कहानी | उम्र क़ैद या फांसी ? |स्टोरीबॉक्स विद जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

एक सातवीं पास शख्स से एक अमीर कारोबारी ने लगाई अजीब शर्त जिसमें उसे 15 साल तक एक क़ैद खाने में रहना था जिसके एवज में वो उसे दस करोड़ देने वाला था। क्यों लगाई उसने ऐसी शर्त और कौन जीता इस शर्त को - सुनिए स्टोरीबॉक्स में कहानी 'फांसी या उम्रकैद' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से

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जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

  • नोएडा,
  • 17 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 5:46 PM IST

कहानी - फांसी या उम्र कैद
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
ओरिजिनल स्टोरी आइडिया - अंटोन चिखोव (रूसी राइटर)

 

उस रात गज़ब की सर्दी थी... हर तरफ कोहरा छाया हुआ था और शहर के सड़क पर दोनों तरफ लगे पेड़ों की पत्तियां.. ओस से भीगी हुई थीं। चौड़ी सड़क के किनारे बने एक दो मंज़िला मकान की दूसरी मंज़िल में मैं, इधर से उधर परेशान टहल रहा था। मेरे चेहरे पर फिक्र की लकीरें थी और मैं बार-बार अपने रेशमी नाइट गाउन को कसता था... और बार-बार खुद को कोसता जाता था कि काश मैंने 15 साल पहले वो शर्त नहीं लगाई होती... काश मुझे किसी ने रोक लिया होता... तो आज मैं इतनी बड़ी मुसीबत में नहीं फंसता... पर अब क्या हो सकता था... मैं किनारे रखे एक गद्देदार बादामी सोफे पर बैठ गया और सिगरेट सुलगा ली... मेरी सिगरेट से उठता हुआ धुंआ कमरे में फैलने लगा... और मैं याद करने लगा 15 साल पहले की वो पार्टी वाली रात जब इसी कमरे में मैने वो मनहूस शर्त लगाई थी (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें। या इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए नीचे दिए लिंक क्लिक करें)

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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) वो रात भी आज जैसी ही सर्द दी। पार्टी में आने वाले ज़्यादातर लोगों ने लांग कोट पहन रखा था, जिसे वो अंदर आते वक्त एक सफेद पगड़ी वाले नौकर को दे देते... वो अदब से झुककर सलाम करता और कोट लेकर चला जाता। उस रात मैंने अपने घर पर दावत रखी थी... शेयर मार्केट में मेरी ट्रेडिंग कपंनी ने कई गुना मुनाफा कमाया था जिसकी खुशी में मैंने ये दावत रखी थी। शहर के कई नामचीन लोग पार्टी में आए थे.. इनमें कुछ बड़े कारोबारी, कुछ पॉलिटिशियंस, कुछ वकील और कुछ बड़े टीवी पत्रकार भी थे। वो कमरा चमकीली आपाइश से जगमगा रहा था, खाने पाने की दर्जनों डिश मेज़ पर करीने से सजी थीं, हर तरफ सजे-धजे वेटर ड्रिंक्स सर्व कर रहे थे... हल्का हल्का म्यूज़िक फिज़ा में गूंज रहा था। मैं ग्रे कलर का थ्री-पीस पहने महमानों से बात कर रहा था...
ओह्हो.. कैसे हैं खां साहब... अरे ईद का चांद तो आप हो गए... नमस्ते नमस्ते श्रीवास्तव साहब... अरे ग्लास तो खाली है आपका... नहीं ऐसे कैसे...

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मैं देख रहा था कि उस बड़े से हॉल में थोड़ी थोड़ी दूर पर चार-चार पांच पांच के ग्रुप में खड़े लोग बातें कर रहे थे। मेरी नज़र सबके आखिर में जहां ड्रिक्स का काउंटर था.. उसी के पास ऐसे ही एक ग्रुप के पास गयी... मैंने देखा कि वहां पर कुछ वकील और पत्रकार बैठे किसी मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे।

"देखिए बहुत सारे देश अब फांसी की सज़ा को बंद कर दिया गया है क्योंकि.. क्योंकि ये ग़ैर इंसानी बात है... आप कैसे किसी को जान से मार सकते हैं" एक बुज़ुर्ग वकील बहुत जोश में बोल रहे थे.. उन्हें शायद सांस की कोई बीमारी थी, इसलिए उनके नाम पर एक पाइप जैसा कुछ लगा था... जो पीछे जाकर एक ऑक्सीज़ेन सिलेंडर से जु़ड़ा हुआ था... एक नौजवान लड़का जिसने चेक वाली कमीज़ पहने थी वो उनका सिलेंडर एक ट्रॉली पर रखे उनके पीछे खड़ा था। उसका काम यही था कि वकील साहब जहां जाते थे, वो सिलेंडर लिये लिये उनके साथ चलता था। वो पीछे चुपचाप खड़ा था। वकील साहब ने अपनी नाक पर लगा पाइप ठीक करते हुए आगे कहा, फांसी देना बिल्कुल गलत है... वकील साहब की बात सुनकर, एक नामी अखबार का पत्रकार बोला, "बिल्कुल गलत नहीं है. जान से मारना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि और लोगों की सुरक्षा भी स्टेट की ज़िम्मेदारी है... और फिर उम्र कैद की सज़ा भी तो अमानवीय ही है... क्या आप को पता है कि एक आदमी जिसको पता हो कि वो पूरी ज़िंदगी जेल में बिताने वाला है... वो हर दिन मरता.. फांसी वाला तो एक बार मरता है वो उसके किए की सज़ा है, सज़ा खत्म उसका दर्द भी खत्म... लेकिन आप जो कह रहे हैं उम्र कैद वो ज़्यादा अमानवीय है... क्योंकि उसमें आप एक शख्स को उसके गुनाह के लिए रोज़ मारते हैं...

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बहस मज़ेदार होती जा रही थी... मैं भी वहीं पर रुक गया और मुस्कुराते हुए उनकी बात सुनने लगा। सीनियर वकील लाजवाब से हो गए .. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी... बोले, देखिए आप जो कह रहे हैं कि उम्र कैद में रोज़ मरने वाली बात मैं इससे इत्तिफाक रखता हूं...लेकिन ज़िंदा रहना तो हर हाल में मौत से बेहतर है...  

- गलत कह रहे हैं आप... अचानक से मेरी आवाज़ हॉल में गूंज गयी... सबकी गर्दन मेरी तरफ घूम गयीं।

- आइये... आइये.. बैठिए.... मेरे लिए लोगों ने जगह बनाई... मैं वहां बैठ गया। बहस मज़ेदार थी तो मैं भी शामिल होना चाहता था.. इसलिए मैंने उस बुज़ुर्ग वकील से कहाफांसी और उम्र कैद दोनों में कोई फर्क नहीं है... अगर आप ये कहते हैं कि फांसी की सज़ा देना अमानवीय है.. तो उम्र कैद भी अमानवीय है... आपको अंदाज़ा नहीं है कि कैद होने पर हर दिन हर पल कैसे मौत की तरह कटता है... इंसान पागल हो जाता है.. कभी कभी वो जेल में अपने आप को खत्म कर लेता है... मौत तो फिर भी आसान बात है.. एक मिनट में सब खत्म...

- ऐसा नहीं है सर.... एक आवाज़ पीछे से आई... मैंने चौंक कर देखा...तो आवाज़ वकील साहब के पीछे खड़े चेक कमीज़ वाले उस लड़के की थी जो उनका सिलेंडर लेकर चलता था। मुझे बुरा लगा कि यहां पढे लिखे लोगों की बात चल रही है और वो दो कौड़ी का अनपढ़ लड़का मेरी बात को कह रहा है कि ऐसा नहीं है। पर मैंने वकील साहब का लिहाज़ किया कि शायद उनका मुंह लगा नौकर होगा... वो लड़का आगे बोला, आप ने कहा कि एक पल में सब खत्म... लेकिन वो एक पल... हज़ारों सुबह की मौतों से ज़्यादा खतरनाक होता है... देखिए वैसे मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं... सातवीं तक ही स्कूल गया... माफी चाहता हूं आप लोगों के बीच में बोलने के लिए... लेकिन मुझे लगता है कि इस दुनिया में इंसान के जितने भी डर हैं... जिनसे वो खौफ खाता है... वो सब आखिर में मौत पर जाकर खत्म होते हैं.. इंसान दुनिया बनने से अब तक मौत से ज़्यादा डरावनी चीज़ अब तक नहीं खोज पाया है। 

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वकील साहब पीछे घूमे और अपने नौकर की तरफ मुस्कुराकर देखा कि बड़ी अच्छी बात कही तुमने। मेरे तन बदन में आग लग गयी। एक सातवीं पास मेरी बात को काट रहा है मैं जो शेयर ट्रेडिंग का इतना बड़ा कारोबारी हूं। मैं इतना पढ़ा-लिखा हूं कि इकॉनोमिक्स की दो-दो डिग्रियां हैं मेरे पास, तीन किताबें मैं लिख चुका हूं और एक पब्लिशर के पास है। मुझे दुनिया का इतना अंदाज़ा है और वो... वो जाहिल आदमी मेरी बात काट रहा है। मैंने उसे नीचा दिखाने के लिए कहा, सातवीं पास हो न... इसीलिए ऐसी बातें कर रहे हो... पढ़ लिख लोगे तो किसी का सिलेंडर नहीं खींचना पड़ेगा... और तब समझ पाओगे कि उम्र कैद आदमी को पगला देती है... हर सुबह उसे लगता है कि वो किसी का खून कर दे क्योंकि उसकी ज़िंदगी का अब कोई मतलब नहीं है...

वो चेक कमीज़ वाला लड़का सिलेंडर खिसकाते हुए बोला, तो ये बात तो उस इंसान पर भी लागू होती है जिसे फांसी की सज़ा सुना दी गयी हो... कितने लोग ऐसे होते हैं जिन्हें फांसी की सज़ा दे दी जाती है पर तारीख नहीं तय हो पाती ... वो भी तो रोज़ मरते हैं। इस बार उस सातवीं पास की बात सुनकर मेरे तन बदन में आग लग गयी। पर एक बात है, कि उस लड़के में कुछ तो बात थी। वो तर्क ऐसे देता था कि बात करने में मज़ा आता था। मैं उससे बातों में उलझने लगा। सबके सामने बातों में खुद को हारता देखकर मैं जीतने की कोशिश में और ज़्यादा बोलने लगा। शराब का ग्लास हाथ में लिए मैं जोश में उसके हर सवाल का जवाब देता जा रहा था... और वो मेरे हर जवाब पर एक नया सवाल दाग देता था। कुछ देर हमारी बातचीत चलती रही। सब लोग हमें देखने लगे कि ये क्या हो रहा है। बातचीत तेज़ होती जा रही थी। कुछ लोगों ने हमें इशारा भी किया कि अब इस बहस को खत्म करते हैं, पार्टी इंजॉए करते हैं... पर मैंने जोश में आ गया था.. मैं उस अनपढ़ जाहिल से हारना नहीं चाहता था, मैंने हाथ छुड़ाते हुए कहा, नहीं... इसका फैसला अब आज ही होगा... मैने नशे के जोश में उस लड़के की तरफ देखकर कहा... वो भी कम नहीं था बोला - बाकी सब मैं नहीं जानता पर अगर मुझे अपने लिए चुनना हो तो मैं उम्र कैद चुनूंगा... मैंने कहा,

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- तुम छ महीनों में जेल की दीवारों पर सर पटकने लगोगे और पागल हो जाओगे

- ऐसा नहीं है,

- नहीं है, तो रह कर दिखाओ... रह पाए तो... मैं तुम्हें ईनाम दूंगा

- क्या मज़ाक कर रहे हैं सर

- नहीं मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं... मैं सीरियस हूं...

- एक्सक्यूज़ मी... सर आप आइये प्लीज़... पार्टी में महमान आपको देख रहे हैं। एक नौकर ने मेरे हाथ पकड़ते हुए कहा, मैंने उसे कहा- हाथ छोड़ो मेरा, मैं नशे में नहीं हूं, मैं सीरियस हूं। मैंने फिर उस लड़के से कहा - बताओ... बोलो... मैं सीरियस  हूं... पंद्रह साल ... रह पाओगे पंद्रह साल जेल में, अगर तुमने पंद्रह साल कैद में गुज़ार लिये... बिना पागल हुए.. बिना सुसाइड किये... तो मैं तुम्हें दस करोड़ दूंगा... दस करोड़... बोलो पार्टी में हलचल होने लगी। सब लोगों ने हमें घेर लिया। वो लड़का मेरी आंखों में ग़ौर से देखने लगा... वो कुछ सोच रहा था... जैसे कुछ जोड़ घटा रहा हो... उसने एक बार अपने मालिक वकील साहब की तरफ देखा जो मुस्कुराकर उसकी तरफ देख रहे थे... फिर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई... बोला - मंज़ूर है।

मैंने कहा, ठीक है... तो मैं तुम्हें इसी घर के बेसमेंट में एक कमरे में बंद करूंगा... जहां तुम 15 साल तक किसी भी इंसान से कॉनटैक्ट में नहीं आओगे...उस कैदखाने में तुम्हें खाना मिलेगा... पानी मिलेगा.. .दवाएं मिलेंगी.. और... किताबें भी... ताकि तुम पढ़ लिख सको... पर न कोई आवाज़ होगी... न धूप-छांव...कोई अखबार नहीं मिलेगा... कर पाओगे ये ...

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- कर लूंगा... उसने कहा... मैंने आगे कहा,

- लेकिन एक शर्त और है...

- जी वो क्या

- वो ये कि तुम जिस बेसमेंट के जिस कमरे में बंद होगे.. उसके दरवाज़े की एक चाबी...तो मेरे पास होगी... कि खुदा न खास्ता तुम पागल वागल हो गए.. मर मरा गए तो हम तुम्हें निकाल सकें... लेकिन दूसरी चाबी तुम्हारे ही बिस्तर के ठीक सामने वाली दीवार पर लटकती रहेगी... जिसे तुम सोते जागते हमेशा देख सकोगे... यानि तुम जब चाहो... दरवाज़ा खोलकर बाहर आ सकते हो। इससे मेरे ऊपर कोई लीगल केस भी नहीं हो सकेगा.. और हां, जब पता हो कि मैं जब चाहूं सामने लटकी चाबी से दरवाज़ा खोलकर बाहर जा सकता हूं, तो कैद और मुश्किल हो जाती है... तुम रोज़ खुद से लड़ोगे कि ये चाबी मेरे सामने है तो मैं बाहर क्यों नहीं जा रहा... कुछ वक्त के बाद तुम्हें ये शर्त बेवकूफी लगने लगेगी.. फिर तुम खुद को रोक नहीं पाओगे.. .और एक दिन दीवार पर कील से लटकती वो चाबी उठाओगे और खुद दरवाज़ा खोलकर बाहर आ जाओगे

- ऐसा कुछ नहीं होगा... मैं पंद्रह साल रहूंगा जेल में.. उस लड़के ने मुस्कुरा कर कहा... तो मैंने उसकी तरफ हाथ बढ़ा दिया... और उसकी बेइज़्ज़ती करने की नीयत से वकील साहब से कहा, वकील साहब, अब आप अपना सिलेंडर खीचने के लिए कोई दूसरा नौकर रख लीजिए... लेकिन सिर्फ छ महीने के लिए रखिएगा... क्योंकि छ महीने से ज़यादा ये टिक नहीं पाएगा जेल में... वकील साहब ने कहा, देखते हैं...

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हमने बाकायदा एक एग्रीमेंट बनाया... एग्रीमेंट बनवाते वक्त पता चला कि उसका नाम अशर था। वो एक गरीब परिवार से था, गांव से आया था और वकील साहब के यहां उनका ऑक्सीज़ेन सिलेंडर लेकर चलने के काम पर लग गया था। मेरा इगो इतना हर्ट हो गया था कि मैं पता नहीं क्या किये जा रहा था, सब हैरान थे। बहुत सारे दोस्तों ने टोका भी। पार्टी में जोश जोश में मैं सबके सामने मैं ऐलान कर चुका था। अब पीछे हटने का मतलब था कि अपनी बात से पलटना। फिर मुझे ये भी यकीन था कि ये सातवीं पास वाकई छ महीने से ज़्यादा टिक नहीं पाएगा... भाग खड़ा होगा... मेरी वाह वाही होगी कि उड़ती चिड़िया के पर गिन लेता हूं मैं। मैंने एग्रीमेंट पर दस्तख्वत कर दिया। और एक दिन वो भी आया जब मैंने उस बारहवीं पास लड़के को अपने घर के बेसमेंट में एक कमरे में बंद कर दिया। उसके दरवाज़े पर कैमरा लगावा दिया था ताकि चार छ महीने में जब वो उकताकर .. अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर बाहर आए... तो मैं वो मोमेंट सबको दिखा सकूं।

शर्त का का पहला दिन शुरु हो गया... दरवाज़े में एक छोटी सी जाली लगी थी जिसको उठा कर खाने की थाली अंदर सरका दी जाती थी। अशर के उस कमरे में एक बिस्तर - एक बाथरूम, शराब, सिगरेट और कुछ म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट थे। उसे ये भी कहा गया था कि वो जितनी चाहे शराब मांग सकता है। मैंने ऐसा इसलिए किया था ताकि शराब के नशे में वो खुद की बाहर आने की इच्छा को कंट्रोल ना कर पाए... और मैं शर्त जीत जाऊं

तो ख़ैर... पहला दिन शांति से गुज़रा... हालांकि अशर के कमरे से कुछ गिटार बजाने की कोशिश करने की आवाज़ें आईं.. पर वो शांत रहा... दो दिन तीन दिन, एक हफ्ता... दो हफ्ता... तीन हफ्ता... दिन गुज़रते रहे... अशर के बर्ताव में थोड़ा थोड़ा फर्क आने लगा था... वो कभी कभी रात में चीखने लगता था... फिर कभी रोने की आवाज़ आतीं। वो कमरे में रखी किताबों को दीवार पर वहां फेक कर मारता था... जहां वो चाबी टंगी हुई थी। इससे उसका गुस्सा शांत होता था...पर उसने चाबी को छुआ नहीं।

कुछ महीने इसी तरह गुज़र गए... एक रात जब मैं अपने कमरे में बैठा था... तो मेरे एक नौकर ने आकर मुझे बताया कि बेसमेंट में अशर के कमरे से आवाज़ें आ रही हैं। वो चीख रहा है...

मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। मैं समझ गया कि बस वक्त आ गया है। इतना ही था उसका... मैंने सोचा कि चल के उसे बाहर निकलते हुए अपनी आंखों से देखते हैं...

ठीक है तुम चलो... मैं आता हूं... मैंने नौकर से कहा और मैं कपड़े बदलने लगा। कुछ देर बाद जब मैं कमरे से निकालने लगा तो मुझे अचानक ख्याल आया कि हो सकता है कि अशर अकेलेपन में बैठे-बैठे पागल हो गया हो... इसलिए चीख रहा हो... वो कमरे से बाहर निकलना चाहता हो... पर अब उसका दिमाग इतना काम न कर पा रहा हो कि कैसे चाभी ताले में लगाना है और कैसे... बाहर आना है। 

मैंने वापस गया और अलमारी की एक दराज़ खोली... उसमें से एक चाभी निकाली और अपनी जेब में डाल ली। फिर कुछ रुककर मैंने कुछ सोचा और फिर एक दूसरा ड्रॉवर खोला... और उसमें से एक रिवाल्वर निकाली... वो अमेरिकन ब्रांड की एक ऑटोमैटिक रिवाल्वर थी... मैंने उसके ट्रिगर पर हाथ रखकर उसे छुआ... और फिर उसे सावधानी से कमर में दबा ली। मैं जीत के गर्व के साथ बेसमेंट के उस कमरे की तरफ चला जा रहा था। मुझे एहसास था कि मैं जीत गया हूं। पर काश उस वक्त मुझे पता होता ... कि मेरी पहली गलती वो थी जब मैंने उस सातवीं पास से शर्त लगाई थी और दूसरी ग़़लती मैं आज करने वाला था।

 

(ये कहानी का पहला हिस्सा है। इसका दूसरा और आख़िरी हिस्सा अगले एपिसोड में। अगर आप इसी तरह की और कहानियां सुनना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें या फिर SPOTIFY, APPLE PODCAST, GOOGLE PODCAST, JIO-SAAVN, WYNK MUSIC में से जो भी आप के फोन में हो, उसमें सर्च करें STORYBOX WITH JAMSHED) 

 

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