पानी, परंपरा और परिशुद्धि का विज्ञान: प्रक्षालन, वजू, स्नान

Wazu: काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का वजूखाना सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील करने के बाद 'वजू' की काफी चर्चा है. मुस्लिम धार्मिक स्थलों में प्रवेश से पहले शारीरिक रूप से शुद्ध होते हैं, उसे ही 'वजू' कहा जाता है.

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धर्म स्थल में प्रवेश करने से पहले शारीरिक शुद्धि आवश्यक. (सांकेतिक तस्वीर) धर्म स्थल में प्रवेश करने से पहले शारीरिक शुद्धि आवश्यक. (सांकेतिक तस्वीर)

संजय शर्मा

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  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद वजूखाने में कथित रूप से शिवलिंग मिलने के दावे पर बहस छिड़ी हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में वजू करने के स्थान को सील करने को कह दिया है. लेकिन मस्जिद में नमाज पर कोई पाबंदी नहीं है. माना जा रहा है कि मुस्लिम धर्मावलंबी अब वैकल्पिक जगह से वजू करके नमाज पढ़ने जाएंगे. हालांकि, वजू पर विवाद का तो कोई तुक होना नहीं चाहिए. पवित्र, पाक, आस्था स्थल या धर्म स्थल में प्रवेश करने से पहले शारीरिक शुद्धि तो आवश्यक है.

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सनातन परंपरा में भी हाथ-पैर धोकर ही इन स्थलों में जाने की सीख बच्चों को बचपन से ही घुट्टी में पिलाई जाती है. ये घुट्टी धर्म और पंथ से निरपेक्ष होती है यानी सभी अपने बच्चों को पिलाते ही हैं. क्योंकि बच्चे वही करते हैं जो घर में होता हुआ देखते हैं. इसे ही हम संस्कार कहते हैं.  तभी तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है -

ज़बान ए तिफ्ल से खुलते हैं खानदान के राज़.
अदब, सलीके शऊर सब घर से मिलते हैं!!

ये परंपरा भारत या कहें एशिया में कमोबेश हर धर्म में मिल जाती है. पारसी अपने अग्नि मंदिर में प्रवेश से पहले हाथ पैर धोने के साथ साथ एक तय धार्मिक प्रक्रिया से भी गुजरते हैं. उन्हें कुछ पवित्र आध्यात्मिक वस्तुएं धारण करनी अनिवार्य हैं तभी को प्रवेश करते हैं अग्नि मंदिर में.

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वैसे भी ये तो सभी जानते हैं कि कहीं भी बाहर से आकर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, अगियारी यानी अग्नि मंदिर या फिर मठ या विहार में प्रवेश करने पर पैरों में गंदगी, किटाणु, विषाणु के पैरों के जरिए अंदर प्रवेश करने की आशंका रहती है. जो शारीरिक और मानसिक सेहत पर असर डाल सकती है. यानी चित्त की एकाग्रता पर बुरा प्रभाव कर सकती है. 

धर्म स्थान पर या इबादतगाह में या फिर उपासना गृह में प्रवेश करने से पहले हाथ-पैर चेहरा धो लेने से शारीरिक ताजगी और मानसिक शांति भी मिलती है. आध्यात्मिक विशेषज्ञ ओशो ने भी अपने प्रवचन में कहा है कि बहते पानी या जल स्रोत के पास जाना, रहना, उसके संपर्क में आने से सकारात्मक ऊर्जा के साथ मस्तिष्क में शांति और एकाग्रता बढ़ती है. उससे ध्यान आसानी से लग जाता है. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है. तभी तो दुनिया के सारे तीर्थ स्थल नदियों या सरोवरों या पानी के चश्मों या जलस्रोतों के आसपास ही हैं.

यही फॉर्मूला भोजन से पूर्व भी लागू होता है तभी तो गीले पैरों से भोजन करने बैठना शुभ माना जाता है. भीगे हुए पैर शरीर के तापमान को भी नियंत्रित रखने में मदद करते हैं.

किसी भी पवित्र, आध्यात्मिक, धार्मिक भवन, मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले हाथ पैर धोने की परंपरा है. किसी भी धर्म या आस्था स्थल में हाथ पैर धोकर प्रवेश करने की सदियों पुरानी परंपरा है. मंदिरों में तो सनातन रिवाज है. 

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इस्लाम में वजू के बाद ही नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में जाकर जमात की सफ में खड़े होते हैं. हां, कहीं हाथ पैर धोकर फटाफट चल दिए तो इस्लाम में एक तय प्रक्रिया है पाक यानी बा-वज़ू होने की. इसमें हाथ, पैर, मुंह, कान और नाक को अंदर तक साफ करने के नियम और प्रक्रिया तय है. 

वहीं, गिरजाघरों (चर्च) में श्रद्धालुओं पर पवित्र सुगंधित जल का छिड़काव पादरी करते हैं. आरती के बाद जल के छींटे दिए जाते हैं. गुरुद्वारे में भी प्रवेश से पहले या तो जलस्रोत में हाथ पैर धोते हैं या फर्श पर ही बहता हुआ पानी होता है जिसमें से निकल कर यानी ऑटोमेटिक पैर धुल जाते हैं.

 

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