दुनिया के प्राचीनतम मार्शल आर्ट

शरीर के कई आयामों की खोजबीन नहीं की गई है. ऐसे कराटे उस्ताद हैं जो आपको बस जरा सा छूने भर से मार सकते हैं. किसी को छूने से मार देना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्हें छूने मात्र से जागृत कर देना बड़ी बात है. 

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सद्गुरु सद्गुरु

सद्गुरु

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 2:28 PM IST

कलरीपयट्टु धरती पर मार्शल आर्ट का शायद सबसे पुराना रूप है. शुरुआत में इसे वास्तव में अगस्त्य मुनि ने सिखाया था, क्योंकि मार्शल आर्ट बस लात चलाने और घूंसा मारने के बारे में नहीं है. यह शरीर को हर संभव तरीके से इस्तेमाल करना सीखने के बारे में है. तो इसमें न सिर्फ कसरत और फुर्ती शामिल है, इसमें ऊर्जा प्रणाली की समझ भी शामिल है. कलरी चिकित्सा और कलरी मर्म में, शरीर के रहस्यों को जानना और शरीर को पुनर्योजी स्थिति में रखने के लिए उसे शीघ्रता से ठीक करना शामिल हैं. हो सकता है कि आज की दुनिया में कलरी का अभ्यास करने वाले बहुत कम हों जो इस पर पर्याप्त समय और ध्यान देते हैं, लेकिन अगर आप इसकी गहराई में जाएं, तो आप स्वाभाविक रूप से योग की ओर बढ़ते हैं, क्योंकि जो भी चीज अगस्त्य मुनि से आई है, वह आध्यात्मिक होने के अलावा किसी दूसरी तरह से नहीं हो सकती. उन्होंने खोजबीन के हर संभव तरीके को खोला है. 

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शरीर के कई आयामों की खोजबीन नहीं की गई है. ऐसे कराटे उस्ताद हैं जो आपको बस जरा सा छूने भर से मार सकते हैं. किसी को छूने से मार देना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्हें छूने मात्र से जागृत कर देना बड़ी बात है. 

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अगर हम लोगों के सिर्फ आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास कर रहे होते, तो वह आसान होता. मैं इसे कोई बड़ी चुनौती की तरह भी नहीं देखता. लेकिन हम मानव जीवन के रहस्यमय आयाम को खोलना चाहते हैं. इसके लिए एक अलग स्तर की एकाग्रता और प्रतिबद्धता चाहिए. प्रकृति द्वारा तय सीमाओं से परे जीवन को जानना, इसके लिए एक खास किस्म के लोग चाहिए. मानवता का 99.99 प्रतिशत अपने शरीर की खोजबीन किए बिना ही चला जाता है. लेकिन अगर आप इसकी खोजबीन करते हैं, तो शरीर बस यहां बैठे-बैठे जबरदस्त चीजें कर सकता है। यही योग का मार्ग है। कलरी बस उसका एक ज्यादा सक्रिय रूप है. 

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कलरी वन्यजीवन से निपटने के लिए विकसित हुआ 

मार्शल आर्ट मुख्य रूप से दक्षिण भारत से विकसित हुआ है. अगस्त्य मुनि छोटे कद के थे, लेकिन उन्होंने अंतहीन तरीके से यात्रा की. उन्होंने मार्शल आर्ट को मुख्यतया वन्यजीवन से लड़ने के लिए विकसित किया. इस इलाके में बहुत बाघ घूमते थे - अब हम उनकी गिनती कर सकते हैं, अब हमारे पास हजार से थोड़े ज्यादा बाघ हैं. लेकिन एक समय था जब सैंकड़ों बाघ विभिन्न प्रकार के दूसरे खतरनाक जानवरों के साथ मौजूद थे. अगस्त्य मुनि ने कलरी को वन्यजीवन से लड़ने की एक प्रणाली के रूप में विकसित किया - अगर एक बाघ आ जाता है, तो आपको उससे कैसे निपटना है. 

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आप देखेंगे कि कलरी अभी भी उस प्रारूप को कायम रखे हुए है. यह बस आदमियों के साथ लड़ने के बारे में नहीं है. उन्होंने मार्शल आर्ट कुछ लोगों को, जब वे यात्रा कर रहे हों, बस वन्यजीवन से निपटने के लिए सिखाया, और वह कला अभी भी जीवित है. 

कलरी से कराटे 

जब लोगों ने हिमालय को पार किया, तो उन्होंने जंगली आदमियों का सामना किया जो यात्रियों पर हमला करने की सोचते थे. जो चीज उन्होंने वन्यजीवन से निपटने के लिए सीखी थी, उसे उन्होंने जंगली आदमियों पर इस्तेमाल करना शुरू किया. एक बार जब उन्होंने इसे लोगों पर इस्तेमाल करना शुरू किया, तब मार्शल आर्ट में एक स्पष्ट रूपांतरण आया. भारत से चीन और आगे दक्षिण-पूर्व एशिया में, आप ‘झुके बैठकर करने वाले’ मार्शल आर्ट से ‘खड़े होकर करने वाले’ मार्शल आर्ट को देखेंगे. 

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जब आप आदमी से लड़ते हैं, तो आप मारने के लिए लड़ते हैं. वन्यजीवन के साथ यह वैसा नहीं है. एक बार जब आप स्पष्ट कर देते हैं कि आप एक बहुत मुश्किल किस्म के ‘भोजन’ हैं, तो जानवर चले जाएंगे. इस वजह से, मार्शल आर्ट वन्यजीवन से बचाव के एक प्रकार से एक ऐसी चीज में स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ जो किसी को मार सकता है. कलरी से कराटे में आप इस रूपांतरण को देखेंगे.

बाद में, भारत में भी उन्होंने आदमियों से लड़ना शुरू किया लेकिन उन्होंने इस कला को बहुत ज्यादा रूपांतरित नहीं किया. उसके बजाय, वे हथियारों को इस्तेमाल करने लगे. अगर आप इस पर गौर करते हैं, हो सकता है कि कलरी कराटे जितना प्रभावी न हो, क्योंकि कराटे में वे दो पैरों पर खड़े रहते हैं. कलरी में, आप नीचे किसी चीज को देखने की कोशिश करते होते हैं क्योंकि हमने इसे दूसरे आदमियों से लड़ने के एक तरीके की तरह नहीं देखा, इसे सिर्फ वन्यजीवन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया था. 

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