'न ग्रोथ, न प्रमोशन और भेदभाव भी...' इंफोसिस के कर्मी ने बताई Job छोड़ने की वजह, पोस्ट वायरल

एक टेक प्रोफेशनल ने अचानक इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी.अब उसका एक सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हो रहा है. इसमें उसने जॉब छोड़नी की वजह बताई है. साथ ही ये भी साझा किया है कि उसके पास कोई बैकअप जॉब नहीं थी, फिर भी उसे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी.

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नौकरी छोड़ने के बाद इंफोसिस के कर्मी का पोस्ट वायरल (फोटो - AI) नौकरी छोड़ने के बाद इंफोसिस के कर्मी का पोस्ट वायरल (फोटो - AI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:26 PM IST

पुणे के एक इंजीनियर भूपेंद्र विश्वकर्मा ने अपनी नौकरी छोड़ने के पीछे की वजहों को लिंक्डइन पोस्ट के जरिए साझा किया, जो अब वायरल हो गई है. भूपेंद्र ने इंफोसिस में काम करने के दौरान अनुभव की गई समस्याओं को उजागर किया, जो कई कर्मचारियों की चिंताओं को उजागर करती है.

भूपेंद्र ने कंपनी को छोड़ने के छह प्रमुख कारण बताए, जिनके चलते उन्होंने कंपनी को छोड़ने का फैसला किया, भले ही उनके पास कोई दूसरा ऑफर न हो.

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1. इकोनॉमिकल ग्रोथ की कमी
भूपेंद्र ने बताया कि उन्हें तीन साल तक लगातार मेहनत और अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद वित्तीय वृद्धि नहीं मिली. उन्होंने कहा कि सिस्टम इंजीनियर से सीनियर सिस्टम इंजीनियर बना दिया गया, लेकिन सैलरी नहीं बढ़ाई गई. फिर ये कैसा प्रमोशन हुआ, जब  मेहनत का कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला, मतलब न ग्रोथ न प्रमोशन.

2. जिम्मेवारियों का अनुचित वितरण
जब उनकी टीम 50 से घटकर 30 लोगों की रह गई, तो बचा हुआ काम बाकी कर्मचारियों पर डाल दिया गया. उन्होंने लिखा कि न तो नए कर्मचारी भर्ती किए गए, न ही कोई मदद मिली. इसके बजाय मौजूदा टीम पर अतिरिक्त दबाव डाल दिया गया. 

3. करियर की स्थिरता
भूपेंद्र को एक घाटे वाले प्रोजेक्ट पर नियुक्त किया गया, जिससे उनकी वेतन वृद्धि और करियर के अवसर प्रभावित हुए. वो लिखते हैं कि यह स्थिति पेशेवर रूप से स्थिरता का कारण बन रही थी. आगे बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं थी.

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4. ऑफिस का खराब वातावरण
उन्होंने बताया कि अवास्तविक अपेक्षाओं और मामूली मुद्दों पर बार-बार शिकायतें एक तनावपूर्ण माहौल बनाती थीं. लगातार दबाव के कारण व्यक्तिगत कल्याण के लिए कोई स्थान नहीं बचा था.

5. पहचान की कमी
भले ही उन्हें सहकर्मियों और सीनियर्स से सराहना मिली, लेकिन इसका असर न तो प्रमोशन में दिखा, न ही वेतन वृद्धि में. मेहनत का फायदा उठाया गया, लेकिन सम्मान और पुरस्कार नहीं मिले.

6. ऑफिस में क्षेत्रीय भेदभाव
भूपेंद्र ने दावा किया कि ऑनसाइट अवसर मेरिट पर नहीं, बल्कि भाषाई प्राथमिकताओं पर आधारित थे. उन्होंने कहा कि तेलुगु, तमिल और मलयालम बोलने वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाती थी, जबकि हिंदी भाषी कर्मचारियों को नजरअंदाज किया जाता था.

भूपेंद्र बोले- ये हजारों कर्मचारियों की समस्या
भूपेंद्र ने कहा कि ये समस्याएं केवल मेरी नहीं हैं. ये उन हजारों कर्मचारियों के अनुभवों को दर्शाती हैं, जो इन मुद्दों के कारण खुद को असहाय महसूस करते हैं. मैंने अपनी मानसिक शांति और आत्म-सम्मान के लिए नौकरी छोड़ दी.

भूपेंद्र ने यह भी कहा कि प्रबंधन को इन समस्याओं को सुलझाने के लिए ईमानदार कदम उठाने चाहिए. कर्मचारी संसाधन नहीं हैं, वे इंसान हैं. अगर ऐसी विषाक्त प्रथाएं जारी रहीं, तो कंपनियां न केवल अपनी प्रतिभा खो देंगी, बल्कि अपनी साख भी.

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सोशल मीडिया पर छिड़ गई बहस 
भूपेंद्र की पोस्ट ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है. कई यूजर्स ने अपनी राय साझा की है.एक यूजर ने कहा कि इंफोसिस में सीनियर सिस्टम इंजीनियर बनना स्वचालित प्रक्रिया है, लेकिन वेतन नहीं बढ़ता. बेहतर होगा कि आप स्विच करें. दूसरे ने लिखा कि क्लाइंट की मांग पर मैं सहमत नहीं हूं. अक्सर सही दृष्टिकोण साझा करने पर वे इसे समझते हैं. समस्या तब होती है जब प्रोजेक्ट मैनेजर टीम का समर्थन नहीं करता. 

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