एफसएसआइ ने कहा त्योहारों में खाने की गुणवत्ता से नहीं होगा खिलवाड़!

एफएसएसआइ ने खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए किया पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) का ऐलान. कहा, संसाधनों की कमी अब खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के नहीं आएगी आड़े, जल्दी ही बढ़ेगी लैब्स और कर्मचारियों की संख्या.

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एफएसएसआइ ने की त्योहारों की तैयारी एफएसएसआइ ने की त्योहारों की तैयारी

मंजीत ठाकुर

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  • 26 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है. ऐसे में खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामलों का ग्राफ भी ऊपर चढ़ने लगता है. भारतीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (एफएसएसआइ) के लिए अगस्त से लेकर नवंबर तक का महीना सिरदर्द भरा होता है. ऐसे में एफएसएसआइ ने इस बार पहले से ही एहतियातन अपनी कमी को स्वीकार करते हुए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल की शुरुआत करने की घोषणा कर दी है. 

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पिछले तीन साल में खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामले लगातार बढ़े हैं. लेकिन फूड टेस्टिंग लैबोरेट्री की कम संख्या और उनमें कायर्रत स्टाफ की कमी के चलते के साथ ही फूड इंस्पेक्टर की कम तादाद मिलावट के मामलों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है. एफएसएसआइ के अधिकारी की मानें तो इस बार फूड इंस्पेक्टरों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे त्योहारों में खाद्य पदार्थों में मिलावट न होने देने के लिए पहले से ही तैयारी करें. उधर फूड टेस्टिंग लैब्स को भी चुस्त रहने के निर्देश दिए गए हैं.

खाद्य सुरक्षा के लिए बढ़ेंगे संसाधन

एफएसएसआइ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पवन अग्रवाल ने खुद माना ''सरकारी प्रयोगशालाओं में कर्मचारियों की कमी के चलते खाद्य पदार्थों की जांच प्रभावित होती है. कई फूड टेस्टिंग लैब में टेक्निशियन और हाउस कीपिंग कर्मचारी बेहद कम है. ऐसे में पीपीपी मॉडल खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने में बेहद मददगार साबित होगा.'' हालांकि नवंबर, 2018 में इंडिया टुडे को दिए साक्षात्कार में एक सवाल के जवाब में मुख्य कार्यकारी अधिकारी पवन अग्रवाल ने कहा था,'' रोजाना किस क्षेत्र की कितनी दुकानों से सैंपल उठा या किस दुकान के खाद्य उत्पादों में कमी पाई गई, ये आंकड़े जारी करना संभव नहीं है और इसकी जरूरत भी नहीं है. फूड सेफ्टी का मुद्दा अब मिलावट का नहीं रह गया. अब जरूरत खाद्य उत्पादों के मानक तय करने की है, जिस दिशा में एफएसएसएआइ काम कर रहा है. नया कानून भी प्रीवेंशन ऑफ फूड की जगह फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड, 2006 इसी बात को ध्यान में रखकर बनाया गया है.'' 

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कहीं न कहीं मिलावट के मामलों को एक साल से भी कम समय पहले नकारने वाले एफएसएसआइ के पवन अग्रवाल ने इस बात को स्वीकारा की खाद्य नमूनों की जांच करने के लिए न केवल और परीक्षण लैब की जरूरत हैं कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत भी है.

मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने यह भी कहा था, "दूसरे देशों के मुकाबले कम फूड इंस्पेक्टर की संख्या के कारण खाद्य सुरक्षा मामले में दूसरे देशों जैसी संतुष्टि मिलना तो संभव नहीं है. लेकिन हम यह तो नहीं कह सकते कि हमारे पास 'मैन पावर' नहीं है इसिलए 'अनसेफ फूड' ही खाना पड़ेगा. हम अपने संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करके इस कमी को पूरा कर रहे हैं. साथ ही टेक्नोलॉजी और थर्ड पार्टी का इस्तेमाल कर इस क्षमता को बढ़ाने की कोशिश है.''

लिहाजा एफएसएसएआइ ने संसाधनों को बढ़ाने के लिए पीपीपी मॉडल की तरफ कदम बढ़ा दिया है. प्राधिकरण के एक अधिकारी ने बताया कि जल्द ही फूड इंस्पेक्टर्स की संख्या में भी इजाफा किया जा सकता है. 

सीमित संसाधन

-देश में एफएसएसएआइ के कुल 3,500 फूड इंस्पेक्टर. जबकि अमेरिका और कनाड़ा की आबादी हमसे बेहद कम है लेकिन उनके यहां फूड इंस्पेक्टर की संख्या हमसे कहीं ज्यादा. 33 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका में 14,200 फूड इंस्पेक्टर है. जबकि कनाडा में यह संख्या 4,000 है.

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-एफएसएसएआइ की देशभर में कुल 213 टेस्टिंग लैब. इनमें 125 एन.ए.बी.एल प्रत्यायित निजी लैब, 72 राज्य सार्वजनिक और 16 रेफरल

मिलावट के मामले

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016-17 कुल जांच किए गए नमूनों में से 23.4 फीसदी में मिलावट पाई गई. 2018-19 में यह आंकड़ा बढ़कर 26.4 फीसदी हो गया.

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