किराया और EMI के बीच पिस रहे लोग, भोपाल में 7 साल बाद भी नहीं मिली PM आवास की चाबी; नगर निगम का खाली खजाना

PM Awas Yojana Ground Report: देश के हर गरीब को पक्की छत देने के संकल्प के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) भोपाल में विरोधाभासों के बीच खड़ी है.

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भोपाल में 'प्रधानमंत्री आवास' के अधूरे सपने.(Photo:ITG) भोपाल में 'प्रधानमंत्री आवास' के अधूरे सपने.(Photo:ITG)

रवीश पाल सिंह

  • भोपाल,
  • 26 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:58 PM IST

देश के हर गरीब को पक्की छत देने के संकल्प के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना आज भी जमीन पर कई सवाल खड़े कर रही है. साल 2015 में लॉन्च हुई इस महत्वाकांक्षी योजना को गरीबों के जीवन में बदलाव का आधार माना गया था, लेकिन हकीकत यह है कि कई शहरों में यह योजना खुद बदहाली का शिकार हो चुकी है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी हजारों गरीब परिवार आज भी अपने सपनों के घर की चाबी का इंतजार कर रहे हैं.

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प्रधानमंत्री आवास योजना आज भी कई जगहों पर अधर में अगर लटकी हुई है तो उसकी बड़ी वजह है- 'स्थानीय निकाय'. दरअसल, EWS और हाउसिंग फोर ऑल कैटेगरी के इन आवासों के निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी के अलावा नगर निगम को भी 10 फीसदी अंशदान देना था. लेकिन नगर निगम इस राशि की व्यवस्था नहीं कर सका, जिसके चलते योजना के आधे से भी ज्यादा मकान आज भी अधूरे पड़े हैं और गरीबों का इंतजार लंबा होता जा रहा है.

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन हितग्राहियों ने समय पर पंजीयन कराया, दस्तावेज पूरे किए, यहां तक कि कुछ लोगों ने होम लोन तक ले लिया और ईएमआई भर रहे हैं, लेकिन उन्हें आज तक अपने घर की चाबी नहीं मिल सकी. अधूरे मकान गरीबों के सपनों की तरह खामोश खड़े हैं, जिनमें न छत पूरी है और न ही भविष्य की कोई तारीख तय हो सकी है

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aajtak की टीम ने जब भोपाल की झुग्गी बस्तियों का दौरा किया, तो हालात बेहद चिंताजनक नजर आए. कई परिवारों ने बेहतर भविष्य के सपने के साथ फ्लैट के लिए पंजीयन कराया था लेकिन साल-आठ साल बाद भी पंजीयन की रसीदों के अलावा उनके हाथ कुछ नहीं आया. यही नहीं, कई गरीब ऐसे हैं जिन्हें आवंटन पत्र भी मिल गया, लेकिन इसके बावजूद वर्षों बीत जाने के बाद भी गृह प्रवेश का सपना अधूरा है क्योंकि मकानों का काम अभी भी चल ही रहा है.

सांई बोर्ड के पास बसी झुग्गियों में संकरी गलियों से होते हुए आजतक 420 स्वायर फीट की छोटी सी झुग्गी में रहने वाले चोखेलाल से मिलने पहुंचा तो उन्होंने बताया कि लेकिन बारिश और ठंड में यहां रहा नहीं जा सकता लेकिन गरीबी में कहां जाएं?

बारिश में पूरी छत से पानी अंदर आता रहता है. सोचा था कि कुछ पैसे जोड़कर कम से कम पक्के मकान में चले जाएंगे. लेकिन 26 अक्टूबर 2018 को 20 हजार रुपए से पंजीयन कराने के बाद से उन्हें अब तक कुछ जानकारी नहीं मिल सकी है.

भोपाल के सांईबोर्ड के पास बसी झुग्गी में रहने वाले चोखेलाल की पीड़ा इन हालातों की सच्ची तस्वीर बयां करती है. चोखेलाल कहते हैं कि सात साल पहले उन्होंने बीस हजार रुपए जमा कर EWS फ्लैट के लिए पंजीयन करवाया था. लेकिन अब तक पंजीयन से आगे कुछ हासिल नहीं हुआ. इस सात सालों में उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि भोपाल के किस प्रोजेक्ट में उनको फ्लैट मिलेगा.

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चोखेलाल का कहना है कि उन्हें कम से कम कोई तो सरकारी दस्तावेज मिले जिसे वो बैंक में दिखाकर होम लोन ले सकें. चोखेलाल की परेशानी यह भी है कि वो किस पर भरोसा कर होम लोन लें, जब उन्हें यही नहीं बताया जा रहा कि उनका किस प्रोजेक्ट में नाम है और उनका फ्लैट नंबर क्या होगा? बिना किसी मकान नंबर या प्रोजेक्ट की जानकारी मिले वो होम लोन लेने का जोखिम कैसे उठाएं.

लेकिन ऐसा नहीं है कि लोगों को पंजीयन के बाद मकान नहीं मिल रहा. कई लोग ऐसे हैं कि उनका पंजीयन के बाद फ्लैट भी अलॉट हो गया, लेकिन परेशानी यह है कि मकान बनकर तैयार नहीं हुआ और वो लोग पुराने मकान का किराया और नए मकान के लिए लिए गए होम लोन की किश्त के जाल में फंस गए.

सांई बोर्ड की झुग्गियों में रहने वाले वाले नासिर खान भी उन लोगों में से हैं जो दोहरी परेशानी झेल रहे हैं. साल 2018 में इन्होंने इस योजना में पंजीयन करवाया और तीन साल पहले होम लोन लेकर मकान भी आवंटित हो गया लेकिन मकान अब तक बनकर तैयार नहीं हुआ. नासिर समय मिलने पर 12 नंबर पर बन रहे अपने फ्लैट को देखने पहुंच जाते हैं इस उम्मीद में कि जल्दी घर तैयार हो तो वो कच्चे मकान से पक्के फ्लैट में आकर एक साफ-सुथरी जगह पर रहने का सुख ले सकें.

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यह कहानी सिर्फ चोखेलाल या नासिर की नहीं. ऐसे हजारों परिवार हैं. हर परिवार को उम्मीद थी कि सस्ते मकान की योजना उनके जीवन में बदलाव लाएगी, लेकिन आज वही योजना उनके लिए इंतज़ार और निराशा का दूसरा नाम बन चुकी है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब योजनाएं बनती हैं, बजट जारी होता है और लक्ष्य तय किए जाते हैं, तो फिर ज़मीन पर गरीबों को उनका हक क्यों नहीं मिल पाता? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है, या फिर गरीबों के सपनों को प्राथमिकता न दिए जाने की सच्चाई?

हालांकि अपने फ्लैट का इंतजार करती आंखों के बीच कुछ ऐसे भी खुशकिस्मत लोग हैं जिन्हें EWS फ्लैट मिल चुका है और वो अपने परिवार के साथ शिफ्ट हो चुके हैं. इनमें से एक है श्रुति करण जो भोपाल के गोविंदपुरा झुग्गियों में रहा करती थीं, लेकिन अब वो भानपुर के पास बने EWS फ्लैट में पहुंच गई हैं.

करीब 2 साल से श्रुति इस फ्लैट में रह रही है. यहां वो सारी सुविधाएं है जिसके बारे में झुग्गियों में रहने वाला आम आदमी कभी सोच नहीं सकता था. चमचमाती टाइल्स वाले मकान, घर में बालकनी, चारों ओर से आती हवा, उंचे फ्लोर पर जाने के लिए लिफ्ट, साफ पानी और सोसायटी का अपना चौकीदार. इस मकान के लिए श्रुति प्धानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते नहीं थकतीं.

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भोपाल में EWS आवासों की जानकारी

कुल स्वीकृत आवास- 7589

कुल आवास जो बनकर हुए तैयार- 2720

आवंटित आवास- 1938

पूर्ण राशि जमाकर्ता हितग्राहियों की संख्या- 1975

रिक्त आवास- 782

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