बिहार में जल्‍द ही खुलेगा डॉल्फिन शोध केंद्र

दुनिया के दुर्लभ प्राणियों में से एक और विलुप्तप्राय होती जा रही डॉल्फिनों की तादाद बिहार में भी कम होती जा रही है. डॉल्फिनों का लगातार हो रहा शिकार और गंगा के प्रदूषण को इसका कारण माना जा रहा है. वैसे, सरकार अब डॉल्फिनों को बचाने के लिए पटना में एशिया का पहला डॉल्फिन शोध केंद्र खोलने जा रही है.

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आईएएनएस

  • पटना,
  • 25 अप्रैल 2012,
  • अपडेटेड 9:22 AM IST

दुनिया के दुर्लभ प्राणियों में से एक और विलुप्तप्राय होती जा रही डॉल्फिनों की तादाद बिहार में भी कम होती जा रही है. डॉल्फिनों का लगातार हो रहा शिकार और गंगा के प्रदूषण को इसका कारण माना जा रहा है. वैसे, सरकार अब डॉल्फिनों को बचाने के लिए पटना में एशिया का पहला डॉल्फिन शोध केंद्र खोलने जा रही है.

वर्ष 2009 में केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई 'भारतीय वन्य जीव संरक्षण नीति' के तहत डॉल्फिनों को सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास के बाद भी बिहार में गंगा नदी में इस स्तनधारी प्राणी की सुरक्षा के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

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जानकार बताते हैं कि जिस तरह बाघ जंगल की सेहत का प्रतीक है उसी तरह डॉल्फिन गंगा नदी के स्वास्थ्य की निशानी हैं. गंगा में घटते जलस्तर व उसकी गंदगी पर भी पर्यावरण वैज्ञानिक समय-समय पर चिंता प्रकट करते रहे हैं. जलस्तर घटने के कारण डॉल्फिनों के शिकार की आशंका बढ़ जाती है.

जानकार बताते हैं कि पूरे देश में डॅल्फिनों की संख्या 1800 है जिसमें केवल बिहार में 1200 डॉल्फिन हैं. आंकड़ों के अनुसार दो-तीन वर्ष पूर्व पटना में गंगा नदी के गाय घाट से लेकर कलेक्ट्रियट घाट तक 200 डॉल्फिनें थीं लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 25 से 30 रह गई है.

उल्लेखनीय है कि इन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 1991 में बिहार में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र को 'गैंगेटिक रिवर डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया है लेकिन इसके बाद भी इनके शिकार में कमी नहीं आ रही है.

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डॉल्फिन संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित सलाहकार समिति के अध्यक्ष व पटना विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान के विभागध्यक्ष डॉ़ आऱ क़े सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि डॉल्फिनों में एक विशेष प्रकार का तेल पाया जाता है. किसी भी डॉल्फिन में यह तेल उसके वजन के 30 प्रतिशत के बराबर होता है.

इस तेल की गंध से अन्य मछलियां उसकी ओर आकर्षित होती हैं. मछुआरे अपने जाल में इसी तेल का प्रयोग करते हैं और इस तेल को पाने के लिए वे डॉल्फिन का शिकार करते हैं. वह बताते हैं कि अब भारत में 2000 से भी कम डॉल्फिन हैं. वह डॉल्फिनों की कमी का कारण गंगा का प्रदूषणयुक्त होना भी बताते हैं. वह कहते हैं कि गंगा के घटते जलस्तर को रोकना एक बड़ी चुनौती है.

गौरतलब है कि फरवरी 2012 में योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया बिहार दौरे पर आए थे. जब वह गंगा की सैर पर निकले तो उन्होंने डॉल्फिनों की अठखेलियों को देखा था. तभी उन्होंने यहां डॉल्फिन शोध केंद्र खोलने की घोषणा की थी.

सिन्हा कहते हैं कि बिहार सरकार की पहल पर बनने वाला यह केंद्र एशिया का पहला डॉल्फिन शोध केंद्र होगा. उन्होंने कहा कि इससे डॉल्फिन और उसकी कुछ प्रजातियों को बचाने की राह खोलेगा. गैंगेटिक डॉल्फिन स्वच्छ पानी में पाई जाने वाली चार प्रजातियों में एक हैं. डॉल्फिन स्तनधारी जीव है जो सिटेसिया समूह का एक सदस्य है. आम बोलचाल की भाषा में सोंस और संसू कहे जाने वाले डॉल्फिन को 'गंगा की गाय' नाम से भी जाना जाता है.

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जानकार बताते हैं कि एक पूर्ण व्यस्क डॉल्फिन की लम्बाई दो से 2.70 मीटर तक होती है जबकि इनका वजन 100 से 150 किलोग्राम तक होता है. मादा डॉल्फिन नर डॉल्फिन से अपेक्षाकृत बड़ी होती है. डॉल्फिन के विकास के क्रम में इनमें चमगादड़ों की तरह बहुत ही सूक्ष्म 'इको लोकेशन सिस्टम' का विकास होता है. ये ध्वनि के आधार पर दिशा का अनुमान लगाते हैं और अपना शिकार खोजते हैं.

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