केंद्र सरकार ने कहा- कानून की निगाह में लड़कियों का खतना अपराध

सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इसलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया है.

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सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट

अजीत तिवारी / संजय शर्मा

  • नई दिल्ली ,
  • 20 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 11:57 PM IST

धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हमारे कानून में लड़कियों का खतना करना पहले से ही अपराध की श्रेणी में है. इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है. अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सरकार की ओर से चीफ जस्टिस की अदालत में ये जानकारी दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इसलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया है. साथ ही मामले में अगली सुनवाई की तारीख 9 जुलाई तक जवाब तलब कर लिया. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली की सरकारों को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर की जा रही कार्रवाई का जवाब मांग चुका है.

याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिहाड़ ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं. लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है. क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है.

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लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई थी. याचिका में कहा गया कि ये तो अमानवीय और असंवेदनशील है. लिहाजा इस पर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाये तब तक कोर्ट गाइड लाइन जारी करे. इस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि कानून तो पहले से ही है. हां, इसमें प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है.

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