Shukra Pradosh Vrat: शास्त्रों में प्रदोष व्रत को बेहद शुभ माना जाता है. जो प्रदोष शुक्रवार के दिन आता है, उसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है. इस दिन किए जाने वाले प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है. हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. इस महीना का पहला प्रदोष व्रत 7 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ रहा है.
प्रदोष व्रत का महत्व (Shukra Pradosh Vrat Importance)
हिंदू धर्म में जितने भी उपवास किए जाते हैं, उन सब का विशेष महत्व बताया जाता है. लेकिन, इन सब में प्रदोष व्रत को सभी व्रतों से अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रदोष व्रत को बहुत सी जगहों पर त्रयोदशी व्रत की भी नाम से जाना जाता है. यह व्रत मां पार्वती और भगवान शिव को समर्पित बेहद ही महत्वपूर्ण व्रत है. प्रदोष व्रत दक्षिण भारत में प्रदोषम के नाम से जाना जाती है. पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से 2 गायों के दान जितना फल व्यक्ति को प्राप्त होता है. इस व्रत को निर्जला रखा जाता है.
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Shukra Pradosh Vrat Shubh Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत की पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को होगी. इस बार प्रदोष व्रत 7 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह 07 बजकर 26 मिनट पर से शुरू होकर 08 अक्टूबर,शनिवार को सुबह 05 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम को 06 बजे से शुरू होकर रात 08 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.
प्रदोष व्रत पूजन विधि (Shukra Pradosh Vrat Pujan Vidhi)
शुक्र प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं. स्नान करने के बाद साफ हल्के सफेद या गुलाबी कपड़े पहनें और शुक्र प्रदोष व्रत का संकल्प लें. उसके बाद बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है, इसलिए निराहार रहें और केवल जल का सेवन करें. पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले दोबारा से स्नान करें. शाम के समय प्रदोष काल में उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं. उसके बाद भगवान शिव को जल से स्न्नान कराकर रोली, मोली, चावल, धूप, दीप से पूजा करें. भगवान शिव को चावल की खीर और फल अर्पण करें. आखिरी में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें. और भोलेनाथ से सामने हाथ जोड़े.
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