मिस्र के फराहो की शापित कब्रें... जिसके पास जाते ही चली जाती थी जान, अब इस रहस्य से उठा पर्दा

मिस्त्र के प्राचीन फराहो के अभिशाप का रहस्य अब सुलझ चुका है. माना जाता था कि शापित कब्र की वजह से ही खुदाई करने जाने वाले लोगों की मौत हो जाती थी. अब वैज्ञानिकों को एक ऐसी सच्चाई पता चली है, जिससे इस शाप का इस्तेमाल कैंसर के इलाज के लिए हो सकता है.

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तुतन खामेन की कब्र को खोलते वैज्ञानिक (फोटो - AFP) तुतन खामेन की कब्र को खोलते वैज्ञानिक (फोटो - AFP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2025,
  • अपडेटेड 4:24 PM IST

इजिप्ट में कई सारे प्राचीन फराहो के कब्र मिले हैं. इनमें से कुछ कब्रों को शापित माना जाता है. इसमें सबसे कम उम्र के फराहो यानी की मिस्त्र के राजा तूतनखामेन का मकबरा भी शामिल है. माना जाता है कि ऐसे कुछ कब्र शापित हैं, जिस वजह से वहां कदम रखने वाले लोगों की मौत हो जाती थी. ऐसी कहानियां इसलिए प्रचलित हुई, क्योंकि उस इलाके में कब्र लुटने वाले कई लुटरों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी.   
 
1920 के दशक में जब पुरातत्वविदों ने मिस्र में राजा तूतनखामुन के मकबरे की खुदाई शुरू की तो फिर वही घटना हुई. खुदाई में शामिल मजदूरों की मौत होने लगी. इन विचित्र मौतों के लिए फराओ के अभिशाप को जिम्मेदार ठहराया था. फिर दशकों बाद 1970 में जब वैज्ञानिकों के एक समूह ने पोलैंड में कासिमिर चतुर्थ की कब्र में प्रवेश किया, तो  12 सदस्यों वाली टीम में से 10 लोग कुछ ही सप्ताह में मर गये.

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सामने आया शापित कब्रों का रहस्य
अब इन शापित कब्रों के रहस्य और वहां जाने वाले लोगों के मरने की वजह का पता लग चुका है. दरअसल, कब्रों के इन अभिशाप का इस्तेमाल कैंसर से लड़ने के लिए किया जा सकता है.  जानते हैं आखिर इस शाप का इलाज के रूप में कैसे इस्तेमाल हो सकता है?

प्राचीन कब्रों पर मिलते हैं घातक कवक 
डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन फराहों के कब्र से वैज्ञानिकों को एस्परगिलस फ्लेवस नामक कवक मिला है. ये फेंफड़ों में संक्रमण पैदा कर देते हैं और उससे लोगों की मौत हो जाती है. उस वक्त लोगों को पता नहीं था कि इतने पुराने कब्रों में ऐसे कवक भी पाए जाते हैं, जिसके संपर्क में आने से लोगों की मौत तक हो सकती है. इसलिए कब्र की खुदाई करने वाले लोगों की जब मौत होती थी, तो उसे मिस्त्र के सम्राट का शाप माना जाता था.  

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इन कवकों में है कैंसर से लड़ने की क्षमता
अब पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस सूक्ष्मजीवी पर रिसर्च कर पता लगाया है कि लोगों की जान लेने वाले ये जीव जैव-चिकित्सा में जीवनरक्षक भी बन सकते हैं. इनके अंदर ऐसी क्षमता मौजूद है जो ल्यूकेमिया से लड़ने की क्षमता रखता है. उनका नया अध्ययन, जो इस सप्ताह नेचर केमिकल बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ . उससे पता चला है कि एस्परगिलस फ्लेवस, कैंसर से लड़ने वाले एजेंट में परिवर्तित हो सकता है, जो खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित पारंपरिक दवाओं से प्रतिस्पर्धा कर सकता है.

वैज्ञानिकों के रिसर्च में कवकों की अदभुत क्षमता का चला पता
उनका काम ऐतिहासिक रूप से विषाक्त पदार्थ को एक क्रांतिकारी औषधि के रूप स्थापित करने की क्षमता पर प्रकाश डालता है. रासायनिक और जैवआण्विक इंजीनियरिंग तथा जैव-इंजीनियरिंग की एसोसिएट प्रोफेसर शेरी गाओ ने दुनिया की पहली सफल एंटीबायोटिक का जिक्र करते हुए कहा कि कवक ने हमें पेनिसिलिन दिया है.इन परिणामों से पता चलता है कि प्राकृतिक उत्पादों से बनी कई और दवाएं अभी खोजी जानी बाकी हैं.

इस कवक से कैंसर की दवा बनानें में कई चुनौतियां
इस शोधपत्र के लेखक कियुयु नी ने इसे अत्यधिक संभावनाओं वाला अज्ञात क्षेत्र कहा है.  गाओ के समूह ने एस्परगिलस फ्लेवस से चार RiPPs को पृथक और शुद्ध किया, इन अणुओं ने ल्यूकेमिया कोशिकाओं के विरुद्ध मारक परिणाम दर्शाए. लेकिन बड़ी सफलता के लिए बाधाएं भी हैं. नी ने कहा कि इन रसायनों को शुद्ध करना कठिन है.

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क्योंकि वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया में हजारों RiPPs की पहचान की है, कवकों में बहुत कम RiPPs पाए गए हैं. इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि शोधकर्ताओं को इनके भिन्न वर्ग के अणुओं के साथ कन्फ्यूजन होता था तथा इसे पूरी तरह समझ नहीं पाते थे कि कवक इन्हें कैसे उत्पन्न करते हैं. इन यौगिकों का संश्लेषण जटिल है.

उन्होंने आगे कहा कि लेकिन यही बात उन्हें यह उल्लेखनीय जैवसक्रियता भी प्रदान करता है. नया शोध इस बात की पुष्टि करता है कि हमारे पर्यावरण और प्रकृति के बारे में अभी तक बहुत कुछ पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है और यह अन्वेषण समकालीन चिकित्सा के लिए लाभकारी हो सकता है.

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