Radha Ashtami 2025: श्रीकृष्ण से पहले क्यों लिया जाता है राधा रानी का नाम? जानिए इसके पीछे का कारण

Radha Ashtami 2025: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब कोई भक्त “राधा-राधा” पुकारता है तब श्रीकृष्ण अतिप्रसन्न हो जाते हैं और उसके जीवन के सभी कष्ट हर लेते हैं.

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राधा-कृष्ण (Photo: Pixabay) राधा-कृष्ण (Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 1:55 PM IST

Radha Ashtami 2025: इस बार राधा अष्टमी का पर्व 31 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा. पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. अक्सर हम सुनते हैं कि जब भी भगवान श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता है तो उससे पहले राधा रानी का नाम जरूर लिया जाता है. भक्त हमेशा 'राधे-कृष्ण', 'राधा-कृष्ण, कहते हैं, लेकिन कभी भी 'कृष्ण-राधा नहीं कहते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक मान्यता और अद्भुत रहस्य छिपा हुआ है.

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राधा नाम से प्रसन्न होते हैं श्रीकृष्ण

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राधा का नाम जपने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और मां लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है. राधा-कृष्ण का प्रेम कोई साधारण प्रेम नहीं है, बल्कि परमार्थ की वह अविरल धारा है, जो युगों-युगों से भक्तों के हृदय में चलती आ रही है. यही कारण है कि सदियों से श्रीकृष्ण का नाम राधा के साथ लिया जाता है. 

शास्त्रों में राधा रानी को श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्ति स्वरूपा और प्राणों की अधिष्ठात्री देवी बताया गया है. मान्यता है कि बिना राधा रानी के श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी है. श्रीमद् देवीभागवत पुुराण में उल्लेख मिलता है कि यदि कोई राधा की पूजा नहीं करता है तो वह कृष्ण भक्ति का अधिकारी नहीं होता है. माना जाता है कि जो भक्त राधा का नाम लेता है, भगवान श्रीकृष्ण उसकी पुकार सुनते हैं और जीवन के सभी कष्ट दूर कर देते हैं.

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पुराणों में वर्णन है कि स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा था 'राधा मेरी आत्मा है. मैं राधा में और राधा मुझमें वास करती हैं.' भगवान कृष्ण को भले ही अपना नाम बार-बार सुनना अच्छा न लगे, लेकिन जब कोई भक्त 'राधा-राधा' पुकारता है तो वे अतिप्रसन्न हो जाते हैं.

श्री कृष्ण से पहले क्यों लिया जाता है राधा रानी का नाम?

पौराणिक कथा के अनसुार, व्यास मुनि के पुत्र शुकदेव जी ने तोते का रूप लेकर राधा के महल में निवास किया था और दिन-रात 'राधा-राधा' जपते थे. एक दिन राधा रानी ने उनसे कहा कि वे अब 'कृष्ण-कृष्ण' नाम जपा करें. ऐसे में धीरे-धीरे नगर में हर कोई कृष्ण नाम जपने लगा था. यह देखकर श्रीकृष्ण बहुत उदास हो गए थे. उन्होंने नारद जी से कहा कि उन्हें 'राधा' नाम सुनकर ही आनंद मिलता है. कृष्ण को ऐसा बोलते सुनकर राधा की आंखें भर आईं और उन्होंने शुकदेव जी से कहा कि अब से केवल 'राधा-राधा' ही जपा करें. तभी से यह परंपरा बनी कि कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाता है.

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