पहलगाम हमले के बाद भारतीय एक्शन के खिलाफ पाकिस्तान में प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी पर पाकिस्तानी आर्मी विशेषकर सेना प्रमुख असीम मुनीर के खिलाफ जिस तरह की आवाजें उठनीं शुरू हुईं हैं उससे ताज्जुब जरूर हो रहा है. गिलगित-बाल्तिस्तान और बलूचिस्तान में सेना के खिलाफ प्रदर्शनों, सेना के भीतर कथित असंतोष, और सोशल मीडिया पर नाराजगी तो दिख रही थी पर जिस तरह मौलाना फजलुर रहमान ने मुनीर को निशाने पर लिया है वह हैरान करने वाला है. रहमान जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के प्रमुख और पाकिस्तान के एक प्रभावशाली धार्मिक व राजनीतिक नेता हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के समय रहमान का पाकिस्तानी सरकार और सेना की नीतियों की तीखी आलोचना बहुत मायने रखती है. पाक आर्मी के खिलाफ इस तरह की तीखी आलोचना की करने की हिम्मत अगर नेताओं को मिलने लगी है तो इसका सीधा मतलब है कि पाक आर्मी की पकड़ कमजोर हो रही है. रहमान की आलोचना पहलगाम हमला, भारत-पाक तनाव, कश्मीर, अफगानिस्तान, और बलूचिस्तान के मुद्दों को लेकर सामने आई है. आइये देखते हैं कि किस तरह पाकिस्तानी आर्मी लोगों के निशाने पर है.
1-राजनेताओं के निशाने पर असीम मुनीर
पाक आर्मी के प्रमुख असीम मुनीर के खिलाफ राजनीतिक दलों में जबरदस्त गुस्सा है. पूर्व पीएम इमरान खान तो सेना के खिलाफ बोलने के लिए जाने जाते रहे हैं. वो असीम मुनीर की व्यक्तिगत आलोचना भी करते रहे हैं. उनकी पार्टी के फवाद खान, उमर अयूब खान, महमूद खान अचकई आदि गाहे बगाहे असीम मुनीर को टार्गेट करते रहे हैं. पाकिस्तान में #MunirOut ट्रेंड करवाने के पीछे भी कहा जा रहा है कि पीटीआई का हाथ रहा. उदाहरण के लिए, एक यूजर @sufisal ने लिखा, मुनीर को हटाओ, इमरान खान को रिहा करो, और पाकिस्तान को बचाओ. PTI के आधिकारिक X हैंडल @PTIofficial ने भी कई पोस्ट्स में मुनीर की आलोचना की..
पर मौलाना फजलुर रहमान का मुनीर को टार्गेट करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के कश्मीर और हिंदू-मुस्लिम विभाजन पर दिए बयान को गुलामी वाली सोच करार दिया और कहा कि इससे भारत-पाक तनाव बढ़ा. उन्होंने बलूचिस्तान में सेना की कार्रवाइयों को लेकर 1971 जैसे हालात की चेतावनी दी, जब पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बना था.
पाकिस्तानी सेना के पूर्व अधिकारी आदिल राजा की आलोचना भी मायने रखती है. आदिल राजा ने दावा किया कि पहलगाम हमला जनरल असीम मुनीर के इशारे पर हुआ, ताकि उनके खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार और नीतिगत असफलताओं के मामलों से ध्यान हटाया जाए. उन्होंने कहा कि हमले की साजिश रावलपिंडी में रची गई.
2- मुनीर के चलते पाकिस्तान में क्षेत्रीय असंतोष बढ़ा
गिलगित-बाल्तिस्तान में स्थानीय लोग सेना के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं, खासकर शिगर जिले में. वे सेना द्वारा जमीन और खनिज संसाधनों के कथित कब्जे का विरोध कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने पाक सेना के खिलाफ हमारे संसाधन, हमारे अधिकार और कब्जे पर कब्जा नामंजूर जैसे नारे लगाए और सेना को चेतावनी दी कि जमीन कब्जाने की कोशिश हुई तो उनकी कब्रें पहाड़ों पर बनेंगी.
बलूचिस्तान में लंबे समय से सेना के खिलाफ असंतोष है, जो मानवाधिकार उल्लंघन और सैन्य कार्रवाइयों के आरोपों के कारण है. बलूच कार्यकर्ता सेना पर स्थानीय लोगों को दबाने और संसाधनों के शोषण का आरोप लगाते रहे हैं. पर सेना पहलगाम हमले के बाद सेना पर हमले बढ़ गए हैं.
सिंध में कैनाल का विरोध करने वाले वकीलों का संघर्ष सेना के अफसरों के खिलाफ है. इनका कहना है कि ये कैनाल सेना की पंजाबी लॉबी के अफसरों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई जा रही है. कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया कि सिंध में लोगों ने सेना के जवानों पर हमले शुरू किए हैं, और गृहयुद्ध जैसे हालात बन रहे हैं.
3-सेना के भीतर का असंतोष बाहर आने लगा
भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर दावे किए गए कि पहलगाम हमले के बाद 4,500 सैनिकों और 250 अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया. ऐसी खबरें आईं कि 72 घंटों में 1,450 सैनिकों (250 अधिकारियों सहित) ने इस्तीफा दे दिया. लेफ्टिनेंट जनरल उमर अहमद बुखारी ने कथित तौर पर मुनीर को पत्र लिखकर सेना में कमजोर मनोबल की बात कही है. हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने इन दावों को फर्जी और भारतीय प्रचार बताया है. पर ये बातें सही इसलिए लगती हैं क्योंकि मुनीर के खिलाफ मार्च 2025 में जूनियर अधिकारियों ने खुला पत्र लिखकर उनके इस्तीफे की मांग की थी. जिसमें उन पर सेना को राजनीतिक उत्पीड़न का हथियार बनाने का आरोप लगा था. कल्पना करिए भारत जैसे देश में जहां आर्मी सर्वशक्तिमान नहीं है ,फिर भी इस तरह की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. शायद यही कारण है कि उनके बयान को ही भारत और पाक के बीच तनाव का कारण माना जा रहा है. और मुनीर से इस्तीफे की मांग दोहराई गई है.
4-सोशल मीडिया के भी टार्गेट पर हैं मुनीर
पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर #MunirOut ने जबरदस्त ट्रेंड किया और मुनीर के लापता होने या रावलपिंडी के बंकर में छिपने की अफवाहें उड़ीं. उनके कश्मीर और हिंदू-मुस्लिम विभाजन पर बयान को उन्मादी और नफरत फैलाने वाला बताया गया.
निर्वासित पत्रकार ताहा सिद्दीकी ने मुनीर के बयान को हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाला करार दिया और दो-राष्ट्र सिद्धांत को असफल बताया. अन्य विश्लेषकों ने भी सेना की नीतियों को आर्थिक संकट और भारत के साथ तनाव का कारण माना.
दरअसल मुनीर के बयान को हमले से जोड़ा गया और उसके बाद भारत के ए्क्शन ने उनकी स्थिति और खराब कर दी. भारत के सिंधु जल समझौता रद्द करने, अटारी-वाघा बॉर्डर बंद करने और वीजा प्रतिबंध लगाने से आम लोगों में गुस्रा और बढ़ गया.
संयम श्रीवास्तव