सितारों... तुम तो सो जाओ
जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
मेलबर्न एयरपोर्ट पर उस सुबह काफी चहल पहल थी। अगले हफ़्ते वहां एक इंटरनैशनल क्रिकेट मैच होना था शायद इसीलिए। मैं एयरपोर्ट पर कांच की दीवार के उस तरफ खड़े हवाई जहाज़ों को देख रहा था। हाथ मं बोर्डिंग पास था और आंखों में पांच साल बाद घर लौटने की बेक़रारी।
लौटना हमारी ज़िंदगी की कितनी ख़ूबसूरत बात होती है न। जब हम लौटते हैं तो अतीत के किसी हिस्से को जहां छोड़ आए थे, उसे फिर वहीं से शुरु करते हैं। तमाम यादें होती है जो हमें घेर लेती हैं। तमाम आवाज़ें याद आती हैं जो कभी बिछड़ गयी थी और कुछ चेहरे भी जिन्हें हम छोड़ आए थे। मेरी आंखों में भी एक चेहरा झिलमिला रहा था – काविश का चेहरा। काविश हसन। हां, यही नाम था उसका... कद दरमियांना, आंखे कत्थई, कंधे तक लटकते घुंघराले बाल और उसके वो रंग बिरंगे दोपट्टों का शौक। जो कॉलेज के उन दिनों को कितना खुशरंग बना देते थे। उन ख़तों की तरह जो उसकी लिखावट में पिछले पांच सालों से जब भी मुझे सिडनी में मिलते थे तो मेरी शाम कुछ और खूबसूरत हो जाती थी।
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फ्लाइट नंबर MD 13437 मेलबर्न टू डेली एयरपोर्ट... प्लीज़ प्रोसीड फ्राम गेट नंबर 35
अचानक एक आवाज़ गूंजी और मैं अपना सामान उठाकर गेट की तरफ बढ़ गया। ऑस्ट्रेलिया से फिल्म मेकिंग का कोर्स करके लौटते हुए आज मुझे काविश हसन बार-बार याद आ रही थी। प्लेन में विंडो सीट पर बैठे हुए मैं याद कर रहा था काविश से मेरी पहली मुलाकात...
ग्रेजुएशन फर्स्ट इयर में पहली बार काविश को देखा था। उन दिनों इक्ज़ाम्स में हो रही देरी के खिलाफ स्टूडेंट्स प्रोट्स्ट की तैयारी कर रहे थे। मैं क्योंकि आउटडोर शूट्स की वजह से कॉलेज में रेग्यूलर नहीं था इसलिए कम ही लोगों को जानता था। कॉलेज के नोट्स वगैरह मुझे इरम से मिल ही जाते थे। इरम मेरी बचपन की दोस्त थी, हम सेम स्कूल और फिर सेम कॉलेज में थे हालांकि उन दिनों इरम कॉलेज नहीं आ रही थी क्योंकि कुछ रोज़ से वो बीमार थी।
एक दोपहर कॉलेज आना हुआ तो देखा कि माहौल बड़ा बदला-बदला था। स्टूडेंट्स वीसी ऑफिस का घेराव करने की तैयारी में थे, कैफेटेरिया में प्लैनिंग चल रही थी कि मोर्चा कैसे संभाला जाएगा, आर्ट्स फैकल्टी के सामने वाले लॉन में कुछ लड़कियां बैठी पोस्टर-बैनर बना रही थीं।
क्रांति-क्रांति खेलने की तैयारी चल रही है मैंने अपने दोस्तों से कहा तो वो हसने लगे... उन्हीं लड़कियों में से एक लड़की थी। खूबसूरत नैन नक्श... घुंघराले बाल, कत्थई आंखें और काले सूट पर मैजेंटा कलर का दुप्ट्टा जो उसने कंधे से होता हुआ कमर पर बांधा था। पर उसके चेहरा पर हलका गुस्सा खिल रहा था। उसने एक नज़र मेरे साथ खड़े दोस्तों को देखा और फिर भवें टेढ़ी करके, लुक देने के बाद वापस काम में लग गई...
ये कौन है यार, पहले देखा नहीं इसे मैंने अपने दोस्त इशान से पूछा तो वो बोला, हां तू तो बड़ा रैग्यूलर है न कॉलेज में जो सबको जानता होगा बात तो उसकी सही थी। वो जो भी थी उसकी तस्वीर मेरे ज़हन में ठहर गई थी। नीचे रखे कागज़ पर लिखते वक्त, झुकी हुई उसकी पलकें बहुत खूबसूरत लग रही थीं। उसे देखते-देखते मैं वहां से आगे बढ़ गया लेकिन मेरा दिल वहीं ठहर गया था।
कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन
डाउन डाउन
तानाशाही नहीं चलेगी... नहीं चलेगी नहीं चलेगी
इन्हीं नारों के साथ माहौल में तनाव बढ़ता जा रहा था। पुलिस भी आ गई थी और वो स्टूडेंट्स को पीछे ढकेलने लगी थी। इस आपाधापी में कुछ लोगों को चोट भी आ रही थी, सबके चेहरों पर घबराहट और हड़बड़ाहट थी लेकिन मेरे चेहरे पर पुरसुकून मुस्कुराहट थी। उस तनाव भरे माहौल में मैं उस हिजाबी लड़की को देखकर मुस्कुरा रहा था... पहली नज़र का इश्क़ गया था मुझे उससे... मैं जब इश्क़ के ख्वाबों की गलियों में बेपरवाह घूम रहा था तभी एक लट्ठ मेरे पीठ पर पड़ा तो उन गलियों से निकलकर सीधे हकीकत की ज़मीन पर आ गिरा। उसके बाद क्या हुआ मुझे ठीक-ठीक कुछ याद नहीं। हां आंख खुली तो अस्पताल की पीले दीवारें और हरे पर्दे मेरे सामने थे, जिस्म में ज़बरदस्त दर्द था और गर्दन में मोच इतनी की पूरी घुमाना मुश्किल था। मेरे साथ वाले बिस्तर पर कुछ और लोग भी थे जो उस धक्का-मुक्की में घायल हो गए थे। मैंने देखा, मेरे अगल बगल इशान और कुछ दूसरे दोस्त थे और हां इरम भी थी। कुछ घंटो बाद जब मैं नार्मल हुआ तो मैंने पूछा
इरम... यार वो लड़की कौन है, तुम जानती हो उसे? मेरे इस सवाल से इरम के चेहरे पर गुस्सा आ गया
तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या, वो गुस्से में बोली वहां सब लोग भाग रहे थे तो तुम्हें खड़ा रहने की क्या ज़रूरत थी...
- अरे मैं जो पूछ रहा हूं वो बताओ, वो है कौन जो घुंघराले बाल...
- होगी कोई, मुझे नहीं पता... अस्पताल से भागती हुई आ रही हूं, डॉक्टर से अपॉइंटमेंट था मेरा... पापा वेट कर रहे थे उसने कहा और मैं जिस तकिया पर टेक लगाकर बैठा था उसे ठीक करने के बाद, दवाएं उठाकर इशान को दिखाकर बोली, ये वाली टेबलेट अभी देना है और ये वाली दिन में दो बार... और ये अगर रात में दर्द बढ़े तो... जा रही हूं कहते हुए हाथ में पकड़े कुछ सफेद फूल... मेरे बगल वाले खाली गुलदस्ते में लगाए और जाने लगी। फिर रुक कर बोली, ख्याल रखना।
मैं उसे गुस्से भरे कदमों से जाते हुए देख ही रहा था कि इशान ने बताया कि उस घुंघराले बाल वाली लड़की का नाम काविश हसन है। रहने वाली दुबई की है लेकिन पढ़ाई के लिए हिंदुस्तान आई है।
तुझे किसने बताया मैंने उससे पूछा तो उसने कहा इरम ने
इरम ने मैं हैरान हो गया..लेकिन उसने तो मुझे कहा था कि उसे नहीं पता ... मैंने सोचा और फिर मुझे आहिस्ता-आहिस्ता समझ में आया कि वो नाराज़ क्यों थी। मेरी नज़र गुलदस्ते में लगे उन फूलों पर गयी। इरम और उन सफेद फूलों का गहरा रिश्ता था। वो सफेद फूल उसके घर के पीछे वाले एक बाग में लगे हुए थे। उसकी ये आदत बहुत अजीब थी कि वो मुझे लगभग हर रोज़ वो सफेद फूल देती थी। पता नहीं कैसे पर वो भीनी-भीनी खुश्बू वाले सफेद फूल हमेशा उसके बैग में रहते थे। शायद ये उसकी मेरे लिए मोहब्बत को ज़ाहिर करने का एक तरीका था।
इरम को मैं बचपन से जानता था, हार्ट पेशेंट थी वो, हर छठे महीने डायलसिस होता था, थी उसे कोई बीमारी। हम दोनों अच्छे दोस्त थे... वो देखने में भी बुरी नहीं थी, औसत थी, नैन-नक्श अच्छे थे, नेक थी, पढाई-लिखाई में हमेशा अव्वल, अंताक्षरी में उसे कोई हरा नहीं सकता था, लेकिन पिछले कुछ महीनों में मुझे ऐसा यकीन होने लगा था कि वो... वो मुझे... चाहने लगी है। शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा।
मैंने कई बार उसकी आंखों में अपने लिए मुहब्बत महसूस की थी लेकिन मैंने उसे कभी इस तरह नहीं देखा था। मुझे उसके लिए हमदर्दी थी और वो मेरी हमदर्दी में अपने लिए मुहब्बत ढूंढ रही थी और इसीलिए उसे उस रोज़ मेरा काविश के बारे में यूं पता लगाना अच्छा नहीं लगा।
हैलो... क्रांति सच में मंहगी पड़ गई नई? तभी किसी की आवाज़ गूंजी और अस्पताल का वो कमरा इमपोर्टेड परफ्यूम की महक से भर गया। मैंने देखा तो काविश आई थी मुझे देखने के लिए। मैंने खुद को संभालकर, नार्मल दिखते हुए डायलॉग मारा, मंहगी उनको लगती होगी जिनके उसूल सस्ते होते हैं मैडम, लड़ाई इंसाफ की हो या इश्क़ की, हम जान भी देने को तैयार रहते हैं...वो कुछ देर बैठी और फिर बाए कहकर जाने लगी। मैं उसे वहां तक देखता रहा जहां तक मेरी मोच वाली गर्दन मुड़ सकती थी।
योर एटैंशन प्लीज़... दिस इज़ योर कैप्टन स्पीकिंग ...फ्लाइट इज़ रेडी टू टेक ऑफ... प्लीज़ कीप योर सीट इन इनवर्ड डाइरेक्शन...
अनाउंसमेंट हो चुका था, लेकिन मेरे चेहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट उभर रही थी। ज़हन में वो वक्त घूम रहा था जब मैं और काविश कॉलेज की टैगोर लाइब्रेरी में, जहां तेज़ आवाज़ में बात करना सख्त मना था, एक दूसरे के आमने-सामने बैठकर टेढी-मेढ़ी शक्लें बनाकर हसाने की कोशिश करते थे।
प्लीज़ मेनटेन दा साइलेंस लाइब्रेरी में इनविजलेटर दुबे सर की सख्त आवाज़ गूंजती और मैं जल्दी से अपना मुंह किताब में छुपा लेता... फिर कुछ देर बाद मैं किताब से झांकते हुए शक्लें बनाती तो मरे लिए हसी रोकना मुश्किल हो जाता। सच कहूं तो काविश ने कभी मुझसे दोस्ती से आगे की कोई बात नहीं की थी पर मैंने भी जैसे कसम खा ली थी, तय कर रखा था कि एक ना एक दिन उसका दिल जीत ही लूंगा, उसके दिल में खिली दोस्ती की कलियों को मुहब्बत के फूल में बदल दूंगा। एक रोज़ मैं और काविश कुछ बातें कर रहे थे... हम शायद इस टॉपिक पर बात कर रहे थे कि अब कोई किसी को ख़त नहीं लिखता... पहले खत लिखना कितना अच्छा लगता था... वो भी हां में हां मिला रही थी... कि तभी वहां इरम आ गयी
तुमने शूट-वूट पर जाना बिल्कुल छोड़ दिया है क्या? और कॉलेज आते हो तो कम से कम क्लॉस तो अटेंड किया करो... इरम गुस्से में कह रही थी, चेहरे पर नाराज़गी थी।
काविश हैरानी से इरम को देख रही थी, मैं उसे एक मिनट आया का इशारा करते हुए इरम के साथ कुछ कदम आगे बढ़ा। इरम किताबें हाथ में लिए हुए, आंखों पर गोल चश्मा चढ़ाए, कत्थई सलवार सूट में खड़ी थी। मैंने गुस्से में कहा– Why Can’t you just do your own stuff, अपने काम से काम क्यों नहीं रखती... मैं असाइंटमेंट पर जाऊं या ना जाऊं.. क्लासेज़ करूं या न करूं ... तुम हो कौन... इरम की आंखें आंसुओं से चमकने लगीं। आइंदा मेरे मामले में टांग मत अड़ाना, And by the way मुझे पता है तुम नाराज़ क्यों हो... लेकिन तुम जो सोच रही हो.. वो कभी नहीं होगा... नेवर एवर उसका चेहरा सुर्ख हो गया, होठों पर अजीब सी कपकपी देखी थी मैंनें और आंखे नमी से चमकने लगीं थी... जिसे अनदेखा करते हुए मैं आगे बढ़ गया।
हालांकि कि बाद में मुझे इसका अफसोस भी हुआ, वैसे भी वो बीमार थी, मुझे हमदर्दी थी, मुझे चोट लगी थी तो वो अपनी डायलसिस छोड़कर अस्पताल आ गई थी, अच्छा नहीं किया था मैंने लेकिन जो होना था हो चुका था। सच बताऊं तो उस वक्त भी मुझे इरम की उदासी से ज़्यादा ये बात परेशान कर रही थी कि काविश दोस्ती के रिश्ते से एक इंच भी आगे बढ़ने को तैयार नहीं थी। मेरी तमाम कोशिशें भी उसके दिल में मेरे लिए मुहब्बत नहीं जगा पा रही थी।
जब मैं उसे बताता कि मैं उसे चाहता हूं तो वो कहती, रिश्ता बहुत ज़िम्मेदारी का बंधन होता है और ये सब मुझसे होता नहीं, और वैसे भी मैं तुम्हारे बारे में कुछ ऐसा महसूस नहीं करती...कम से कम अभी तो बिल्कुल नहीं, आगे का मुझे पता नहीं। इस 'पता नहीं' से मुझे बहुत उम्मीद जगी थी। मुझे भरोसा था कि कभी न कभी ऐसा ज़रूर होगा।
उदासी जब ज़िंदगी में दस्तक देती है तो कई दरवाज़ों खिड़कियों से एक साथ अंदर चली आती है। खुशी हमेशा अकेली आती है लेकिन गम अकेला नहीं होता, एक गम के पीछे सैकड़ों गम छुपे होते हैं। ऐसा ही मेरे साथ हुआ क्योंकि कुछ ही हफ्तों के बाद अब्बा ने मुझे बताया कि एक खुशखबरी है।
खुशखबरी क्या है, आप मेरी आंखें मीच कर बाहर तक तो नहीं ले जाएंगे न...कि बाहर एक नई कार खड़ी होगी? मैंने हंसते हुए कहा तो वो बोले, ये तुम्हारी कोई फिल्म नहीं चल रही है... चुपचाप इधर आओ। मैं गया तो उन्होंने एक कागज़ मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने कागज़ खोला तो वो सिडनी की फिल्म मेकिंग यूनिवर्सिटी का फॉर्म था और साथ में एक चेक...
ये क्या है... मैंने फिक्र से पूछा वो मुस्कुराते हुए बोले तुमने सिडनी जाने के लिए मुझसे एख बार कहा था न, तब मैंने मना कर दिया था कि पैसे की तंगी है। मैंने लोन अप्लाई कर दिया। देखो अप्रूव भी हो गया। अब तुम जा सकते हो... खूब नाम रौशन करके आना
मेरे हाथ पैर कांप रहे थे। क्योंकि सिडनी जा कर फिल्म मेकिंग का सपना तो मेरा तबका था जब मैं काविश से नहीं मिला था। अब तो मैं यहीं रहना चाहता था... उसके आसापास... ताकि उसके ज़हन में मेरे लिए कुछ मोहब्बत जग सके। क्या हुआ खुश नहीं लग रहे तुम? अब्बा ने कहा तो मैंने नकली हंसते हुए कहा... नहीं ऐसी बात नहीं है... वो...
- ओह... घर छोड़ कर, हम सबसे दूर जाना पड़ेगा... यही सोच रहे हो... अब्बा ने कहा कोई बात नहीं बेटा... वतन को छोड़ना ही पड़ता है कुछ बनने के लिए... और फिर चार पांच साल की बात है... हैना..
(To be continued)
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जमशेद क़मर सिद्दीक़ी