अंग्रज़ों ने सत्ता का हस्तांतरण कर दिया था. भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बन चुके थे. धर्म के आधार पर हो रही हिंसा जारी थी. जूनागढ़ नाम की एक जगह से एक मुस्लिम परिवार वेरावल नाम के तट पर एक डोंगी में चढ़ा. ये डोंगी पाकिस्तान जा रही थी. उस परिवार का एक लड़का वज़ीर अपने दो चाचाओं के साथ छह दिन पहले कराची जा चुका था. उन्हें समझ में आ गया था कि कराची में गुज़ारा हो जाने वाला था. उन्होंने जूनागढ़ में बाकी के परिवार को इत्तेला किया और वो सभी रात के अंधेरे में उस डोंगी में बैठ चुके थे. साथ में 4 लड़के और थे. कराची में अपने चाचा के साथ इंतज़ार कर रहे वज़ीर के 4 छोटे भाई. हनीफ़, रईस, मुश्ताक़ और सादिक. साढ़े चार दिन बाद ये परिवार नयी ज़मीन पर कदम रख रहा था. वो ज़मीन जिसे नया-नया नाम मिला था - पाकिस्तान. शहर का नाम अब भी वही था - कराची.
जूनागढ़ के नवाब को पाकिस्तान भागता देख इस परिवार ने भी अपना घर, थोड़ी-बहुत ज़मीन, सब कुछ हिंदुस्तान में छोड़ दिया था. कराची के हाजी कैम्प के एक तम्बू में इस परिवार को शरण मिली. यूं तो ये जगह मक्का जाने वालों के लिये काम में आती थी लेकिन फ़िलहाल इसे भारत से पाकिस्तान आने वालों के लिये रिफ़्यूजी कैम्प की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था.
5 भाइयों का ये मोहम्मद परिवार आगे चलकर खेल के मामले में पाकिस्तान का सबसे बड़ा परिवार बना. पकिस्तान के इतिहास के पहले 101 टेस्ट मैचों में से 100 मैचों में इस परिवार के कम-से-कम एक सदस्य ने हिस्सा लिया था. पाकिस्तान का 90वां टेस्ट वो पहला मौका था जिसमें मोहम्मद परिवार का कोई भी सदस्य खेल नहीं रहा था. पाकिस्तान के इतिहास में कुल 218 टेस्ट ऐसे हैं, जिसमें मोहम्मद परिवार का कोई न कोई सदस्य खेल रहा था.
वज़ीर मोहम्मद, रईस मोहम्मद, हनीफ़ मोहम्मद, मुश्ताक़ मोहम्मद, सादिक़ मोहम्मद. इन मोहम्मद भाइयों में रईस मोहम्मद की 14 फ़रवरी 2022 को मौत हो गयी. कैरम और बैडमिन्टन की शानदार खिलाड़ी अमीर बी के इन पांच बेटों में बस रईस मोहम्मद ही ऐसे थे जो पाकिस्तान के लिये क्रिकेट नहीं खेले. अमीर बी का एक बेटा और एक बेटी और थे. लेकिन वो बेहद कम उम्र में ही चल बसे थे.
रईस मोहम्मद के बारे में वज़ीर मोहम्मद कहते हैं कि पांचों भाइयों में रईस सबसे स्टाइलिश बल्लेबाज़ थे. ये उनकी ख़राब किस्मत थी कि उन्हें पाकिस्तान की ओर से टेस्ट क्रिकेट खेलने का कभी मौका ही नहीं मिला. वरना वो बहुत नाम कमाते.
और असल में, जब आप 1 जनवरी 1955 का क़िस्सा सुनते हैं तो ये ख़राब किस्मत वाली बात सही साबित होती हुई भी मालूम होती है. भारत और पाकिस्तान अलग हो चुके थे लेकिन बांग्लादेश अभी अस्तित्व में नहीं आया था. भारतीय टीम ढाका में थी और साल 1955 के पहले दिन की सुबह उन्हें पाकिस्तान के साथ टेस्ट मैच खेलना था. 31 दिसम्बर 1954 की शाम पाकिस्तानी कप्तान अब्दुल हफ़ीज़ कारदार रईस के पास पहुंचे और उनसे कहा कि वो जल्दी सोने की कोशिश करें क्यूंकि अगली सुबह उन्हें मैच खेलना था. रईस मोहम्मद कड़ाके की ठंड के बीच ख़ुशियों के समंदर में गोते लगा रहे थे. उन्होंने अपना सारा सामान व्यवस्थित किया और जल्दी सोने चले गए. सुबह जल्दी उठे भी. पूरी तैयारी के साथ कमरे से बाहर निकले. लेकिन नाश्ते के वक़्त उन्हें कप्तान ने बताया कि वो अंतिम एकादश का हिस्सा नहीं होने वाले थे. रात भर में ही कप्तान का दिमाग बदल चुका था. और रईस मोहम्मद को 12वां खिलाड़ी बना दिया गया. टेस्ट क्रिकेट में रईस इससे आगे कभी नहीं बढ़ पाये.
रईस मोहम्मद के बारे में उनके छोटे भाई मुश्ताक़ मोहम्मद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, "रईस ने ही मुझे लेग-ब्रेक्स फेंकनी सिखायी. मैं बहुत छोटा था इसलिये वो 22 गज की जगह 18 गज पर मेरा मार्क बनाते और मुझसे गेंद फिंकवाते. वो कमाल के लेग स्पिन गुगली गेंदबाज़ थे और गेंद को उनसे ज़्यादा कोई स्पिन नहीं करवा पाता था. आज, अगर मैं पलट कर देखूं तो समझ में आता है कि हम 5 भाइयों में, जो टेस्ट खेलना डिज़र्व करते थे, रईस सबसे नेचुरल मिडल-ऑर्डर बल्लेबाज़ थे और बहुत कमाल के लेग स्पिनर थे."
रईस मोहम्मद पाकिस्तान के लिये कभी क्रिकेट नहीं खेल सके. लेकिन उनके बेटों आसिफ़, शाहिद और तारिक़ ने पाकिस्तान के लिये टेस्ट मैच खेले.
केतन मिश्रा