आज जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat 2021) व्रत है. ये व्रत हर साल अश्विन मास (Ashwin maas) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इसे जिउतिया या जितिया व्रत (Jitiya Vrat) भी कहा जाता है. पुत्र की दीर्घ, आरोग्य और सुखमयी जीवन के लिए इस दिन माताएं व्रत रखती हैं. तीज की तरह यह व्रत भी बिना आहार और निर्जला रखा जाता है. यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है. सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त (Jivitputrika Vrat Pujan Shubh Muhurt)- जितिया व्रत की पूजा शाम में सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. 29 सितंबर को शाम 6 बजकर 9 मिनट पर सूर्यास्त होगा और इसके बाद प्रदोष काल प्रारंभ हो जाएगा. अष्टमी तिथि का समय रात 8:29 बजे तक है. जितिया व्रत की पूजा शाम 6:09 बजे से रात 8:29 बजे तक की जा सकती है.
जितिया व्रत की पौराणिक कथा- जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से है. युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था. सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला. कहा जाता है कि वो सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं. अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला. ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया. भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया. तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा है.
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