लखनऊ: फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाले वकील को उम्रकैद, 5 लाख से ज्यादा का जुर्माना भी लगा, ऐसे लोगों को करता था परेशान

दरअसल, लखनऊ के वकील परमानंद गुप्ता ने एक महिला के साथ मिलकर संपति के विवाद में एससी/एसटी के तहत एक शख्स पर मुकदमा दर्ज करवाया था. साथ ही उससे मुआवजे की मांग को लेकर कोर्ट में अर्जी दी थी. लेकिन जांच में उसकी पोल पट्टी खुल गई.

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लखनऊ में वकील को उम्रकैद (Photo: ScreenGrab) लखनऊ में वकील को उम्रकैद (Photo: ScreenGrab)

आशीष श्रीवास्तव

  • लखनऊ ,
  • 20 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

लखनऊ की एससी/एसटी विशेष अदालत ने वकील परमानंद गुप्ता को झूठी FIR दर्ज कराने के मामले सजा सुनाई है. अदालत ने वकील को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा दी है. साथ ही 5 लाख 10 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है. दरअसल, परमानंद गुप्ता ने एक महिला के साथ मिलकर संपति के विवाद में एससी/एसटी के तहत एक शख्स पर मुकदमा दर्ज करवाया गया था और उससे मुआवजे की मांग को लेकर कोर्ट में अर्जी दी थी. 

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आपको बता दें कि विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया. अदालत ने परमानंद को अपने प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए दलित महिला पूजा रावत के माध्यम से झूठे मुकदमे दर्ज कराकर साजिश रचने और कानून का दुरुपयोग करने का दोषी ठहराया. 

विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा ने कहा कि गुप्ता ने रावत के साथ मिलीभगत करके अपने नाम से कम से कम 18 और रावत के माध्यम से 11 मुकदमे दर्ज कराए थे. इनमें से कई मुकदमे उनके प्रतिद्वंद्वी अरविंद यादव और उनके परिवार के खिलाफ संपत्ति विवाद के सिलसिले में दर्ज किए गए थे. उन्होंने बताया कि इन झूठे मुकदमों में रेप और छेड़छाड़ के आरोप भी शामिल थे. 

यह मामला तब प्रकाश में आया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दलीलें रखी गईं, जिसके बाद संबंधित थानों से रिपोर्ट मांगी गई. 5 मार्च, 2025 को उच्च न्यायालय ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए. जांच से पता चला कि गुप्ता ने यादव और उसके परिवार को झूठे आरोप में फंसाने  के लिए रावत की दलित पहचान का इस्तेमाल करने की साज़िश रची थी.  

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हालांकि, जांच के दौरान यह बात सामने आई कि कथित घटनाओं के समय रावत विवादित स्थल पर मौजूद ही नहीं थीं, और जिस मकान के बारे में उन्होंने दावा किया था कि वह किराए पर है, वह वास्तव में यादव परिवार द्वारा निर्माणाधीन था. 

बाद में रावत ने स्वयं 4 अगस्त, 2025 को अदालत में एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि गुप्ता और उनकी पत्नी संगीता, जो एक ब्यूटी पार्लर चलाती हैं, जहां वह सहायक के रूप में काम करती थीं, ने उन्हें फंसाया था. 

रावत ने स्वीकार किया कि उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने यौन उत्पीड़न का झूठा बयान देने के लिए मजबूर किया गया था और उन्होंने क्षमादान की गुहार लगाई. अदालत ने उन्हें सशर्त क्षमादान दे दिया. 

हालांकि, न्यायाधीश ने माना कि गुप्ता, इस बात से पूरी तरह वाकिफ थे कि आरोपों में आजीवन कारावास की संभावना है, उन्होंने ही साज़िश रची थी और इसलिए उन्हें कठोर दंड मिलना चाहिए. 

आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि उसके फैसले की एक प्रति उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेजी जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि "वकील परमानंद गुप्ता जैसे अपराधी अदालत परिसर में प्रवेश न कर सकें और कानून का अभ्यास न कर सकें, ताकि न्यायपालिका की पवित्रता बनी रहे."

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