एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन के ड्रग केस में कई खुलासे हो रहे हैं और अब तक की जांच में सामने आया कि आर्यन को फंसाने की साजिश रची गई थी. ठीक ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के बस्ती में सामने आया. यहां भी एक शख्स को ड्रग केस में फंसाया गया. उसे अपने बेगुनाही साबित करने में 20 साल लग गए. इन 20 सालों में उसने शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना झेली.
एक करोड़पति बिजनेसमैन को किराया मांगना इस कधर भारी पड़ा कि उसे 20 साल तक जेल में रहना पड़ा. मामला उत्तर प्रदेश के बस्ती का है. तत्कालीन सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ल ने किराया न देने पर घर से निकाले गए खुर्शीद नाम के एक सिपाही के साथ मिलकर एक निर्दोष को फंसाने की साजिश रची.
अब्दुल्ला अय्यूब को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 20 साल लग गए. इस बीच उसका करोड़ों का पूरा कारोबार तबाह हो गया. तनाव में मां की मृत्यु हो गई. समाज में मान-सम्मान- इज्जत सब चला गया. पुलिस ने इस व्यक्ति को फर्जी दोषी साबित करने के लिए नमूना तक बदल दिया. पुलिस ने खुले बाजार में बिकने वाले पाउडर को हिरोइन बता दिया.
20 रुपये के पाउडर को हीरोइन बताया
जो पाउडर बाजार 20 रुपये में मिलता है,,, उसे एक करोड़ की हीरोइन बतााया गया. इस व्यक्ति को कभी भी न्याय नहीं मिलता अगर अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम विजय कुमार कटियार केस की सुनवाई नहीं करते, जो कि पिछले 20 सालों से ना जाने कितने कोर्ट में पुलिस घुमाती रही. उसे जज विजय ने एक ही झटके में निस्तारित कर दिया.
न्यायालय को न्याय देने के लिए लखनऊ से 2 वैज्ञानिक तक को तलब करना पड़ा, जिन्होंने यह बताया कि जिस हीरोइन का नमूना दिल्ली जांच के लिए भेजा गया था. उस नमूने में हेराफेरी की गई इसलिए नमूना सही बताया. वैज्ञानिकों ने न्यायालय को यह भी बताया कि हीरोइन का कलर कभी भी नहीं बदलता. दिल्ली की जांच में भूरा हीरोइन बदलकर भेजा गया.
14 मार्च 2003 को दिखाई बरामदगी
इसलिए न्यायालय ने भी माना कि पुलिस ने इस पूरे मामले को गलत ढंग से पेश किया. अभियोजन पक्ष ने भी कोर्ट का समय बर्बाद किया. खास बात यह रही कि जब पुलिस ने हड़िया के पास से 14 मार्च 2003 को अयूब से एक करोड़ की लागत वाली 25 ग्राम हेरोइन बरामद किया था. उस वक्त अयूब के पास एक भी रुपया नहीं मिला था.
पीड़ित के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने बताया कि 2003 में पुरानी बस्ती थाना की पुलिस ने मेरे मुअक्किल को हीरोइन दिखाकर गिरफ्तार किया और जब कोर्ट का ट्रायल शुरू हुआ तो जो सैंपल पुलिस ने बस्ती प्रयोगशाला ने पाउडर में हीरोइन होने की पुष्टि होना पाया, लेकिन जब कोर्ट ने इस हीरोइन को लखनऊ के प्रयोगशाला में भेजा तो वहां पता चला कि वह हीरोइन है ही नहीं जिसके बाद नमूना मुकदमा जब दिल्ली के प्रयोगशाला में भेजा गया तो पुलिस वालों ने नमूने छेड़छाड़ कर दी.
वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने बताया कि बाद में जब कोर्ट ने लखनऊ से एक्सपर्ट वैज्ञानिकों को बुलाया तो एक्सपर्ट ने बताया यह तो नमूना है वह ब्राउन कलर का है जबकि हीरोइन कभी किसी जलवायु में अपना रंग नहीं बदलती और वह हमेशा सफेद रहती है. इस वजह से माननीय लेने पीड़ित को दोषमुक्त कर दिया.
वहीं पीड़ित अयूब ने कहा कि 2003 में मैंने खुर्शीद नाम के सिपाही को किराए पर अपना मकान दिया था, 5- 6 महीने बीत जाने के बाद भी उसने किराया नहीं दिया, जिसके बाद मैंने अपना मकान करा दिया, खुर्शीद सिपाही ने मुझे फर्जी हीरोइन दिखाकर गिरफ्तार कराया औऱ अपना बदला पूरा किया.
संतोष सिंह