कहानी | राजू शर्मा की लव स्टोरी | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

राजू शर्मा अब दो बच्चों के पिता और एक बीवी के पति हैं। बाहर निकला हुआ पेट है, डबल चिन है। ज़िंदगी की दो दुनी चार में उलझे रहते हैं पर क्या कोई कह सकता है कि ये वही राजू हैं जो कॉलेज के ज़माने में 'राज' हुआ करते थे। स्पोर्ट्स बाइक पर जिधर से निकलते थे लड़कियां आहें भरती थीं... पर फिर उनकी शादी हो गयी। फरवरी की गुलाबी ठंड में वैलेटाइन जब दस्तक देने लगता था तो राजू को याद आती थी अलीशा - सुनिए स्टोरीबॉक्स में नई कहानी 'राजू शर्मा की लव स्टोरी'

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Jamshed Jamshed

जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

  • नोएडा,
  • 12 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

कहानी - राजू शर्मा की लव स्टोरी
जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

 

'राजू शर्मा की लव स्टोरी' कहानी को शुरु करने से पहले... मैं एक डिस्क्लेमर देना चाहता हूं... कि ये कहानी शादी-शुदा लोगों के लिए है। क्योंकि वही लोग हैं.. जो इस कहानी में छुपा हुआ दर्द, पीड़ा, अवसाद, तकलीफ को समझ सकते हैं। जिन लोगों की अभी शादी नहीं हुई है। उनके लिए ये कहानी कुछ भी मायने नहीं रखती है... उनके लिए तो मुहब्बत अभी करेंट चीज़ है... लेकिन वो लोग जिनके लिए इश्क का पन्ना पलट दिया गया है। जिनकी मोहब्बत की मशाले बुझा दी गयी हैं। जिनके हाथों से गुलाब का फूल छीन कर बिग बाज़ार का झोला पकड़ा दिया गया है... जिनके इतवार को पिकनिक की जगह दरवाज़ों के कब्ज़े में तेल डालने के लिए मुकर्रर कर दिया गया है। जिनकी छुट्टियां टीवी देखने बजाए... बीवी को स्कूटर के पीछे बैठाए ससुराल की तरफ दो किलो सेब लिए चले जाने के नाम लिख दी गयी हैं। - ये कहानी उन मज़लूमों, दुखियारों और बेचारों के लिए है। तो मुलाएज़ा फर्माए - 

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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) देखिए भाइसाब .... कहने वाले कहते हैं कि इश्क़ करने का कोई दिन नहीं होता... सब दिन इश्क़ के होते हैं... पर ये बात सही नहीं है... मैं तो कहता हूं कि इश्क का कोई दिन हो य न हो... महीना ज़रूर होता है ... और वो है फरवरी का महीना.... फरवरी के शुरुआती दिनों में जब ठंड गुलाबी हो जाती है... जब कानों से कनटोप उतर जाते हैं, जब मुंह से गर्म भाप निकलना कुछ हल्की पड़ जाती है.... तब... तब जब आप धुंधलाती हुई शाम में हल्की हल्की सर्दी में घर से बाहर निकलते हैं... और एक गहरी सांस लेते हैं... तो याद आता है कोई नाम.... कोई भूला हुआ नाम... जो कभी हमेशा ज़बान पर रहता था। कोई चेहरा जिसे देखकर दिन बन जाता था... कोई आवाज़ जो जब कानों में पड़ती थी तो लगता था दुनिया भर का शहद कानों में घुल गया हो। वो एक हंसी जो अब भी कभी कबार याद आती है... आती है कि नहीं? अरे उसी लड़की की बात हो रही है.. वही ... भूल गए क्या... हां समझ गए... वही जो मुस्कुराती थी तो किनारे से उसके दांतों पर चढ़ा हुआ दांत... नज़र आता था... वो जो किसी बढ़िया जोक पर हसते हसते आपके कंधे पर हाथ मार देती थी... और वो जो एक ही बोतल से मुंह लगा के पानी पीते हुए बोतल का मुंह कभी पोंछती नहीं थी। - वो याद तो आती है... मगर अब कहां हैं.. क्या कर रही है... किसके साथ शादी हुई... अब कहां कुछ याद है। कहां पता होता है... जैसे अपने शर्मा जी को ही ले लीजिए... अपने शर्मा जी... हमारे पड़ोसी भी हैं और जवानी के दिनों से साथ भी हैं, दोस्त हैं हमारे... हमारे पड़ोस में नुक्कड़ वाले मकान में रहते हैं... आज आप इन्हें देख लें... तो आप सोच नहीं सकते कि ये आदमी किसी ज़माने में जैंगो हुआ करता था... अरे ऐसा ज़ालिम आशिक था कि पूछिए मत... कॉलेज आते थे तो काली लेदर जैकेट पर इतना लोहा लगा रहता था जितना नक्खास की लोहा मार्केट में नहीं होगा... जींस इतनी चुस्त की बैठते थे तो पूरा नहीं बैठ पाते थे... चश्मा चमकीला.... और इतना बड़ा कि लगा लें तो बैटमैन का मास्क लगता था... मगर लड़कियां आशिक थी उनकी... जहां आए कॉलेज में तो लड़कियों की सांसे थम जाती थीं। बाइक पर आगे दो हेड लाइट लगाते थे। ज़माना था उनका भी... कभी इनको बैठाएं हैं पीछे... कभी उनको बैठाए हैं... कभी गंजिंग हो रही है, कभी सहारा गंज के किसी लाउंज में बैठे हैं... कभी चले जा रहे हैं कुकरैल... कभी इमामबाड़ी की झाड़ियों में बैठे हैं... राज ने आज ये किया... राज ने आज वो किया... राज आज इसके साथ थे ... राज आज उसके साथ थे... पूरे कॉलेज में यही खबरें चलती थीं। वो शेर है न कि
 

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लड़कियां मेरे नाम पर लड़ पड़ती थीं
तुम ने देखा नहीं कॉलेज का ज़माना मेरा


बस समझ लीजिए कि वही हाल था। पर कौन जानता था कि शादी के बाद ये राज शर्मा ... बेचारा राजू शर्मा बन जाएगा। सुबह आप बालकनी से झांकिये तो हाफ पैंट पहनकर एक बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रहा है। वापसी में हाथ में अंडे और ब्रेड है.. तोंद इतना निकला हुआ कि कमीज़ के बटन बंद नहीं होते... रबड़ की चप्पलें... मुंह पर तीन दिन की दाढ़ी और पेट में चार दिन का कब्ज़....

आदमी भी क्या से क्या हो जाता है... नहीं। लेकिन आदमी कुछ भी हो जाए... फरवरी उसे वो सब बीता टाइम याद दिलाती है... कभी कभी यूं ही... बैठे बैठे... और कभी कभी बहाने से.... तो हुआ यूं कि दो रोज़ पहले राजू शर्मा अफने घर पर बैठे टीवी देख रहे थे.... समाने बैठी थी उनकी मैडम... जो मिक्स अचार के लिए बड़ा सा चाकू लिए गाजर-मूली काट रही थीं। टीवी पर वो आ रहा था... वो जो होता है न जिसमें जल्दी जल्दी बोलते हुए सामान बेचते हैं... ये देखिए...ये बर्तन ये आपको और कहां नहीं मिलेगा... ऐसी डील आपको और कहां मिलेगी... भाईसाहब... टीवी शॉपिंग मोल-तोल, आप को दे रहा है वैलेंटाइन ऑफ़र में बाथरूम सेट। जिसमें एक-दो नहीं, तीन नहीं... चार भी नहीं... पूरे पांच आइटम हैं। दो बाल्टी, एक मग्गा, एक लोटा और एक साबुनदानी… ये देखिए... ये ये पटक के देखिए... ये देखिए.. कुछ नहीं हुआ... भाई साहब लोहा लाट है.. ये ... नीचे दिए नंबरों पर कॉल कीजिए... जल्दी... हमारी टीम बता रही है कि कॉल्स ज़्यादा होने की वजह से डील के आखिरी पंद्रह मिनट बचे हैं... जल्दी कीजिए...

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 कुछ देर राजू शर्मा देखते रहे फिर बोले, ठीक तो लग रहा है... कहो तो कर दें आर्डर ... उन्होंने लोहे की अलमारी के हैंडल से एक पैर हटाकर अबकी दूसरा टिका लिया। पत्नी बोलीं... “हम्म, लग तो ठीक रहा है। कर दो” बनियान-पायजामा पहने राजू शर्मा उठे.. .एक अंगड़ाई ली और फिर फोन उठाकर वही नंबर डायल करने लगे जो टीवी पर दिख रहा था। एक दो बीप बजीं और फिर फोन लग गया।

 

हैलो...” उधर से खूबसूरत-नाज़ुक आवाज़ आई “टीवी शपिंग मोल-तोल में आपका स्वागत है। मैं... अलीशा आपकी क्या मदद कर सकती हूं?” आवाज़ सुनकर राजू शर्मा चौंक कर उठ बैठे।

अलीशा? ये आवाज़... ये आवाज़ तो वो करोंड़ों आवाज़ों में पहचान सकते थे। ये वही यूनिवर्सिटी के दिनों की उनकी प्रेमिका थी, जो प्यार से उन्हें राज कहती थी... ये और बात है कि दोनों का इश्क पूरा नहीं हो पाया।

मैं.. मैं बोल रहा हूं। राज..आ राजू...” उन्होंने हड़बड़ाते हुए खुशी से कहा “अरे राजू शर्मा,  विराम नगर से...” लेकिन तभी चाकू लिए बीवी की तरफ देखा तो गंभीर हो गए, “आ... वो... वो बाल्टी चाहिए थी...

दूसरी तरफ से हैरान आवाज़ गूंजी

- “राजू.... राज तुम”

- “हां मैं...” फिर पत्नी देखकर बोले, “मैं...मैं.. मैंने इसलिए फोन किया कि सामना ऑर्डर करना है”

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दो पुराने प्रेमी अरसे बाद एक-दूसरे से बात कर रहे थे लेकिन अलीशा, क़ॉल रिकॉर्डिंग की वजह से खुलकर नहीं बोल नहीं सकती थीं, और राजू शर्मा पत्नी जी की वजह से। लिहाज़ा दोनों ने इशारे-इशारे में अपनी इमोशनल बातें की।

- “मेरा एक्सपीरियेंस आपके... आई मीन आपकी कंपनी के साथ.. अच्छा नहीं रहा। हैंडल टूट गया था मग्गे का” राजू ने कहा तो वो तंज़ करते हुए बोली,

- “सर इसका मुझे अफ़सोस है लेकिन... दुनिया में कुछ चीज़ें गांरटी के साथ नहीं आतीं”   राजू भरे गले से बोले, “अच्छा.... साबुनदानी कैसी है?”

वो ख़ामोश रही, फिर बोली, “कैसी होगी... साबुन के बिना। साबुन तो कहीं और घिस-घिस के पतला हो रहा है। आ.. आई मीन टू से... आप साबुन इस पर टिकाएंगे तो गलेगा नहीं, बहुत अच्छी क्वालिटी की है”

दोनों तरफ़ गहरी उदासी सांस ले रही थी।

- “लोटे की याद आती है?” अबकी अलीशा ने पूछा

- “जी?”

- “सर, मेरा मतलब पिछले ऑर्डर वाले लोटे का एक्सपीरियेंस याद है आपको? ये वाला उससे अच्छा है, इसमें वैलेंटाइन शेप के फूल भी बनें हैं”

- “फ़ूल का क्या है अलीशा जी, मिट ही जातें हैं। बस लोटे की डंडी लंबी होनी चाहिए”

- “लंबी है सर, लेकिन गलती हमेशा फूलों की नही होती। अक्सर हैंडल पकड़ने वाले हाथ की भी होती है”

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- “मिलेंगे कब?” राजू ने पूछा, तो वो भरे गले से बोलीं

- “बहुत जल्द। अगर आप चाहें तो... आ... मेरा मतलब, एक्सप्रेस डिलीवरी के ज़रिए आपको कल ही बाल्टी-मग्गे मिल सकते हैं। आप बस, अपना... अपना मोबाइल नंबर बता दीजिए...”

- “हां..हां... ज़रूर। राजू बोले लिखिए... 9..8..3..4” कहते-कहते उनकी आवाज़ भारी हुई जा रही थी। एक पल को लगा सब मिल गया। तभी नज़र पत्नी जी की तरफ़ गयी तो मन से छन्न की आवाज़ आई। जैसे कई सपनें एक साथ टूटे हों। कांप गए बेचारे। पत्नी तिरछी भवें किए उन्हें सुन रही थी और चाकू की नोंक ठीक उनकी तरफ किए थीं।

- “नंबर आगे बताइये सर” अलीशा की आवाज़ फिर गूंजी...

राजू ने पत्नी जी को देखा और कहा “आ... सुनिए... वो.. मेरे ख्याल से एक्सप्रेस डीलीवरी रहने देते हैं। नार्मल ही करवा दीजिए। और नंबर मेरी पत्नी जी का ले लीजिए” कहकर उन्होंने मोबाइल पत्नी की तरफ़ बढाया और सुस्त कदमों से दूसरे कमरे में चले गए।

 

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