जामिया हिंसाः छात्रों के वकील ने HC में दिल्ली पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप

याचिकाकर्ता छात्रों के वकील ने हाईकोर्ट से कहा कि छात्र प्रदर्शन के दौरान सीएए के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और पुलिस ने इन्हें एंटी सोशल बता दिया. छात्रों की तरफ से पुलिस ने एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की. पुलिस ने छात्रों के फोन तक छीन लिए. एक तरह से पुलिस ने छात्रों को बंदी बना लिया.

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दिल्ली पुलिस पर जामिया में छात्रों के साथ बुरा बर्ताव करने का आरोप (फाइल-पीटीआई) दिल्ली पुलिस पर जामिया में छात्रों के साथ बुरा बर्ताव करने का आरोप (फाइल-पीटीआई)

पूनम शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST

  • दिल्ली पुलिस ने छात्रों को 'पाकिस्तानी' तक कहकर बुलाया
  • वकील गोंजाल्विस ने कोर्ट को सौंपी हिंसा से जुड़ी 2 सीडी
  • आधा दर्जन से ऊपर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा HC
जामिया मिलिया इस्लामिया हिंसा से जुड़ी आधा दर्जन से ऊपर याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट में हो रही सुनवाई में छात्रों की तरफ से पेश हो रहे वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोपों की बौछार कर दी है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा कि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जो कुछ पुलिस ने छात्रों के साथ किया वह दंगे नहीं बल्कि पुलिस की बर्बरता थी. 100 से ऊपर छात्रों ने पुलिस के द्वारा की गई बर्बरता की पुष्टि भी की है. पुलिस ने छात्रों को 'पाकिस्तानी' तक कहकर बुलाया.

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बर्बरता पर जांच की मांग

गोंजाल्विस यहीं नहीं रुके. हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में उन्होंने कहा कि हिंसा के दौरान बसों को जलाने की कार्रवाई भी पुलिस द्वारा ही की गई और इसकी जांच की जानी चाहिए. बसों को जलाने की कार्रवाई छात्रों को बदनाम करने के लिए की गई. इससे जुड़ी 2 सीडी भी गोंजाल्विस ने कोर्ट को दी हैं.

गोंजाल्विस ने आगे कोर्ट को बताया कि जब पुलिस की हिंसा और बर्बरता से बचने के लिए छात्राएं वॉशरूम में घुस गईं तो पुलिस ने वहां आकर सारी लाइट्स को तोड़ दिया और उन्होंने लड़कियों पर हमला कर दिया.

कोर्ट से अनुरोध किया गया कि मामले की जांच ना तो दिल्ली पुलिस से और ना ही सीबीआई से कराई जानी चाहिए बल्कि यूपी दंगों की जांच करने वाले उन चार डीजीपी को इस मामले की जांच सौंपी जानी चाहिए.

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दिल्ली हाई कोर्ट में जामिया मिलिया इस्लामिया हिंसा मामले पर सुनवाई आखिरी दौर में है. दिल्ली हाईकोर्ट तकरीबन आधा दर्जन से ऊपर याचिकाओं पर फ़िलहाल सुनवाई कर रहा है जो सीएए के प्रदर्शन से जुड़े हुए थे, जिसके बाद दिल्ली में हिंसा हो गई.

कैंपस में पुलिस को घुसने की इजाजत नहीं

गोंजाल्विस ने कहा कि यूनिवर्सिटी के चीफ प्रॉक्टर ने ट्वीट करके जानकारी दी थी कि दिल्ली पुलिस को यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसने की इजाजत नहीं दी गई, लेकिन, यूनिवर्सिटी प्रशासन की इजाजत के बिना पुलिस अंदर कैंपस में दाखिल हुई और फिर छात्रों को पीटा. छात्रों को अस्पताल ले जाया गया. लाइब्रेरी में चिल्ली एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल हुआ. पुलिस ने अब इस मामले में जो चार्जशीट दाखिल की है, उसमें 4 छात्रों पर बड़ी साजिश का आरोप लगाया है.

वकील ने आगे हाईकोर्ट को बताया कि दरअसल, ये सच्चाई है ही नहीं, सच्चाई ये है कि पुलिस नाराज थी क्योंकि प्रदर्शनकारी पार्लियामेंट तक मार्च करना चाहते थे. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि पहले ये केवल प्रदर्शन था, लेकिन, बाद में पुलिस ने छात्रों के साथ युद्ध ही छेड़ दिया. पुलिस स्टूडेंट्स को सबक सिखाना चाहती थी ताकि भविष्य में कोई स्टूडेंट प्रदर्शन में शामिल न हो.

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छात्रों को नहीं मिला मुआवजा

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में उन छात्रों के नाम पढ़े, जिन्हें हिंसा वाली रात चोट आई थी. कोर्ट को वकील ने बताया कि एनएचआरसी की रिपोर्ट के बाद भी छात्रों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है.

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याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा कि छात्र प्रदर्शन के दौरान सीएए के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और पुलिस ने इन छात्रों को एंटी सोशल बता दिया. छात्रों की तरफ से पुलिस ने एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की. इसके अलावा छात्रों के फोन तक पुलिस ने छीन लिया. एक तरह से पुलिस ने छात्रों को बंदी बना लिया.

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जामिया की वाइस चांसलर ने पुलिस के उन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत भी दी, जो अवैध रूप से यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए थे. लेकिन अभी तक उस पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.

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