Kunwara Panchami: कुंवारा पंचमी का श्राद्ध कल, जानें इस तिथि पर किन पितरों का होता है श्राद्ध

Kunwara Panchami: पितृपक्ष की पंचमी तिथि को कुंवारा पंचमी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन उन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हुए हुई हो.

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पितृपक्ष 2025 (PTI) पितृपक्ष 2025 (PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:17 PM IST

Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस अवधि में किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से पितरों की आत्मा को तृप्ति और शांति प्राप्त होती है. हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा के बाद से पितृपक्ष की शुरुआत होती है और यह अमावस्या तक चलता है. इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है और इसका समापन 21 सितंबर को होगा. पितृपक्ष में कई खास तिथियां आती हैं जिनमें से एक है पंचमी तिथि, जिसे कुंवारा पंचमी कहा जाता है. इस दिन उन पितरों का श्राद्ध करने का विधान है, जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई हो.

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कब है कुंवारा पंचमी 2025?

द्रिक पंचांग के अनुसार, इस बार श्राद्ध पक्ष की पंचमी तिथि 11 सितंबर, गुरुवार को पड़ रही है. इस दिन भरणी नक्षत्र दिनभर रहेगा. धर्मग्रंथों में भरणी नक्षत्र में किए जाने वाले श्राद्ध को विशेष फलदायी माना गया है. इसे महाभरणी श्राद्ध कहा जाता है.

कुंवारा पंचमी श्राद्ध करने का महत्व

कुंवारा पंचमी का श्राद्ध करने से उन पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है, जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई हो. इस दिन श्राद्ध करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. संतान सुख की प्राप्ति होती है और कुल में आने वाली बाधाओं और कष्टों का निवारण होता है.

कुंवारा पंचमी की श्राद्ध विधि

पितृपक्ष के हर श्राद्ध की तरह कुंवारा पंचमी का श्राद्ध भी पूरे विधि-विधान और श्रद्धा से करना चाहिए. इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि करके श्राद्ध स्थल को शुद्ध करें और गंगाजल का छिड़काव करें. साथ ही पितरों के लिए भोजन तैयार करें. भोजन में खीर का होना अनिवार्य है. मान्यता है कि इस दिन अविवाहित ब्राह्मण को आमंत्रित करना चाहिए. उनके मार्गदर्शन में विधि-विधान से श्राद्ध संपन्न करें. पितरों का स्मरण करते हुए अग्नि में खीर और अन्य भोजन सामग्री अर्पित करें. श्राद्ध भोजन में से चार ग्रास निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ और अतिथि के लिए रखें. यह परंपरा पितरों की तृप्ति के लिए प्रमुख मानी जाती है.

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