Kedarnath Dham 2025: केदारनाथ में शिवलिंग त्रिभुजाकार क्यों है? पढ़ें महाभारत के भीम से जुड़ी ये रहस्यमयी कथा

Kedarnath Dham 2025: केदारनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है, जो शिवजी के सबसे पवित्र मंदिरों में माना जाता है. अक्सर यह लोगों के मन में  सवाल उठता है कि क्यों केदारधाम धाम के शिवलिंग का बैल की पीठ जैसे त्रिकोणाकार रूप में विराजमान हैं. चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा जो पांडवों से जुड़ी हुई है. 

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केदारनाथ शिवलिंग केदारनाथ शिवलिंग

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 मई 2025,
  • अपडेटेड 6:20 PM IST

Kedarnath Dham 2025: केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुल चुके हैं. केदारनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है, जो शिवजी के सबसे पवित्र मंदिरों में माना जाता है. साथ ही, यह पंचकेदार तीर्थ स्थलों में से पहला है. जानकारी के मुताबिक, यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है. हिंदू किवदंतियों के अनुसार, साल के करीब 6 महीने बर्फ से ढके रहने वाले इस पवित्र धाम को भगवान शिव का निवास स्थान भी बताया गया है. एक और खास बात यह है कि केदारनाथ धाम के शिवलिंग का आकार दुनिया में सबसे अलग है.

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केदारनाथ के शिवलिंग का आकार त्रिकोण है. इसकी परिधि 12 फीट और ऊंचाई भी करीब 12 फीट ही है. मंदिर के सामने पार्वती और पांच पांडव राजकुमारों के चित्र हैं. अक्सर यह लोगों के मन में  सवाल उठता है कि क्यों केदारधाम धाम के शिवलिंग का आकार बैल की पीठ जैसा है. चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा जो पांडवों से जुड़ी हुई है. 

जब नंदी का रूप धारण कर धरती में समाए शिव

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बन चुके थे. उसके कुछ समय बाद ही माता कुंती, धृतराष्ट्र, गांधारी आदि लोगों ने भी सन्यास ले लिया था. फिर, एक दिन हस्तिनापुर की सभा में कुछ ब्राह्मणों ने पांडवों को बताया कि उन्होंने युद्ध में अपने भाइयों की हत्या की है और उस पाप को मिटाने के लिए उन सभी लोगों को भगवान शिव की उपासना करनी पड़ेगी. इस बात पर विचार कर सभी पांडव और द्रोपदी महादेव यानी शिवजी से क्षमा मांगने और सन्यास लेने पहाड़ों पर चले गए. इसके बाद भगवान शिव ने सभी पांडवों की परीक्षा लेने का फैसला किया और उनसे दूर जाने का फैसला भी किया.

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इसके बाद पांडव भगवान शिव की तलाश में जहां भी जाते, वहां से शिव जी चले जाते. आखिर में पांडवों को भगवान शिव के दर्शन हिमालय की पहाड़ियों में हुए, पर महादेव ने वहां भी बैल का रूप धारण कर लिया. उसके बाद जब पांडवों ने उस बैल को पकड़ने की कोशिश की तो उसी पल भगवान शिव पाताल लोक में जाने लगे. पर भीम ने किसी तरह उस बैल का कोलू पकड़ लिया और उन्हें धरती में जाने से बचा लिया. तभी, इस कोलू ने शिवलिंग का आकार ले लिया और उसी स्थान स्थापित हो गया. कहा जाता है कि पांडवों ने यहां पर भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी और जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इनके सभी पाप माफ कर दिए थे.

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