राजस्थान: 3 साल की चेतना को बोरवेल से निकालने का देसी जुगाड़ फेल, अब मंगाई गई पाइलिंग मशीन

मासूम बच्ची को बचाने की मुहिम में झटका लगा है. कारण, कैमरा अंदर फंस जाने की वजह से अब देसी तकनीक से बाहर निकालने का अभियान रोक दिया गया है. सुबह से एनडीआरएफ की टीम बोरवेल में रिंग रॉड और अंब्रेला तकनीक के जरीए बच्ची को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी, जो फेल हो गई है. बच्ची को बाद में उसके कपड़े में हुक लगाकर खींचने की कोशिश की गई, मगर वो 30 फीट तक ही ऊपर आ पाई और कैमरा कहीं बीच में अटक गया.

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कोटपूतली में मासूम बच्ची को बचाने में जुटे जवान कोटपूतली में मासूम बच्ची को बचाने में जुटे जवान

शरत कुमार / देव अंकुर

  • जयपुर,
  • 24 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:21 PM IST

राजस्थान के कोटपूतली में बोरवेल में फंसी 3 साल की चेतना 27 घंटे से भूखी प्यासी है. अभी तक रेस्क्यू ऑपरेशन में NDRF और SDRF को कोई सफलता नहीं मिल पाई है. परिजनों का आरोप है कि जिला प्रशासन ने बचाव कार्य शुरू करने में कई घंटे लगा दिए. शुरू में चेतना को बाहर निकालने के लिए 15 लोहे की छड़ों, जिनमें से प्रत्येक 10 फीट की थी, का उपयोग करके उसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद चेतना को बाहर नहीं निकाला जा सका.

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इस बीच चेतना को बचाने की मुहिम में झटका लगा है. कारण, कैमरा अंदर फंस जाने की वजह से अब देसी तकनीक से बाहर निकालने का अभियान रोक दिया गया है. सुबह से एनडीआरएफ की टीम बोरवेल में रिंग रॉड और अंब्रेला तकनीक के जरीए बच्ची को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी, जो फेल हो गई है. बच्ची को बाद में उसके कपड़े में हुक लगाकर खींचने की कोशिश की गई, मगर वो 30 फीट तक ही ऊपर आ पाई और कैमरा कहीं बीच में अटक गया.

अब फरीदाबाद से पाइलिंग मशीन मंगवाई जा रही हैं, जिसके बाद बोरवेल के बराबर होल खोदकर उस तक पहुंचा जाएगा. ADM ओम प्रकाश सारण ने कहा ने कहा कि जिस तकनीक के उपयोग से पिछले 24 घंटे से रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा था, उसकी सक्सेस रेट तो बहुत ज्यादा थी. लेकिन यहां कारगर नहीं हो रही है. ऐसे में अब प्रशासन पाइलिंग मशीन मंगवाकर दूसरे विकल्प शुरू करेगा. 120 फीट पर चेतना फंस गई है, इसलिए दूसरी तकनीक से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जाएगा.

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परिजनों ने प्रशासन पर समय बर्बाद करने का लगाया आरोप

आजतक से बात करने वाले कई लोगों ने दावा किया कि पाइलिंग मशीनों के लिए पहले ही कहा जाना चाहिए था और उन्हें लाया जाना चाहिए था, ताकि इसमें समय की बर्बादी न हो. आरोप है कि अगर एक साथ वैकल्पिक विकल्प को लागू किया गया होता, तो शायद चेतना को बाहर निकालने के प्रयासों के नतीजे अब तक मिल गए होते. 

जानकारी के मुताबिक, अगर पाइलिंग मशीनें डुडू और मानेसर से कोटपुली पहुंचती हैं, जहां से उन्हें मंगाया गया है, तो चेतना को बाहर निकालने में कम से कम 40 से 50 घंटे और लग सकते हैं. चेतना के दादा ने सवाल उठाते हुए कहा, "24 घंटे से अधिक समय बीत चुका है. मशीन कब आएगी?"

मामले का सुनकर दूर-दूर से लोग आ रहे 

किरतपुरा गांव में दूर-दराज के इलाकों से लोग जानकारी लेने के लिए पहुंचे हैं और बचाव प्रक्रिया की गति को लेकर चिंता व्यक्त की है, जिसे कई लोगों ने खेत में खेलते समय चेतना के बोरवेल में गिरने के कई घंटे बाद शुरू किया था. लड़की के पिता ने आजतक से कहा, "जिला प्रशासन ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है कि उसे कब बाहर निकाला जाएगा." 

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एक ग्रामीण ने कहा कि पाइलिंग मशीनें कल सोमवार को ही मंगाई जानी चाहिए थीं. प्रशासन ने महत्वपूर्ण समय बर्बाद किया है." 

छुट्टी के चलते मौके पर नहीं पहुंची डीएम

वहीं कोटपूतली-बहरोड़ कलेक्टर कल्पना दुर्घटना स्थल पर नहीं पहुंची थीं. जानकारी के अनुसार, वे छुट्टी पर थीं. उनकी अनुपस्थिति में, वैकल्पिक विकल्प तलाशने के प्रयासों में स्पष्ट देरी के बारे में पूछे जाने पर एडीएम ओमप्रकाश ने दावा किया, "हम लड़की को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं."

मासूम के पिता ने ही खुदवाया था बोरवेल 

मासूम के पिता भूपेंद्र ने बड्याली ढाणी में अपने घर के बाहर बोरवेल खुदवाया था. 700 फीट तक खोदने पर भी पानी नहीं मिलने पर उसे ढंकने के बजाय खुला छोड़ दिया था. सोमवार करीब डेढ़ बजे के आसपास उनकी दोनों बेटियां तीन साल की चेतना और आठ साल की काव्या बोरवेल के पास खेल रही थीं, इसी बीच चेतना का पैर बोरवेल के पास फिसल गया.  

करीब 15 दिन पहले राजस्थान के दौसा में ही आर्यन के बोरवेल में गिरने से मौत के बाद राज्य सरकार ने बोरवेल बंद करने के लिए एडवाइजरी जारी की थी, बावजूद इसके ये बोरवेल खुला हुआ था और जिसने ये बोरवेल खुदवाया, उसकी ही बेटी इसमें फंस गई.

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