सामाजिक प्राणी होने के कारण विकट समय में मनुष्य एक दूसरी की मदद करता है. लेकिन कई बार उसका मदद करना उसे ही काफी भाड़ी पड़ता है और उसे नुकसान झेलना पड़ता है. चाणक्य अपने नीति शास्त्र यानी चाणक्य नीति में एक श्लोक के माध्यम से इस बारे में बताते हैं कि किस प्रकार के व्यक्ति की मदद करनी चाहिए और किस प्रकार के व्यक्ति की नहीं. वो बताते हैं कि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी मदद करने से मददगार ही मुसीबत में पड़ जाता है. आइए जानते हैं ऐसे लोगों के बारे में...
मूर्खाशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति।
चाणक्य इस श्लोक में तीन प्रकार के लोगों की बात करते हैं. वो कहते हैं कि मूर्खों से दूर रहना चाहिए, उन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं करनी चाहिए. मूर्ख को ज्ञान देने से कोई फायदा नहीं होता क्योंकि वो आपकी बात को नहीं समझ पाता. हो सकता है आपकी बात को वो गलत तरीके से ले ले और इससे आपका ही नुकसान हो जाए.
किसी भी मनुष्य की समझदारी उसके चरित्र पर निर्भर करती है. चाणक्य के मुताबिक जिस व्यक्ति का चरित्र ठीक न हो उसके करीब नहीं जाना चाहिए. क्योंकि चरित्रहीन लोगों की मदद करने पर खुद के नुकसान की ज्यादा संभावना रहती है. साथ ही चरित्रहीन व्यक्ति का साथ देने पर समाज भी आपको अपमानित करता है. इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना ही समझदारी है.
चाणक्य तीसरे व्यक्ति के रूप में असंतुष्ट व्यक्ति के बारे में बात करते हैं. वो कहते हैं कि जो लोग खुद से संतुष्ट नहीं होते, हमेशा दुखी रहते हैं, उनसे भी दूरी बनाकर रखना चाहिए. इनकी मदद करने पर बुराई ही मिलती है क्योंकि ये आपके किसी भी काम में मदद से संतुष्ट नहीं होते. ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें अपने दुख से ज्यादा दूसरों के सुख से जलन होती है.
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