Pithori Amavasya 2025: पिठोरी अमावस्या को क्यों कहते हैं 'कुशाग्रहणी'? जानें तिथि, मुहूर्त और पूजन विधि

Pithori Amavasya 2025: द्रिक पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 22 अगस्त को सुबह 11:55 बजे से आरंभ होकर 23 अगस्त को सुबह 11:35 बजे समाप्त होगी. ऐसे में पिठोरी अमावस्या का व्रत 22 अगस्त को रखा जाएगा.

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Pitru Paksha 2024 Pitru Paksha 2024

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 8:00 AM IST

Pithori Amavasya 2025: अमावस्या तिथि हर माह कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन पड़ती है. लेकिन भाद्रपद माह में आने वाली पिठोरी अमावस्या का महत्व अत्यंत विशेष माना जाता है. इसे कुशाग्रहणी पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, पिठोरी अमावस्या के दिन स्नान-दान, पितरों के पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व बताया गया है. पिठोरी अमावस्या खासतौर पर संतान की सुख-समृद्धि, लंबी उम्र और सफलता की कामना के लिए मनाई जाती है.

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पिठोरी अमावस्या 2025 की तिथि और समय
द्रिक पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 22 अगस्त को सुबह 11:55 बजे से आरंभ होकर 23 अगस्त को सुबह 11:35 बजे समाप्त होगी. ऐसे में पिठोरी अमावस्या का व्रत 22 अगस्त को रखा जाएगा.

पिठोरी अमावस्या को ‘कुशाग्रहणी’ क्यों कहा जाता है
इस दिन पवित्र कुशा घास का संग्रह और पूजन किया जाता है. मत्स्य पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को पुनः अपने स्थान पर स्थापित किया. वध के पश्चात जब उन्होंने अपने शरीर से जल झटका, तो उनके कुछ बाल पृथ्वी पर गिरे, जो रूपांतरित होकर कुशा घास बन गए. 

64 योगिनियों की पूजा का महत्व
कथाओं के अनुसार, भाद्रपद की पिठोरी अमावस्या पर मां पार्वती ने 64 योगिनियों के साथ मिलकर गणेश जी की पूजा की थी. दरअसल पिठोरी" शब्द का अर्थ होता है 'आटे की मूर्तियां'. इसलिए इस दिन महिलाएं आटे से 64 योगिनियों की प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं. 64 योगिनियां देवी शक्ति का रूप मानी जाती हैं, और उनकी आराधना से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. 

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पिठोरी अमावस्या की पूजन विधि
इस दिन महिलाएं प्रातःकाल में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं. स्नान के बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल अर्पित करती हैं और फिर पितरों पर जल अर्पित करती हैं. पितरों के लिए जल अर्पित करते समय "ॐ पितृभ्यः नमः" मंत्र का जाप किया जाता है. पूजा स्थल में घी का दीप जलाकर बच्चों के नाम से व्रत का संकल्प लेती हैं. मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से संतान के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है. बताते चलें कि दक्षिण भारत में पिठोरी अमावस्या को पोलाला अमावस्या भी कहा जाता है.

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