गणेशजी की आराधना एक नहीं 32 रूपों में होती है, जानिए आप किस स्वरूप की कर रहे हैं पूजा

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा प्रथम पूज्य के रूप में होती है. मुद्गल व गणेश पुराण में गणपति के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं, जिनमें बाल स्वरूप से लेकर महागणपति तक शामिल हैं. हर रूप का एक अलग महत्व और प्रेरणा है.

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गणेशजी के कई दिव्य स्वरूप बताए गए हैं गणेशजी के कई दिव्य स्वरूप बताए गए हैं

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:18 AM IST

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेण चतुर्थी मनाई जाती है. सनातन परंपरा में प्रथम पूज्य के रूप में उनकी पूजा की मान्यता है, इसीलिए कोई भी शुभ कार्य करने से पहले, विवाह, गृह प्रवेश, व्रत-संकल्प, हवन-पूजन-यज्ञ में सबसे पहले गणेशजी का ही स्मरण किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य पूर्ण होता है और उसमें आने वाली बाधाएं हट जाती हैं. आमतौर पर गणेश जी की आकृति गजमुख, चार हाथ, तोंद वाला पेट और भारी-भरकम शरीर है. उनकी पूजा इसी रूप में की जाती है.

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यह तो श्रीगणेश का एक स्वरूप हुआ, लेकिन भगवान गणेश वास्तव में प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप हैं. मुद्गल और गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेशजी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं. इनमें वे बाल रूप में हैं, तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है. गणेश पुराण के मुताबिक गणपति ही सृष्टि की प्रधान ऊर्जा हैं. ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्ति उनमें समाहित है. इसके साथ ही वह इन त्रिदेवों की आधार शक्ति त्रिदेवियों के सर्जक भी हैं. यानी वह सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का रूप भी हैं. वे पेड़, पौधे, फल, पुष्प के रूप में सारी प्रकृति खुद में समेटे हैं. श्रीगणेश ही योगी भी हैं और नर्तक भी.

कर्नाटक में मैसूर के पास एक शिव मंदिर में भगवान गणेश के सभी 32 रूप मौजूद हैं. इस मंदिर में देवी-देवताओं की 100 से अधिक प्रतिमाएं विभिन्न रूपों में हैं. इस मंदिर की गिनती कर्नाटक के सबसे बड़े मंदिरों में होती है. श्रीगणेश के इन सभी 32 रूपों की अलग-अलग मुखाकृति है साथ ही उनका स्वरूप और उनसे मिलने वाली प्रेरणा भी अनुकरणीय है. 

घरों में किस गणपति स्वरूप की पूजा?
वैसे उत्तर भारत में आमतौर पर घरों और मंदिरों में भी बहुतायत में तीन स्वरूप देखने को मिलते हैं. इनमें बाल गणपति, वरद गणपति यानी वरदान देने वाले और सिद्ध गणपति (सिद्धि दाता) प्रमुख हैं. गणेशजी के इन तीन स्वरूपों की पूजा सर्वाधिक होती है. दीपावली में भी देवी लक्ष्मी जी के साथ वरद गणपति या सिद्ध गणपति की ही पूजा होती है. कहीं-कहीं प्रतिमाओं में उन्हें देवी लक्ष्मी की गोद में दिखाया जाता है,  यह बालगणपति की प्रतिमा होती है.

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1. श्रीबाल गणपति - यह भगवान गणेश का बाल रूप है. यह स्वरूप निश्छल आत्मा, संतुष्टि और चेतना का प्रतीक है. यह प्रकृति के विकास का भी प्रतीक है. इसका अर्थ है कि धरती पर बड़ी मात्रा में संसाधन मौजूद हैं और भूमि उपजाऊ है. उनके चारों हाथों में एक-एक फल है- आम, केला, गन्ना और कटहल. गणेश चतुर्थी पर भगवान के इस रूप की पूजा भी की जाती है. आम तौर पर उनके हाथ में कोई न कोई फल जरूर दिखाई देता है. अभी की प्रतिमाएं लड्डू या मोदक स्वरूप वाली बनती हैं, लेकिन गणेश जी की प्राचीन प्रतिमाएं फल से युक्त रही हैं. यह रूप संकट में भी बाल सुलभ सहजता की प्रेरणा प्रेरणा देता है. 

2. तरुण गणपति - यह गणेशजी का किशोर रूप है. उनका शरीर लाल है. उनकी 8 भुजाएं हैं. उनके हाथों में फलों के साथ-साथ मोदक और अस्त्र-शस्त्र भी हैं. यह रूप आंतरिक प्रसन्नता देता है. यह युवावस्था की ऊर्जा का प्रतीक है. इस रूप में गणपति अपनी पूरी क्षमता से काम करने और उपलब्धियों के लिए संघर्ष की प्रेरणा देते हैं.

3. भक्त गणपति - इस रूप में वह श्वेतवर्ण हैं. उनका रंग पूर्णिमा के चांद की तरह चमकीला है. आमतौर पर फसल के मौसम में किसान उनके इस रूप की पूजा करते हैं. यह रूप भक्तों को सुकून देता है. उनके चार हाथ हैं, जिनमें फूल और फल हैं. इस रूप में गणपति चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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4. वीर गणपति - यह गणेशजी का योद्धा रूप है. इस रूप में उनके 16 हाथ हैं. उनके हाथों में गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित कई अस्त्र हैं. इस रूप में गणेश युद्ध कला में पारंगत दिखते हैं. उनकी पूजा साहस पैदा करती है. हार न मानने के लिए प्रेरित करती है. इस रूप में गणपति बुराई और अज्ञानता पर विजय पाने के लिए पूरी क्षमता से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं.

5. शक्ति गणपति - इस रूप में उनके चार हाथ हैं. एक हाथ से वे सभी भक्तों को अभय दे रहे हैं. अन्य हाथों में अस्त्र-शस्त्र भी हैं और माला भी. इस रूप में उनकी शक्ति भी साथ हैं. वे ‘अभय मुद्रा’ में हैं. गणेश जी का यह रूप इस बात प्रतीक है कि मनुष्य के भीतर ही शक्ति का स्त्रोत है, जरूरत है तो उसे जगाने की.

6. द्विज गणपति - इस रूप में उनके दो गुण अहम हैं- ज्ञान और संपत्ति. इन दो को पाने के लिए गणपति के इस रूप को पूजा जाता है. उनके चार मुख हैं. वे चार हाथों वाले हैं. इनमें कमंडल, रुद्राक्ष, छड़ी और ताड़पत्र में शास्त्र लिए हुए हैं.द्विज इसलिए हैं क्योंकि वे ब्रह्मा की तरह दो बार जन्मे हैं. उनके चार हाथ चार वेदों की शिक्षाओं का प्रतीक हैं.

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7. सिद्ध गणपति - इस रूप में गणेशजी पीतवर्ण हैं. उनके चार हाथ हैं. वे बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं. इस रूप में वे आराम की मुद्रा में बैठे हैं. अपनी सूंड में मोदक लिए हैं. मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर में गणेशजी का यही स्वरूप विराजित है. भगवान गणेश का यह रूप किसी भी काम को दक्षता से करने की प्रेरणा देता है. यह सिद्धि पाने का प्रतीक है.

8. उच्छिष्ट गणपति - इस रूप में गणेश नीलवर्ण हैं. वे धान्य के देवता हैं. यह रूप मोक्ष भी देता है और ऐश्वर्य भी. एक हाथ में वे एक वाद्य यंत्र लिए विराजित हैं. उनकी शक्ति साथ में पैरों पर विराजित हैं. गणेशजी के इस रूप का एक मंदिर तमिलनाडु में है. यह रूप ऐश्वर्य और मोक्ष में संतुलन का प्रतीक है. वे कामना और धर्म में संतुलन के लिए प्रेरित करते हैं.

9. विघ्न गणपति - इस रूप में गणेशजी का रंग स्वर्ण के समान है. कहीं-कहीं उनके आठ हाथ भी दिखाए जाते हैं. वे बाधाओं को दूर करने वाले भगवान हैं. इस रूप में वे भगवान विष्णु के समान दिखाई देते हैं. उनके हाथों में शंख और चक्र हैं. वे कई तरह के आभूषण भी पहने हुए हैं. यह रूप सकारात्मक पक्ष देखने की प्रेरणा देता है. यह नकारात्मक प्रभाव और विचारों को भी दूर करता है.

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10. क्षिप्र गणपति - इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण के हैं. उनके चार हाथ हैं. वे आसानी से प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं. उनके चार हाथों में से एक में कल्पवृक्ष की शाखा है. अपनी सूंड में वे एक कलश लिए हैं, जिसमें रत्न हैं. यह रूप कामनाओं की पूर्ति का प्रतीक है. कल्पवृक्ष इच्छाएं पूरी करता है और कलश समृद्धि देता है.

11. हेरम्ब गणपति - पांच सिरों वाले हेरम्ब गणेश दुर्बलों के रक्षक हैं. यह उनका विलक्षण रूप है. इस रूप में वे शेर पर सवार हैं. उनके दस हाथ हैं, जिनमें वे फरसा, फंदा, मनका, माला, फल, छड़ी और मोदक लिए हुए हैं. उनके सिर पर मुकुट है. इस रूप में गणेश कमजोर को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं. वे डर पर विजय पाने की प्रेरणा बनते हैं.

12. लक्ष्मी गणपति - इस रूप में गणेशजी बुद्धि और सिद्धि के साथ हैं. उनके आठ हाथ हैं. उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, जो सभी को सिद्धि और बुद्धि दे रहा है. उनके एक हाथ में तोता बैठा है. तमिलनाडु के पलानी में गणेशजी के इस रूप का मंदिर है. गणेशजी इस रूप में उपलब्धियां और  विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रेरित करते हैं.

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13. महागणपति - रक्तवर्ण वाला स्वरूप और तीन नेत्र धारण करने वाले हैं. उनके दस हाथ हैं और उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं. भगवान गणेश के इस रूप का एक मंदिर द्वारका में है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहां गणेश आराधना की थी. इस रूप में महागणपति दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे भ्रम से बचाते हैं.

14.विजय गणपति - इस रूप में वे अपने मूषक पर सवार हैं, जिसका आकार सामान्य से बड़ा दिखाया गया है. महाराष्ट्र में पुणे के अष्टविनायक मंदिर में भगवान का यह रूप मौजूद है. मान्यता है कि भगवान के इस रूप की पूजा से तुरंत राहत मिलती है. इस रूप में गणपति विजय पाने और संतुलन कायम करने के लिए प्रेरित करते हैं.

15. नृत्य गणपति - इस रूप में गणेशजी कल्पवृक्ष के नीचे नृत्य करते दिखाए गए हैं. वे प्रसन्न मुद्रा में हैं. उनके चार हाथ हैं. एक हाथ में युद्ध का अस्त्र परशु भी है. उनके इस रूप का तमिलनाडु के कोडुमुदी में अरुलमिगु मगुदेश्वरर मंदिर है. इस रूप का पूजन ललित कलाओं में सफलता दिलाता है. संगीत और चित्रकला से जुड़ी कलाओं में देवी सरस्वती के अलावा श्रीगणेश को भी आराध्य माना जाता है. 

16. उर्ध्व गणपति - इस रूप में उनके आठ हाथ हैं. उनकी शक्ति साथ में विराजित हैं, जिन्हें उन्होंने एक हाथ से थाम रखा है. एक हाथ में टूटा हुआ दांत है. बाकी हाथों में कमल पुष्प सहित प्राकृतिक सम्पदाएं हैं. वे तांत्रिक मुद्रा में विराजित हैं. इस रूप में गणेशजी की आराधना भक्त को अपनी स्थिति से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करती है.

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17. एकाक्षर गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन नेत्र हैं और मस्तक पर भगवान शिव के समान चंद्रमा विराजित है. मान्यता है कि इस रूप की पूजा से मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण में मदद मिलती है. गणपति के इस रूप का मंदिर कनार्टक के हम्पी में है. एकाक्षर गणपति का बीज मंत्र है ‘गं’ है. यह हर तरह के शुभारंभ का प्रतीक है. गणेश पुराण में इस स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है.

18. वरद गणपति - गणपति का यह रूप वरदान देने के लिए जाना जाता है. अपनी सूंड में वे रत्न कुंभ थामे हुए हैं. वे सफलता और समृद्धि का वरदान देते हैं. कर्नाटक के बेलगाम में रेणुका येलम्मा मंदिर में भगवान का यह रूप विराजित है. इस रूप में उनके साथ विराजित देवी के हाथों में विजय पताका है. वे विजयी होने के वरदान का प्रतीक हैं.

19. त्र्यक्षर गणपति - यह भगवान गणेश का ओम रूप है. इसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाहित हैं. यानी वे सृष्टि के निर्माता, पालनहार और संहारक भी हैं. कर्नाटक के नारसीपुरा में गणेश के इस रूप का मंदिर है, जिसे तिरुमाकुदालु मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस रूप में उनकी आराधना आध्यात्मिक ज्ञान देती है. यह रूप स्वयं को पहचानने के लिए प्रेरित करता है.

20. क्षिप्रप्रसाद गणपति - इस रूप में गणेश इच्छाओं को शीघ्रता से पूरा करते हैं और उतनी ही तेजी से गलतियों की सजा भी देते हैं. वे पवित्र घास से बने सिंहासन पर बैठे हैं. तमिलनाडु के कराईकुडी और मैसूर में भगवान के इस रूप का मंदिर है. गणेश जी का यह रूप सभी की शांति और समृद्धि के लिए काम करने की प्रेरणा देता है.

21. हरिद्रा गणपति - इस रूप में गणेशजी हल्दी से बने हैं और राजसिंहासन पर बैठे हैं. इस रूप के पूजन से इच्छाएं पूरी होती हैं. कर्नाटक में शृंगेरी में रिष्यशृंग मंदिर में गणेशजी का यह रूप विराजित है. माना जाता है कि हल्दी से बने गणेश रखने से व्यापार में फायदा होता है. इस रूप में गणेश प्रकृति और उसमें मौजूद निरोग रहने की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

22. एकदंत गणपति - इस रूप में गणेशजी का पेट अन्य रूपों के मुकाबले बड़ा है. वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए हैं. वे रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाते हैं और जड़ता को दूर करते हैं. इस रूप का पूजन पूरे देश में व्यापक रूप से होता है. इस रूप में गणेश अपनी कमियों पर ध्यान देने और खूबियों को निखारने के लिए प्रेरित करते हैं.

23. सृष्टि गणपति - गणेशजी का यह रूप प्रकृति की तमाम शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है. उनका यह रूप ब्रह्मा के समान ही है. यहां वे एक बड़े मूषक पर सवार दिखाई देते हैं. तमिलनाडु के कुंभकोणम में अरुलमिगु स्वामीनाथन मंदिर में उनका यह रूप विराजित है. यह रूप सही-गलत और अच्छे-बुरे में फर्क करने की प्रेरणा समझ देता है. इस रूप में गणेश निर्माण के प्रेरणा देते हैं.

24. उद्दंड गणपति - इस रूप में गणेश न्याय की स्थापना करते हैं. यह उनका उग्र रूप है, जिसके 12 हाथ हैं. उनकी शक्ति उनके साथ ही विराजित हैं. इस रूप में गणेश का देश में कहीं और मंदिर नहीं है. कर्नाटक के नंजनगुड में मौजूद श्रीकांतेश्वर मंदिर में गणपति के 32 रूपों में से एक प्रतिमा इस स्वरूप की भी मौजूद है. इसके अलावा यह कहीं आपको दिखाई नहीं देती है. गणेशजी का यह रूप सांसारिक मोह छोड़ने और बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है.

25. ऋणमोचन गणपति - गणेशजी का यह रूप अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देता है. यह रूप भक्तों को मोक्ष भी देता है. वे श्वेतवर्ण हैं और उनके चार हाथ हैं. इनमें से एक हाथ में मीठा चावल है. इस रूप का मंदिर तिरुवनंतपुरम में है. इस रूप में गणेशजी परिवार, पिता और गुरु के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए प्रेरित करते हैं.

26. ढुण्ढि गणपति - रक्तवर्ण गणेशजी के इस रूप में उनके हाथ में रुद्राक्ष की माला है. यानी इस रूप में वे अपने पिता शिवजी की आराधना और उनका जाप करते दिखाई देते हैं. उनके एक हाथ में लाल रंग का रत्न-पात्र भी है. गणेशजी का यह रूप आध्यात्मिक विचारों के लिए प्रेरित करता है. जीवन को स्वच्छ बनाता है.

27. द्विमुख गणपति - गणेशजी के इस स्वरूप में उनके दो मुख हैं, जो सभी दिशाओं में देखने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं. दोनों मुखों में वे सूंड ऊपर उठाए हैं. इस रूप में उनके शरीर के रंग में नीले और हरे का मिश्रण है. उनके चार हाथ हैं. यह स्वरूप संसार और मनुष्य के आंतरिक और बाहरी, दोनों रूपों को देखने के लिए प्रेरित करता है.

28. त्रिमुख गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन मुख और छह हाथ हैं. दाएं और बाएं तरफ के मुख की सूंड ऊपर उठी हुई है. वे स्वर्ण कमल पर विराजित हैं. उनका एक हाथ रक्षा की मुद्रा और दूसरा वरदान की मुद्रा में है. इस रूप में उनके एक हाथ में अमृत-कुंभ है. गणेश जी का यह रूप भूत, वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखकर कर्म करने के लिए प्रेरित करता है.

29. सिंह गणपति - इस रूप में गणेशजी शेर के रूप में विराजमान हैं. उनका मुख भी शेरों के समान है, साथ ही उनकी सूंड भी है. उनके आठ हाथ हैं. इनमें से एक हाथ वरद मुद्रा में है, तो दूसरा अभय मुद्रा में है. गणेश जी का यह रूप निडरता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, जो शक्ति और समृद्धि देता है.

30. योग गणपति - इस रूप में भगवान गणेश एक योगी की तरह दिखाई देते हैं. वे मंत्र जाप कर रहे हैं. उनके पैर योगिक मुद्रा में है. मान्यता है कि इस रूप की पूजा अच्छा स्वास्थ्य देती है और मन को प्रसन्न बनाती है. उनके इस रूप का रंग सुबह के सूर्य के समान है. भगवान गणेश का रूप अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचानने के लिए प्रेरित करता है.

31. दुर्गा गणपति - भगवान गणेश का यह रूप अजेय है. अज्ञानता, अंधकार और तामसिक शक्तियों पर विजय प्राप्ति उनका उद्देश्य है. इस रूप में वह एक तरीके से देवी दुर्गा के सार्वभौमिक स्वरूप में हैं. लाल वस्त्र धारी ये गणपति ऊर्जा का प्रतीक हैं. उनके हाथ में धनुष है. यह स्वरूप विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए प्रेरित करता है.

32.संकष्टहरण गणपति - इस रूप में श्रीगणेश डर और दुख को दूर करते हैं. मान्यता है कि इनकी आराधना संकट के समय बल देती है. उनके साथ उनकी शक्ति भी मौजूद है. शक्ति के हाथ में भी कमल पुष्प है. गणेशजी का एक हाथ वरद मुद्रा में है. यह रूप इस बात का प्रतीक है कि हर काम में संकट आएंगे, लेकिन उन्हें हटाने की शक्ति मानव में ही मौजूद है.

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