रावण ने भी बताई थी श्रीराम को श्राद्ध करने की विधि, जानिए किन-किम सामग्रियों को बताया था जरूरी

रावण महापंडित था. लोककथाओं में रामायण के कई तरह के अलग-अलग वर्जन हैं. हर कथा थोड़े बहुत बदलाव के साथ आगे बढ़ती है. इसी तरह एक कथा में आता है कि रावण ने भी श्रीराम को श्राद्ध कल्प विधान के बारे में बताया था.

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श्राद्ध कल्प विधान में दरभाकुश और तिल का बहुत महत्व बताया गया है श्राद्ध कल्प विधान में दरभाकुश और तिल का बहुत महत्व बताया गया है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:32 PM IST

श्राद्ध पक्ष जारी है और अपने पितरों के लिए लोग तर्पण और पिंडदान कर रहे हैं. तीर्थराज गयाजी में श्रद्धालु जुट रहे हैं और इसके अलावा घरों में भी लोग तर्पण आदि की प्रक्रिया कर रहे हैं. सनातन परंपरा में तर्पण प्राचीन काल से चली आ रही प्रक्रिया है. ऋग्वेद में इसका पहला जिक्र पितृ सूक्त के आधार पर मिलता है. तर्पण को सामान्य बोलचाल में पानी देना कहते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि इस प्रक्रिया में तिल मिले जल को पूर्वजों का नाम लेकर उन्हें अर्पण किया जाता है.

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क्या है श्राद्ध कल्प विधान?

श्राद्ध कल्प का क्या विधान है और तर्पण कैसे किया जाए? इसके लिए पौराणिक आधार पर विधि बताई गई है, लोग उसके ही अनुसार इनका पालन करते हैं. पौराणिक आधार पर इस प्रश्न का जवाब कई तरीकों से मिलता है. रामायण-महाभारत जैसी कथाओं में श्राद्ध प्रक्रिया के पूरे विवरण मिलते हैं. इन्हीं में से एक कथा श्रीराम के वनवास के दौरान की है. जब उन्हें पता चलता है कि पिता महाराज दशरथ की मृत्यु हो गई है तो वे उनका श्राद्ध करने की तैयारी करते हैं.

महाकवि भास रचित नाटक में भी है श्राद्ध का जिक्र

रामायण की यही कहानी रामचरित मानस और अन्य महाकाव्य में लिखी है, इसके अलावा इस प्रसंग के कई अलग-अलग वर्जन लोकशैलियों में मिल जाएंगे. रामायण को लेकर संस्कृत के महाकवि भास ने दो प्रसिद्ध नाटक लिखे हैं. पहला है 'प्रतिमा नाटक और दूसरा है अभिषेक नाटक'

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महाकवि भास ने अपने नाटक में सीता हरण के प्रसंग का वर्णन सबसे अलग तरीके से किया है. इस कथा में अन्य कहानियों से उलट यह बताया जाता है कि रावण सीता को हरने के लिए ऋषि वेश बनाकर पहुंचा हुआ है. जिस समय रावण कुटिया के बाहर पहुंचकर वेश बदलता है, ठीक इसी समय राम और सीता पिता के श्राद्ध के विषय पर चर्चा कर रहे हैं.

तब रावण उनकी कुटिया में प्रवेश करता है. औपचारिक सत्कार के बाद रावण श्रीराम से कहना शुरू करता है. 'श्रीमान मैं कश्यप गोत्र का हूं. मैंने वेद की समस्त शाखाओं मनुस्मृति, माहेश्वर रचित योगशास्त्र, बृहस्पति के अर्थशास्त्र, मेगातिथि के न्याय शास्त्र और प्राचेस्त्र के श्राद्धकल्प पद्धति का अध्ययन किया है.'

रावण ने श्रीराम को बताई श्राद्ध की जरूरी वस्तुएं

क्या कहा आपने प्रभु? श्राद्ध कल्प पद्धति? राम ने पूछा. तब ऋषि बना रावण झूठे आश्चर्य का दिखावा करता है और पूछता है कि अन्य सभी विषयों को छोड़कर आपकी रुचि श्राद्ध पद्धति में क्यों है?

तब श्रीराम कहते हैं कि मेरे पिता अब नहीं रहे, इसीलिए अब यही शास्त्र मेरे लिए उचित है. ऐसे में आप ये बताएं महाराज, पिंडदान के समय मैं किन वस्तुओं से पितरों को संतुष्ट कर सकता हूं.

रावण, जो एक ज्ञानवान ब्राह्मण था और यहां उसने अपने असल पांडित्य और ज्ञान का ही परिचय दिया. रावण कहता है कि जो श्रद्धा से दिया जाए वही श्राद्ध है. तब राम कहते हैं, जो अश्रद्धा से दिया जाता है उसे पितर अस्वीकार कर देते हैं. इसीलिए मैं आपसे विशेष वस्तु के बारे में पूछ रहा हूं, जिसे पाकर मेरे पिता की आत्मा संतुष्ट हो सके.

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दरभाकुश, तिल, मछली, शाक श्राद्ध में जरूरी!

श्रीराम का ये प्रश्न सुनकर रावण सभी दिव्य और जरूरी वस्तुओं को बताने लगता है. रावण कहता है कि हे राम सुनो- मनुष्यों के लिए श्राद्ध करने में जरूरी वस्तुएं बताई गई हैं, वो ये हैं, वनस्पतियों में दरभाकुश, औषधियों में तिल, शाकों में कलाय, (कलाय, दाल का एक प्रकार है) मछलियों में महाशपर, (एक प्रकार की मछली) पक्षियों में सारस और पशुओं में गाय, गेंडा या स्वर्ण मृग. इनमें से जिससे भी श्राद्ध किया जाएगा, उसे पाकर पितर स्वर्ग में देवताओं की तरह रहेंगे.

लोककथा के मुताबिक, रावण ने स्वर्ण मृग की बात षड्यंत्र में कही थी, क्योंकि वह मारीच को पहले ही स्वर्ण मृग बनाकर जंगल में ले आया था. लेकिन, इसके अलावा रावण ने जो बताया वो सभी वस्तुएं असल में श्राद्ध कल्प के लिए जरूरी हैं. इसलिए रावण की बताई सामग्री के अनुसार भी पुरोहित से इन वस्तुओं पर विचार किया जा सकता है और पितरों का पिंडदान करते हुए इनका प्रयोग किया जा सकता है.

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