चाणक्य की नीतियां हमेशा मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं. मनुष्य इन नीतियों की मदद से सफलता हासिल कर सकता है. चाणक्य अपने नीति शास्त्र के एक श्लोक में उन चीजों के बारे में बताते हैं जिनके लिए कभी असंतोष नहीं करना चाहिए. साथ ही तीन ऐसी चीजों का भी उल्लेख करते हैं जिनके लिए मनुष्य को कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए. आइए जानते हैं इन चीजों के बारें में...
संतोषषस्त्रिषु कर्तव्य: स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्तव्यो अध्ययने जपदानयो:।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ संतुष्ट होकर रहना चाहिए. पत्नी अगर सुंदर न भी हो तो हमें उसे खुशी से स्वीकार लेना चाहिए. इसका विकल्प देखने पर जीवन भर दुखों का सामना करना पड़ता है.
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चाणक्य के मुताबिक भोजन का अनादर नहीं करना चाहिए. भोजन कैसा भी हो उसे खुशी से ग्रहण करना चाहिए. भोजन की बर्बादी से जीवन में कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं.
धन को लेकर चाणक्य कहते हैं कि इंसान की आमदनी हो उसी में संतुष्ट रहना चाहिए. साथ ही आय से अधिक खर्च भी नहीं करना चाहिए. ऐसा करने पर व्यक्ति कर्ज में डूब जाता है और फिर उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है.
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इसके अलावा श्लोक में चाणक्य तीन चीजों में कभी संतुष्ट नहीं होने को कहते हैं. चाणक्य के मुताबिक मनुष्य को अध्ययन, दान और जाप से कभी संतोष नहीं करना चाहिए. आचार्य कहते हैं कि मनुष्य इन तीनों को जितना करता है, उसे जीवन में उतनी सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
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