रही थी. तभी तत्कालीन चौकी इंचार्ज अजय मिश्रा पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई. चारों तरफ अफरातफरी मच गई थी. जवाबी कार्रवाई में पुलिस मुठभेड़ में दो बदमाश ढेर हो गए थे, जबकि दो फरार हो गए. मारे गए बदमाशों में एक की शिनाख्त विजय बहादुर सिंह के रूप में हुई और दूसरे की पहचान हुई थी संजीव जीवा के रूप में. 

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यह बात अलग है कि मुठभेड़ के दो दिन के भीतर ही यह चर्चा तेज हो गई कि मारा गया दूसरा बदमाश संजीव जीवा नहीं है. हालांकि उस दूसरे बदमाश की आज तक शिनाख्त नहीं हो पाई है. 

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा समेत कई नामचीन शूटर उस वक्त बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करने जा रहे थे, लेकिन जौनपुर शहर के पॉलिटेक्निक चौराहे पर वाहन चेकिंग के दौरान जब गाड़ी रोकने का इशारा हुआ, तो बदमाशों ने तत्कालीन सरायपोख्ता चौकी इंचार्ज अजय मिश्रा को गोली मार दी. 

इसके बाद हुई मुठभेड़ में दो बदमाश मारे गए थे, जबकि मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा मुठभेड़ के दौरान गाड़ी से उतरकर भाग गए थे. इस मुठभेड़ के चलते बदमाशों का प्लान बदल गया और एक बड़ा अपराध कुछ समय के लिए टल गया. इस वारदात के चार महीने बाद यानी 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हो गई थी.

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ऐसे मारे गए थे दोनों बदमाश

26 जुलाई 2005 की दोपहर लगभग दो बजे जौनपुर पुलिस लाइन के कंट्रोल रूम से मैसेज आया कि कुछ अपराधी पुलिस पर फायरिंग करके वाराणसी की ओर भाग रहे हैं. इस सूचना पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अभय प्रसाद ने अपने सभी अधीनस्थ अधिकारियों और पुलिस थानों को तत्काल अपराधियों का पीछा करने के लिए आदेश दिया.

खुद को घिरा देखकर शूटरों ने अपने वाहन को हौज गांव की तरफ घुमा दिया. बरसात का मौसम होने के चलते अपराधियों की गाड़ी गड्ढे में फंस गई. इस बीच कई गांव वाले पहुंच गए. अपने आप को असुरक्षित देखते हुए दोनों शूटरों ने 10 साल की बच्ची को कब्जे में लेकर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. जब तक गांव के लोग कुछ समझ पाते, तब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. 

बदमाशों के माथे पर लगी थी गोली

पुलिस ने बदमाशों से सरेंडर करने की बात कही, लेकिन वह नहीं माने. इसी दौरान दोनों अपराधी मोबाइल फोन से किसी से बातचीत कर रहे थे. चर्चा थी कि दोनों अपराधी अपने 'आका' से बात कर रहे थे. थोड़ी देर बाद ही कमरे में गोली चलने की आवाज आई. कमरे की छत को तोड़कर देखा तो दोनों अपराधी गंभीर रूप से घायल होकर जमीन पर पड़े थे. दोनों के माथे पर गोली लगी हुई थी. 

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'आका' के आदेश पर एक-दूसरे पर चलाई बंदूक

कहा तो यहां तक जा रहा था कि दोनों बदमाशों ने अपने जिस आका से बात की थी, उसने उन्हें सिम कार्ड चबा जाने और एक दूसरे को गोली मार देने का आदेश मोबाइल पर दिया था. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां दोनों को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. बदमाशों के पोस्टमॉर्टम के दौरान सिम कार्ड उनकी सांस नली में पाया गया. जिसके आधार पर पुलिस कॉल डिटेल्स निकालकर मामले की तह तक पहुंच गई थी.

मारे गए दोनों बदमाशों में एक की शिनाख्त विजय बहादुर सिंह के रूप में हुई, जबकि दूसरे बदमाश की पहचान मुख्तार अंसारी के खास शूटर संजीव जीवा की गई थी, लेकिन दो दिन बाद ही संजीव जीवा के जिंदा होने की बात कही गई. 

(रिपोर्ट- राजकुमार सिंह)


 

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