मां गंगा के अवतरण की पूरी कहानी, इस पूजा विधि से करें प्रसन्न

गंगा की धारा इतनी तेज थी कि उनके सीधे धरती पर आने का मतलब था तबाही. तब भागीरथ ने एक बार फिर तपस्या कर भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई.

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प्रतिकात्मक तस्वीर प्रतिकात्मक तस्वीर

सुमित कुमार / aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 जून 2019,
  • अपडेटेड 7:24 AM IST

गंगा दशहरा के अवसर पर जानते हैं कि आखिर मां गंगा का अवतरण कैसे हुआ और क्यों सदियों से लोग इनकी पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. प्राचीन काल में एक राजा हुए जिनका नाम सगर था. सगर एक प्रतापी और शक्तिशाली राजा थे.  राजा सगर के अश्वमेध घोड़े को देवताओं के राजा इंद्र ने पकड़ लिया और घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.

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उधर अश्वमेध घोड़े की तलाश में राजा सगर के 60 हजार पुत्र निकल पड़े. जब उन्होंने मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधा देखा तो आश्रम पर ही धावा बोल दिया. इसी समय तप में लीन कपिल मुनि की आंखें खुल गईं वो क्रोधित हो उठे. मुनि की आंखों में ज्वाला उठी और सगर के 60 हजार पुत्रों को पलभर में राख कर दिया.

राजा सगर के एक और पुत्र अंशुमान को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से अपने भाइयों की आत्मा के उद्धार की प्रार्थना की. तब कपिल मुनि ने उन्हें बताया कि अगर पवित्र गंगा का जल भस्म हुए सगर पुत्रों पर छिड़का जाए तो उन्हें मुक्ति मिल सकती है. अंशुमान ने बहुत कोशिश की लेकिन वो अपने भाइयों को कपिल मुनि के कोप से मुक्त नहीं करा सके. बाद में उनके पोते राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के  लिए तपस्या करने का बीड़ा उठाया. पूर्वजों का उद्धार करने के लिए भगीरथ ने कठोर तपस्या की और आखिरकार गंगा को धरती पर आने की उनकी प्रार्थना को स्वीकार करना पड़ा.

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अब सवाल था कि गंगा धरती पर आएं कैसे? गंगा की धारा इतनी तेज थी कि उनके सीधे धरती पर आने का मतलब था तबाही. तब भागीरथ ने एक बार फिर तपस्या कर भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई. भोले शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं से होकर धरती पर जाने के लिए कहा और तब जाकर राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हुआ और उन्हें मिली मुक्ति.

मां गंगा के अवतरण की कहानी

भगीरथ आगे आगे जा रहे थे और गंगा उनके पीछे चल रही थीं राजा भगीरथ पतित पावनी को गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गए. यहां उन्होंने कपिल मुनि से विनती की कि वो उनको अपने श्राप से मुक्त करें. गंगा की अमृतधारा भगीरथ की कठोर तपस्या का फल थी. मोक्षदायिनी मां गगा को धरती पर देखकर महर्षि कपिल प्रसन्न हुए. उन्होंने सगर पुत्रों को अपने श्राप से मुक्त कर दिया.

गंगा का पौराणिक महत्व

- माना जाता है कि गंगा श्री विष्णु के चरणों में रहती थीं

- भागीरथ की तपस्या से, शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया

- फिर शिव जी ने अपनी जटाओं को सात धाराओं में विभाजित कर दिया

- ये धाराएं हैं - नलिनी, हृदिनी, पावनी, सीता, चक्षुष, सिंधु और भागीरथी

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- भागीरथी ही गंगा हुई और हिन्दू धर्म में मोक्षदायिनी मानी गयी

- गंगा को मां पार्वती की बहन भी कहा जाता है

- इन्हे शिव की अर्धांगिनी भी माना जाता है

- और अभी भी शिव की जटाओं में इनका वास है

गंगा दशहरा की महिमा

- गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है

- माना जाता है कि, इसी दिन गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था

- इस दिन गंगा स्नान, गंगा जल का प्रयोग, और दान करना विशेष लाभकारी होता है

- इस दिन गंगा की आराधना करने से पापों से मुक्ति मिलती है

- व्यक्ति को मुक्ति मोक्ष का लाभ मिलता है

- इस बार गंगा दशहरा 12 जून को मनाया जाएगा

क्या करें गंगा दशहरा के दिन

- किसी पवित्र नदी या गंगा नदी में स्नान करें

- घी में चुपड़े हुये तिल और गुड़ को या तो जल में डालें या पीपल के नीचे रख दें

- माँ गंगा का ध्यान करके उनकी पूजा करें, उनके मन्त्रों का जाप करें.

- पूजन में जो भी सामग्री प्रयोग करें उनकी संख्या 10 होनी चाहिए

- विशेष रूप से 10 दीपक का प्रयोग करें, दान भी दस ब्राह्मणों को करें

- परन्तु ब्राह्मणों को दिए जाने वाले अनाज सोलह मुट्ठी होने चाहिए

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