क्या है 'अभय मुद्रा', जिसका राहुल गांधी ने लोकसभा में किया जिक्र, अजमेर दरगाह के चिश्ती क्यों भड़के?

राहुल गांधी ने विपक्ष के नेता के रूप में पहली बार लोकसभा में बोलते हुए अभय मुद्रा का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि भगवान शिव की अभय मुद्रा भय को छोड़कर निडर रहने की बात कहती है और कांग्रेस का चिह्न भी यही कहता है.

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राहुल गांधी ने लोकसभा में कई बार अभय मुद्रा का जिक्र किया (Photo- PTI) राहुल गांधी ने लोकसभा में कई बार अभय मुद्रा का जिक्र किया (Photo- PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST

सोमवार को संसद में विपक्ष के नेता के रूप में अपने पहले संबोधन में राहुल गांधी ने बार-बार 'अभय मुद्रा' का जिक्र किया. उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कहा कि सभी धर्मों ने अहिंसा और निडरता की बात की है. शिव की तस्वीर में और कांग्रेस का चुनाव चिह्न अभय मुद्रा है और ये निडर रहने की बात करता है. इसी दौरान राहुल ने कहा कि इस्लाम में दोनों हाथों से दुआ करना भी एक तरह की अभय मुद्रा है.

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हालांकि, राहुल गांधी की इस बात पर ऑल इंडिया सूफी सज्जादा नशीन काउंसिल के चेयरमैन और अजमेर दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने ऐतराज जताते हुए इसका खंडन किया है. उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म में न तो मूर्ति पूजा होती है और न ही किसी तरह की अभय मुद्रा होती है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को अपना बयान सही करना चाहिए.

क्या होती है अभय मुद्रा

'अभय मुद्रा', निर्भय रहने और सुरक्षा का एक संकेत है जो हिंदू, बौद्ध और जैन प्रतिमाओं में प्रचलित है. इस मुद्रा में आम तौर पर दाहिना हाथ कंधे की ऊंचाई तक उठा रहता है और हथेली को बाहर की और उंगलियों को सीधा रखते हुए दिखाया जाता है जबकि बायां हाथ गोद में रहता है.

अभय मुद्रा का अर्थ

निडरता

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अभय मुद्रा निडरता, भय को दूर करने और सुरक्षा के आश्वासन का प्रतीक माना जाता है. 

सुरक्षा

अभय मुद्रा को सुरक्षा, आश्रय देने और खतरे से सुरक्षा प्रदान करने के रूप में भी देखा जाता है.

दयालुता और शांति का प्रतीक

देवी-देवताओं की तस्वीरों में इस्तेमाल यह मुद्रा उनके दयालु स्वभाव को दिखाती है. यह मुद्रा शांति और स्थिरता के लिए भक्तों की रक्षा और उन्हें राह दिखाने का प्रतीक है.

अभय मुद्रा का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म- राहुल गांधी ने अभय मुद्रा का जिक्र करते हुए हिंदू देवता भगवान शिव का नाम लिया. शिव की कई प्रतिमाओं में इस मुद्रा को देखा जा सकता है. भगवान विष्णु, देवी दुर्गा की प्रतिमाओं में भी अभय मुद्रा देखने को मिलती है.

बौद्ध धर्म- भगवान बुद्ध की बहुत सी प्रतिमाएं ऐसी हैं जिसमें वो अभय मुद्रा में हैं. उनकी इस मुद्रा का अर्थ यह है कि बुद्ध भय को दूर कर अपने अनुयायियों को सुरक्षा देते हैं.

Photo- PTI

जैन धर्म- जैन तीर्थंकरों को भी कई बार इस मुद्रा में दिखाया गया है. यह दिखाता है कि तीर्थंकर अपने अनुयायियों को अभय रहने और राह दिखाने का काम करते हैं.

कई प्रतिमाओं और पेटिंग्स में देवी-देवताओं का शांत चित्रण करने के लिए अभय मुद्रा का इस्तेमाल होता आया है जो अपने अनुयायियों को निर्भय रहने और सुरक्षा देने का प्रतीक माना जाता है.

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गांधार शैली में अभय मुद्रा का इस्तेमाल

बौद्ध धर्म से संबंधित मूर्ति कला शैली गांधार शैली में भी अभय मुद्रा का भरपूर इस्तेमाल होता है. उपदेश देने का चित्रण करने के लिए इस शैली में अभय मुद्रा का इस्तेमाल होता है. चौथी सदी में Wei युग और सातवीं सदी में Sui युग में भी अभय मुद्रा का इस्तेमाल होता था.

वहीं, योग में भी अभय मुद्रा का इस्तेमाल होता है. यह मुद्रा योग और मेडिटेशन के दौरान प्राण के रूप में जानी जाने वाली जीवन शक्ति ऊर्जा के प्रवाह को दिशा देने के साधन के रूप में इस्तेमाल की जाती है. इस भाव का इस्तेमाल योग में भय को दूर करने और साहस पैदा करने के लिए किया जाता है.

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